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कानून में बदलाव कर छत्तीसगढ़ में उपजाऊ भूमि मिली अडाणी समूह को

साभार: विकिपीडिया

पुलिसकर्मियों के साथ अडाणी समूह के लोग 31 अगस्त, 2018 को जीसीबी उपकरण के साथ झारखंड पहुंचे थे, ये बात झारखंड के सुदूर पूर्वी कोने के गांव माली में आदिवासी और दलित ग्रामीणों ने बातचीत में कहीं। वे आगे कहते हैं कि ये जमीन उपजाऊ है, बहुफसली है और इन ग्रामीणों के लिए आजीविका का एकमात्र साधन है। ग्रामीणों ने कहा कि उन्होंने पुलिस की मदद मांगी लेकिन वहां की पुलिस अडाणी के साथ है।

अडाणी समूह के खिलाफ ग्रामीणों की लड़ाई वर्ष 2016 में शुरू हुई, जब राज्य की राजधानी रांची से 380 किमी पूरब गोड्डा से सटे माली और इसके आसपास के नौ अन्य गांवों में विवाद शुरु हुआ था। यही वह समय था, जब अडाणी समूह की सहायक कंपनी अडाणी पावर (झारखंड) लिमिटेड ने झारखंड में बीजेपी सरकार से कहा कि वह इन गांवों में 2,000 एकड़ भूमि (निजी खेत और आम जमीन) पर कोयले से चलने वाले प्लांट का निर्माण करना चाहता है।

अडाणी समूह का नेतृत्व भारत के सबसे अमीर और शक्तिशाली व्यापारी गौतम अडाणी कर रहे है। गोड्डा में प्रस्तावित 1,600 मेगावाट (मेगावाट) प्लांट के लिए ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया से कोयला आयात होगा।

झारखंड सरकार के भूमि आधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार (एलएआरआर) अधिनियम का उपयोग यह दर्शाता है कि एक प्रगतिशील कानून कैसे औपनिवेशिक पूर्ववर्ती की नकल कर सकता है। इस मामले में झारखंड और शेष भारत के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं, क्योंकि यहां पहली बार राज्य सरकार ने निजी उद्योग के लिए एलएआरआर कानून बनाया है। माली और आसपास के गांवों में एलएआरआर अधिनियम,जिसका उदेश्य मानवीय तरीके से पारदर्शिता बरतते हुए, और सहमति की सूचना देते हुए भूमि अधिग्रहण करना है, पर यहाँ समझौता किया गया है।

इस साल चार गांवों में लगभग 500 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का जिक्र करते हुए, किसान अपनी जमीन पर पावर प्लांट चाहते हैं।

जब 31 अगस्त, 2018 के हिंसक अधिग्रहण प्रयास के बाद माली के किसानों के बीच गए तो उनकी भूमि तब तक नहीं ली गई थी। लेकिन गांव वाले अडाणी कर्मियों और पुलिस के वापस आने को लेकर परेशान थे। वे लोग ‘जोरदार विरोध’ की तैयारी कर रहे थे। ग्रामीण आर्थिक नुकसान और खाद्य असुरक्षा को देख रहे थे, क्योंकि अडाणी कर्मियों ने उनकी धान की फसल को नष्ट कर दिया था।

जमीन के लिए जमीन मुआवजा सिद्धांत महत्वपूर्ण है, खासकर अनुसूचित जनजातियों के लिए। आदिवासी भूमि, जंगल और प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं। भूमि आदिवासी जीवन, उनकी संस्कृति और उनकी पहचान का आधार है। 29 अक्टूबर, 2018 में जनजाती आयोग ने एलएआरआर अधिनियम के भूमि के लिए भूमि-मुआवजे को उन आदिवासियों को देने के लिए कहा, जिनको सरकार बाघ अभयारण्य से विस्थापित करती है। सरकार को कहा गया कि उन्हें कम से कम 2.5 एकड़ जमीन मुआवजे के रूप में दिया जाए । लेकिन ये वास्तव में होता नहीं हैं।

साभार: इंडियास्पेंड