खबर लहरिया Blog सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को किया खारिज़, ‘स्किन टू स्किन कांटेक्ट’ को रखा था पोस्को एक्ट से बाहर

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को किया खारिज़, ‘स्किन टू स्किन कांटेक्ट’ को रखा था पोस्को एक्ट से बाहर

कोरोना योद्धाओं सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 27 जनवरी को अपने सुनाए फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। जिसमें एक नाबालिग लड़की के वक्षस्थल (ब्रेस्ट) को बिना स्किन टू स्किन कांटेक्ट यानी त्वचा का त्वचा से छूने के अपराध को पोस्को एक्ट के दायरे से बाहर बताया गया था। युथ बार एसोसिएशन ने बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट के फैसले पर कई विवाद भी हुए लोगों द्वारा फैसले की आलोचना तक की गयी। पोस्को एक्ट का पूरा नामप्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफन्सेस एक्टहै। इसे साल 2012 में बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था।

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तीन जजों की पीठ ने किया फैसला रद्द

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मुख्य न्यायधीश एस बोबडे, न्यायाधीश एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमनियन ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी। अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल ने न्यायमूर्तियों के साममे मामले का उल्लेख किया था। प्रकशित रिपोर्टों के अनुसार, बॉम्बे उच्च न्यायालय का फैसला बेहद हीअभूतपूर्वथा। जो कीएक बेहद ही खतरनाक उदाहरण साबित करता।

एनपीआरसी ने लिखा महराष्ट्र सचिव को पत्र

एक्टिविस्ट और चाइल्ड राइट्स बॉडीज़ ने बॉम्बे नागपुर बेंच के फैसले को अपमानजनक मानते हुए फैसले की कड़ी आलोचना की। वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनपीआरसी) के सभापति प्रियंक कानूनगों ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को लिखे अपने पत्र में राज्य से उच्च न्यायालय के फैसले की समीक्षा और चुनौती देने की गुजारिश की थी। उन्होंने पत्र में महाराष्ट्र सचिव से विनती की कि वह नाबालिग बच्ची की पूरी जानकारी उन्हें दे ताकि वह अपनी तरफ़ से कुछ कानूनी मदद बच्ची को दे सकें।

महिला कार्यकर्ता ने कहा : फैसला पुरुषों को बढ़ावा देगा

महिला अधिकार कार्यकर्ता की शमीना शफ़ीक़ बॉम्बे नागपुर बेंच न्यायधीश पुष्पा गनेडीवाला द्वारा सुनाए फैसले की आलोचना करती हैं। वह कहती हैंएक महिला के रूप में आपको यह समझना चाहिए कि अगर आपके कपड़े पहनते समय आपको कोई ऊपर से पकड़ता है, जो की इस देश मे बहुत सामान्य है और रोज़ाना महिलाओं और लड़कियों के साथ होता है। और यह कहना कि यह काम यौन उत्पीड़न के मामले में नहीं आता। यह पुरुषों को ऐसे कार्य करने का नयानया विचार देगा और आपका दिया यह हुआ फैसला निवारक के रूप में काम नहीं करेगा।

12 साल की नाबालिग के साथ हुआ यौन हमले का मामला

19 जनवरी को बॉम्बे उच्च अदालत में यौन मामले की याचिका पर सुनवाई की गयी थी। 39 साल के आरोपी सतीश पर 12 साल की नाबालिग लड़की से यौन शोषण करने का आरोप था। मामले की सुनवाई में अदालत ने कहा कि सिर्फ नाबालिग का सीना छूना, यौन शोषण नहीं कहलाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि यौन शोषण तब कहलाएगा, जब आरोपी पीड़ित के कपड़े हटाकर या कपड़ों में हाथ डालकर शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करे। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह की हरकत पोस्को एक्ट के तहत यौन हमले के रूप में परिभाषित नहीं की जा सकती। 

पोस्को एक्ट से बरी करने पर सज़ा हुई कम

जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला की सिंगल न्याय बेंच ने आरोपी की तरफ़ फैसला सुनाते हुए पोस्को अधिनियम की धारा-8 को खारिज़ करते हुए आरोपी को पोस्को एक्ट से बरी कर दिया। जिसमें आरोपी को न्यूनतम तीन साल की सज़ा मिल सकती थी। न्यानमूर्ति का कहना था कि जानकारी की कमी की वजह से इस मामले को यौन हमले की श्रेणी में नहीं रख सकते। हालांकि, यह मामला 354 धारा ( शीलभंग या इज़्ज़त को भंग करना ) के अंतर्गत आता है। जिसमें सिर्फ एक साल की ही सज़ा होती है।

दोनों ही सज़ाओं को साथसाथ चलना था। लेकिन पोस्को एक्ट से आरोपी को बरी करने के बाद अब सिर्फ धारा 354 के तहत की सज़ा को ही बरकरार रखा गया है। 

अदालत ने कहा: ऐसे आरोपों के लिए मजबूत साक्ष्य जरूरी

हाई कोर्ट ने कहा, ‘अपराध के लिए (पोस्को कानून के तहत) सजा की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अदालत का मानना है कि मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना जरूरी हैं।अदालत ने यह भी कहा, ‘किसी खास ब्योरे के अभाव में 12 साल की बच्ची के वक्ष (ब्रेस्ट) को छूना और क्या उसका टॉप हटाया गया या आरोपी ने हाथ टॉप के अंदर डाला और उसके ब्रेस्ट को छुआ, यह सब यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है।

बॉम्बे नागपुर बेंच के फैसले के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं। जिसे देखते हुए आखिर सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। हालांकि, यह बात सच है कि देश में महिलाओं और लड़कियां के साथ यौन उत्पीड़न के मामले बहुत आम हो गुए हैं। ऐसे में बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले ने लोगों को काफ़ी नराज़ किया।

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