खबर लहरिया Blog सावन में गुड़िया पीटने की यह कैसी परंपरा?

सावन में गुड़िया पीटने की यह कैसी परंपरा?

उत्तर-प्रदेश में हर वर्ष सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी मनायी जाती है। अवध में नागपंचमी के दिन सुबह से ही लोगों के घरों में तरह तरह के पकवान बनने लगते हैं, गाँव में बन रहे पकवान अलग ही खुशबू बिखेर रहे होते हैं। सुबह उठकर घर के बूढ़े बुजुर्ग नाग देवता की पूजा अर्चना करते हैं। दूध और (घुघुरी) जिसमें चना घी और गेंहू मिला होता है नाग देवता को चढ़ाते हैं। और घर की महिलायें मीठे पकवान बनाती हैं। और एक सबसे अच्छी परम्परा होती है की बेटियां ससुराल से अपने मायके आती हैं।

गुड़िया पीटते बच्चे

 

हर शहर की अपनी अलग-अलग परम्परा है। बुंदेलखंड में गुड़िया के दिन पकवान नहीं बनाया जाता है लोगों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि नाग देवता जल जायेंगे, यहां पर इस दिन चने की दाल चावल रोटी और बेढनी, लपसी बनाई जाती है।

लड़कियां और महिलाएं झूला झूलती हैं। सावन के गीत गाती हैं खूब सजाती हैं मेंहदी लगाती है। और हां गांवों में अपने में द्वार पर गोबर से नाग बनाकर पूजते हैं।

लोगों के अनुसार नांग पंचमी के दिन शाम के समय लड़कियां कपड़े की गुड़िया बना कर तलाब के किनारे सजा कर ले जाती हैं और मिट्टी में फेक देती हैं फिर लड़के उसे डंडों से मारते हैं। और इतना मारते हैं की गुड़िया फट जाती है। कहीं-कहीं पर ये परम्परा भाई-बहन करते हैं। बहन गुड़िया डालती और भाई पीटता है उसके बाद बहने भाई को पाँन खिलाती हैं और घर आकर घर में बने मीठे पकवान गुझिया खाने को मिलती हैं। हालाँकि गुड़िया पीटने के पीछे कई अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं।

 

 पालने में गुड़िया को झूला झुलाती महिलाएं और लड़कियां

 

जहाँ एक तरफ नागपंचमी के दिन हर तरफ गुड़िया पीटने की परम्परा है। वहीं दूसरी तरफ चित्रकूट जिले में महिला समाख्या की महिलाओं ने इस परम्परा को बंद करने का बीड़ा उठाया। पुष्पलता महिला समाख्या की समन्वयक का कहना है कि ये संकल्प कुछ हद तक पूरा हुआ जहां पर लोग गुड़िया को मार कर मिट्टी ले कर जाते थे वहां महिला समख्या की महिलाओं ने झूला डाल लडकियों से गुड़िया झूले मे डलवाई। और महिला पुरुष सबने झूला झूलवाया। इनका कहना है कि चाहे जो भी प्रथा हो महिलाओं को अपमानित करती है यह उनके प्रति हो रही हिंसा है। वह इस प्रथा को पूरी तरह बंद करना चाहते हैं।
वैसे तो लोग इसे अनोखी परम्परा मानते हैं और ख़ुशी से मानते हैं। लेकिन गुड़िया पीटने की इस परम्परा में महिलाओं का अपमान होता है आखिर वह भी तो एक महिला है जिसे गुड़िया बनाकर लोग पीटते है? जिसे देखकर हमारी तो रूह काँप जाती है ऐसी परम्परा किस काम की जहाँ महिलाओं को ही अपमानित होना पड़े? जहाँ  पर नारी को सम्मान देना चाहिए वहां गुड़िया बनाकर मारना या नदी में बहा देना ये कहाँ की प्रथा है? क्या ये बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का हिस्सा नहीं है? क्या सरकार को इसपर ध्यान नहीं देना चाहिए? महिलाओं के हित में काम करने वाली संस्थाएं इस पर आवाज क्यों नहीं उठाती?

दंगल में अपना दांव आजमाते पहलवान                                                            

 

नागपंचमी  के दिन जगह-जगह (कुश्ती) दंगल खेला जाता है। दो हप्ते पहले से लोगों में चर्चाएँ शुरू हो जाती हैं की आज इस शहर का पहलवान कुश्ती लड़ने आ रहा है मुनादी कराई जाती हैं। गाँवो में की नागपंचमी को दंगल का आयोजन किया जा रहा है। सुबह से ही अखाड़े सजावट से गुलजार कर दिए जाते हैं । गांवों में पीढ़ियों से कुश्ती का खेल ही प्रमुख रहा है। खास तौर से नगपंचमी के दिन तो खास रहता है। कुश्ती में दांव आजमाने के लिए या फिर कबड्डी, दौड़ जगह-जगह आयोजन होते रहते हैं। लेकिन बदलते दौर में कुश्ती की परम्परा कम पड़ती जा रही है।