खबर लहरिया आवास ललितपुर: आवास ना मिलने से ग्रामीण आदिवासी झोंपड़ी में ज़िंदगी बसर करने को मजबूर

ललितपुर: आवास ना मिलने से ग्रामीण आदिवासी झोंपड़ी में ज़िंदगी बसर करने को मजबूर

गांव सिंदवाहा ब्लाक महरौनी जिला ललितपुर के आदिवासी लोगों का कहना है कि उन्हें अभी तक आवास नहीं मिला है। वह झोपड़े में अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें अभी तक सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं मिला है। वह कहते हैं कि जब उनके गांव में सरकारी आवास बनाये जा रहे थे तो उन्होंने भी उनका आवास बनाने को कहा।

लेकिन इसके बदले उनसे बीस हज़ार रुपयों की मांग की गई। लेकिन मज़दूरी करने वाले लोग इतने ज़्यादा पैसे कहाँ से लाएंगे। वह कहते हैं कि कई बार तो उन्हें करने को मज़दूरी भी नहीं मिलती। जिसकी वजह से वह अपने बच्चों के साथ जगह से पलायन कर जाते हैं। ज़्यादा सुविधा ना होने के कारण मजबूरन बच्चों को भी बाल मजदूरी करनी पड़ती है। ठंड के मौसम में अपना घर ना होने की वजह से उन्हें ठंड की मार भी झेलनी पड़ती है। ना रोज़गार है और ना ही इतनी मज़दूरी कि वह उससे कमाकर अपना घर बनवा सकें।

कई बार उन्होंने गांव के प्रधान से भी आवास बनवाने को कहा। लेकिन वहां भी उनकी बात नहीं सुनी गई। वह कहते हैं कि जब प्रधान ही उनकी बात नहीं सुनता तो फिर वह और कहाँ जाए। किससे मदद की मांग करें। व्यक्ति के सर पर अपनी घर की छत हो तो वह गरीबी और हर मुश्किल सह लेता है। यह सोचकर कि कम से कम उसके सर पर छत है।

लेकिन खुले असमान के नीचे रहने वाले व्यक्ति के अंदर हमेशा ही अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर डर बना रहता है। प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत 25 जून 2015 में यह कहकर शुरू की गई थी कि साल 2022 तक सभी ग्रामीणों के पास उनका अपना घर होगा। लेकिन 2021 खत्म होने को है और लोगों को यह भी नहीं पता कि आवास सूची में उनका नाम है भी या नहीं। क्या एक साल में सभी को सरकार की योजना के तहत घर मिल पाएगा? जहां कई परिवार ऐसे हैं जो आवास ना होने की वजह से ठंड के महीनों में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर है। क्या सरकार को ये लोग दिखाई नहीं देते? आखिर इन लोगों को अपने आवास के लिए और कितना लम्बा इंतज़ार करना होगा?