खबर लहरिया ताजा खबरें राजनीति और भृष्टाचार की शिकार गायें और अपंग गौशालाएं देखिए राजनीती, रस, राय में

राजनीति और भृष्टाचार की शिकार गायें और अपंग गौशालाएं देखिए राजनीती, रस, राय में

      राजनीति और भृष्टाचार की शिकार गायें और अपंग गौशालाएं

गाय के नाम पर राजनीति, फिर गौशाला के नाम सरकारी धन का बंदरबाट। राजनीति और भृष्टाचार की शिकार गायें और अपंग गौशालाएं आखिरकार कब तक अपने आप को छिपा के रख पाएंगी? कब तक दबी रहेगी ये आवाजें? और किसी की बात छोड़िए खुद किसान जिनके ऊपर आरोप है कि उनके ही द्वारा बनाये गए जानवर हैं।

आखिरकार एक दिन चिल्लाने के लिए मजबूर ही हो गए कि बस करो बेजुबानों पर राजनीति और भृष्टाचार , अब नहीं सहन हो रहा। एक तो इन बेजुबानों की भूख प्यास और ठंड से तड़प देखी नहीं जा रही ऊपर से इनके मरने से गांव में बदबू फैली है जो किसी गंभीर बीमारी को न्यौता दे रही है। गाय और गौशालाओं पर मैं रिपोर्टिंग करती चली आ रही हूं। किसानों से बातचीत का थोड़ा लम्बा अनुभव है।

हर तबके का किसान, चाहे वह राजनीतिक किसान हो या मज़दूर किसान या फिर मालिक किसान। सभी ने तड़पती गायों की दुर्दशा पर मोदी, योगी सरकार और bjp पार्टी की थू थू की है। क्योंकि किसानों का मानना है कि गायों की ऐसी दुर्दशा सिर्फ और सिर्फ सरकार ने की है। इस सरकार का मानना है कि गाय को बेचना नहीं है। बेचते पकड़े गए तो कानूनी कार्यवाही होगी। क्योंकि गाय माता है इसकी पूजा करना है।

क्या किसान गाय को पूजता नहीं था। बेचता था तो क्या गौशालाओं जैसी दुर्दशा करता था। एक किसान ने कहा सुनो- सरकार किसान अपने घर बिना राजनीति और बिना सरकारी धन के अपने दम पर गायों को रखता था। उनकी सेवा करता था। गायों को तो तब भी बहुत कम किसान ही बेचते थे। ज्यादातर बैलों को बेचने के लिए बाज़ार लगती थी। खरीदने और बेचने वालों को फायदा था। जो गायें मर जातीं उनकी खाल और हड्डियां बेचने वालों को भी फायदा था। अन्ना जानवर की स्थिति ऐसे नहीं आ गई। ये जानबूझ कर स्थिति बनाई गई है जिसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ सरकार है।

क्या किसान अपने घर जानवर नहीं रखता था। इनसे किसानी का काम नहीं करता था। जानवरो को कभी भी मरने की स्थिति में नहीं छोड़ा। अभी भी किसान गायें पाले है। किसान की नींद खुलते ही सबसे पहले जानवरों को खाना पानी देता है। तब वह दातून भी नहीं किये होता। खेत से हरा चारा लाता है। दिन में दो तीन बार और खाना पानी देने के अलावा अनाज भी खिलाता है। तो ये काम सरकार के बस की बात नहीं कि गाय की सेवा कर ले। हां अगर कुछ कर सकती है तो गाय की आड़ में राजनीति और मनमाना भृष्टाचार।

किसान पर आरोप लगा सकती है और गायों को लगातार मरने के लिए मजबूर कर सकती है और जिनका रोजगार चल रहा था उनका रोजगार भी छीन सकती है। एक किसान ने बात बात में ये भी कह डाला कि मोदी सरकार ने न जाने कितने गायों की हत्याएं की होंगी। जिस धर्म की आड़ से मोदी सरकार और उसके प्रशासन ने अनगिनत गायों की जाने अनजाने में हत्याएं की उस धर्म के अंदर ये मान्यता है कि उसके ऊपर गौहत्या का पाप लगता है। उससे उबरने के बहुत कम चांस होते हैं वह इंसान जिंदा लास की तरह माना जाता है।बुंदेलखंड: गौशाला में हर रोज़ मर रहीं गायें, आख़िर कहाँ जा रहा सरकारी बजट?

घर, परिवार और समाज से उसका बहिष्कार कर दिया जाता है। कभी कभी ऐसा भी हुआ है कि वह आत्मग्लानि के मारे मर जाता है। अब ऐसे में सरकार और सरकार में बैठे लोगों का बहिष्कार सामाजिक मान्यता के अनुसार तो बनता है न। क्या गौभक्त और मोदी योगी भक्त इससे सहमत होंगे? उनका बहिष्कार करेंगे जो गायों की ये स्थिति करने के जिम्मेदार हैं? ये सवाल किसानों ने रिपोर्टिंग के दौरान मुझसे बार बार पूंछा।

किसानों ने कहा सरकार हमको अपने हिसाब से काम करने दे। जो हम पहले से करते आये हैं उसी में सरकार, समाज और हमारा खुद का भला है। व्यापारियों को रोजगार मिलेगा, किसानों को पशुपालन और जानवरों के मरने से फैली गंदगी से खुद को बचा पाएंगे ताकि किसान स्वस्थ्य रहे। अगर किसान स्वस्थ्य होगा तो देश भी स्वस्थ्य होगा और तरक्की करेगा। पर सरकार को गाय के आड़ से राजनीति करनी छोड़नी होगी और क्या ये सरकार के लिए आसान बात होगी? इन्हीं सवालों और विचारों के साथ सबको नमस्कार।