खबर लहरिया Blog ‘कब कोई झटका हिलाकर,ढहा देगा इस शांत घर को’ – 72 वर्ष में कवि मंगलेश डबराल का हुआ निधन

‘कब कोई झटका हिलाकर,ढहा देगा इस शांत घर को’ – 72 वर्ष में कवि मंगलेश डबराल का हुआ निधन

72 साल के लेखक, पत्रकार और कवि मंगलेश डबराल की बुधवार 9, दिसंबर को दिल्ली के एम्स अस्तपताल में दिल का दौरा पड़ने की वजह से निधन हो गया। वह तकरीबन 12 दिनों से कोरोना से भी संक्रमित थे। बीते दिनों में उनकी हालत नाज़ुक बनी हुई थी। गाज़ियाबाद के वसुंधरा के एक निजी अस्पताल में उनका कुछ वक़्त से इलाज भी चल रहा था। 

Poet Manglesh Dabral died in 72 years

वह 2012 से गाज़ियाबाद के वसुंधरा में जनसत्ता सोसाइटी अपर्स्टमेंट में अपने परिवार के साथ रह रहे थे। उनकी पत्नी संयुक्ता डबराल के अलावा उनकी एक बेटी अलमा डबराल और बेटा मोहित डबराल थे। उनका बेटा गुरुग्राम की कंपनी में स्क्रिप्ट राइटर का काम करता है। 

मिले हैं यह सम्मान

मंगलेश डबराल को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें शमशेर सम्मान, स्मृति सम्मान, पहल सम्मान और हिंदी अकादमी दिल्ली के साहित्यकार सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।

यहां हुआ था जन्म

वह हिंदी कवियों में सबसे चर्चित नामों में से एक थें। उनका जन्म 16 मई 1948 को टिहरी, गढ़वाल उत्तराखंड के काफलपानी गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई देहरादून से पूरी की थी। वह उत्तराखंड में जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 

पत्रकारिता का सफ़र

Poet Manglesh Dabral died in 72 years

पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक दिल्ली में भी काम किया। फिर वह मध्यप्रदेश चले गए। वहां उन्होंने मध्यप्रदेश कला परिषद, भारत भवन से प्रकाशित होने वाले साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक के रूप में काम किया। इसके बाद कुछ समय तक उन्होंने लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी नौकरी की। साल 1963 में वह जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक के रूप में काम करने लगे। फिर सहारा संपादन में भी काम किया। अभी कुछ समय से वह नेशनल बुक ट्रस्ट से भी जुड़े हुए थे। 

कवि और पूर्व आप नेता ने बयां किया दुःख

कवि और पूर्व आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने ट्विटर पर कवि मंगलेश डबराल को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “अलविदा श्री मंगलेश डबराल, विदा कवि! वह आगे कहते हैं, ” कितने सारे पत्ते उड़कर आते हैं, चेहरे पर मेरे बचपन के पेड़ों से,एक झील अपनी लहरें मुझ तक भेजती है,लहर की तरह काँपती है रात और उस पर मैं चलता हूँ,चेहरा पर पत्तों की मृत्यु लिए हुए लोग जा चुके हैं, रोशनियाँ राख हो चुकी हैं..!” 

मंगलेश डबराल की प्रसिद्ध रचनाएं

मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु काव्य आदि लोगों में बहुत मशहूर है। 

उन्होंने कविता, डायरी, गद्य, अनुवाद, संपादन, पत्रकारिता और पटकथा लेखन जैसी साहित्य विधाओं में भी अपना हाथ आज़माया। कवि नागार्जुन,निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यूआर अनंतमूर्ति,कुर्रतुल ऐन हैदर और गुरुदयाल सिंह पर केंद्रित वृत्त चित्रों का पटकथा लेखन करने का भी काम किया। 

एक नज़र मंगलेश डबराल की लेखनी परघर शांत है

धूप दीवारों को धीरे धीरे गर्म कर रही है

आसपास एक धीमी आँच है

बिस्तर पर एक गेंद पड़ी है

किताबें चुपचाप हैं

हालाँकि उनमें कई तरह की विपदाएँ बंद हैं

मैं अधजगा हूँ और अधसोया हूँ

अधसोया हूँ और अधजगा हूँ

बाहर से आती आवाजों में

किसी के रोने की आवाज नहीं है

किसी के धमकाने या डरने की आवाज नहीं है

कोई प्रार्थना कर रहा है

कोई भीख माँग रहा है

और मेरे भीतर जरा भी मैल नहीं है

बल्कि एक खाली जगह है

जहाँ कोई रह सकता है

और मैं लाचार नहीं हूँ

इस समय बल्कि भरा हुआ हूँ

एक जरूरी वेदना से

और मुझे याद रहा है बचपन का घर

जिसके आँगन में औंधा पड़ा

मैं पीठ पर धूप सेंकता था

मैं दुनिया से कुछ नहीं माँग रहा हूँ

मैं जी सकता हूँ

गिलहरी गेंद या घास जैसा कोई जीवन

मुझे चिंता नहीं

कब कोई झटका हिलाकर

ढहा देगा इस शांत घर को।।