खबर लहरिया कोरोना वायरस परदेश से तो आ गए लेकिन अपनो के पास नहीं देखिये बाँदा में बंद मज़दूरों की दर्द भरी दास्तान

परदेश से तो आ गए लेकिन अपनो के पास नहीं देखिये बाँदा में बंद मज़दूरों की दर्द भरी दास्तान

परदेश से तो आ गए लेकिन अपनो के पास नहीं देखिये बाँदा में बंद मज़दूरों की दर्द भरी दास्तान :परदेश कमाने गए बांदा जिले के लोगों का जब काम बंद हो गया तो लोग भूखों मरने लगे। तब घर वापस होने को मजबूर हो गए। पर घर तक पहुंचे कैसे क्योकि सारे सारे साधन बन्द हो गए तब उन्होंने ठानी कि पदयात्रा ही क्यों न करना पड़े पर घर तो पहुंचना ही है। पेट में खाना, न सिर में छत ऊपर से सामान और छोटे बच्चों को लादकर चल दिये। सड़कों में सिर्फ और सिर्फ दिखता था मज़दूर। कोई सैकड़ों किलोमीटर चल रहा है तो कोई से हज़ार किलोमीटर। न खाने का ठिकाना न सोने का। ये मज़दूर रात दिन चलते नज़र आए। सरकार ने इनको इनके गांव तक पहुँचाने के लिए बस चलाईं तो मज़दूर कगुश हुए लेकिन उनको क्या पता था कि अभी और भी आफत झेलना बाकी है। बसों के जरिये इनको अस्पताल ले जाया गया इनका चेकअप हुआ और 14 दिन के लिए सरकारी स्कूलों में रख दिया गया। इस वादे के साथ कि जब तक लोकडाउन मतलब 14 अप्रैल तक उनको वहीं रहना होगा। ये मंज़ूर कर लोग रहने लगे। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में 28 मार्च को 331 मज़दूर बंद कर दिए गए। गेट पर ताला डाल दिया गया। ऐसे लगता है इन्होंने बहुत बड़ा अपराध किया हो। बन्द मज़दूरों ने बताया कि 28 मार्च से 1 अप्रैल तक खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। इससे परेशान होकर एक लड़का भाग निकला। ये बात मीडिया में आने से 2 अप्रैल को खाने की व्यवस्था की गई। रोज पूड़ी खाना पड़ रहा हैI। खाना की क्वालिटी बहुत खराब होती है। बहुत देर से खाना मिलता है। कोई साफ सफाई नहीं है। पीने का पानी बहुत गंदा आता है। रात में मच्छर काटते हैं। विछौना न ओढ़ने के लिए देते हैं। इस पर राजकुमार सिंह भदौरिया, नायब तहसीलदार तिंदवारी का कहना है पूरी व्यवस्था है। कोई कमी नहीं है।