खबर लहरिया ताजा खबरें छात्रों के मुकाबले चुनावी मैदान में उतरने से क्यों कतरा रहीं छात्राएं? राजनीति, रस, राय

छात्रों के मुकाबले चुनावी मैदान में उतरने से क्यों कतरा रहीं छात्राएं? राजनीति, रस, राय

हाल में ही वाराणसी के उदय प्रताप महाविद्यालय में छात्रसंघ के चुनाव हुए और चारो सीट पर लड़कों ने कब्जा कर लिया। चार सीट हैं अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पुस्तकालय मंत्री और महामंत्री। लड़कियों ने वोटिंग तो की लेकिन कोई भी पद के लिए आगे नहीं आईं। क्यों भई लड़कियों, इस मौके को क्यों चूक गईं आप? क्या आप हमारे साथ इस पर अपने विचार शेयर कर सकते हो?

अगर हम बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी की बात करें तो यहां पर लगभग आठ साल से छात्रसंघ के चुनाव में रोक लगी है। पहले लखनऊ फिर कानपुर यूनिवर्सिटी के बाद बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के अंडर आने वाले सभी महाविद्यालयों में छात्रसंघ के चुनावों में रोक लगी हुई है। जब बांदा का जे.एन.पी.जी. कॉलेज और अतर्रा का अतर्रा डिग्री कॉलेज से छात्रसंघ के चुनाव की रिपोर्टिंग की गई तो लड़कियों ने चुनाव में भाग नहीं लिया था।

ये भी देखें – क्या अपने हक़ की बात करना राजनीति है? देखिये राजनीति रस राय

अपनी रिपोर्टिंग के इतिहास में हमने अनुभव किया है कि जितने भी राजनीतिक लोग राजनीति में आये हैं उनका राजनैतिक सफर डिग्री कॉलेज से ही शुरू हुआ है। चाहे वह विधायक हों या सांसद, सबका राजनैतिक कैरियर छात्रसंघ चुनाव से ही शुरू हो जाता है और वही लोग आगे बढ़कर बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आते हैं। वहीं लड़कियां इस मायने में बहुत पीछे हैं। इसीलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि लड़कियों की संख्या भी राजनीति के क्षेत्र में कम होती है। इसीलिए महिला सीट पर भी पुरुषों की सत्ता पुरुषों के हाथ होती है। फिर आप हम और कुछ हम जैसे लोग यह कहते और लिखते नहीं थकते कि महिलाओं को यह मौका क्यों नहीं मिला। इसके लिए महिलाओं लड़कियों को भी खुलकर सामने आना होगा।

ये भी देखें – जब जीत दिलाने में महिलाओं का अहम रोल तो मंत्रिमंडल में उनकी संख्या कम क्यों?

तो ये हैं हमारे सवाल और विचार और इस मुद्दे पर आपके क्या विचार हैं हमें कमेंट बॉक्स में लिख भेजिए। अगर अब तक हमारा चैनल सब्सक्राइब नहीं किया या पहली बार आएं हैं तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लें। बेल आइकॉन दबाना बिलकल न भूलिएगा। हमारे फेसबुक, इंस्ट्राग्राम और ट्विटर अकाउंट में जाकर ये हमारी खास खबरें जो आपके लिए ही बनाई गई हैं तो जरूर देखें।

ये भी देखें – “चुनाव हारी हूँ, जज़्बा नहीं”, निर्मला भारती

 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें

If you want to support our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our premium product KL Hatke