खबर लहरिया जिला मध्यप्रदेश: केन बेतवा लिंक परियोजना के कारण लोगों का विस्थापन पैसों का लालच या मजबूरी

मध्यप्रदेश: केन बेतवा लिंक परियोजना के कारण लोगों का विस्थापन पैसों का लालच या मजबूरी

केन बेतवा लिंक परियोजना के कारण लोगों का विस्थापन: ढोड़न गांव ब्लॉक विजावर जिला छतरपुर और गांव कंचनपुरा कूड़न जिला पन्ना

मध्य प्रदेश: जिला छतरपुर, ब्लाक विजावर, गांव ढोड़न। यह गांव पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में आने वाले गांवों में से एक है। ऐसे ही पलकोहा और खरियानी गांव भी विस्थापित किए जाएंगे। ये गांव केन बेतवा लिंक परियोजना के तहत बनने वाले बांध के क्षेत्र के किनारे बसे हैं। ऐसे में यह गांव डूब क्षेत्र में आने के कारण लोगों का विस्थापन किया जाएगा। मतलब कि पूरी आबादी को दूसरी जगह पर रहने को भेजा जाएगा जिसके लिए सरकार मुआवजा देगी।

वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार लगभग एक दर्जन गांवों का विस्थापन होना है। विस्थापन की बात लगभग बीसों साल से चल रही है लेकिन अब तक सरकार फाइनल नहीं कर पाई है कि विस्थापन होगा या नहीं। कब होगा, मुआवजे की रकम क्या होगी वगैरह बहुत सारे सवाल लोगों को सताने लगते हैं लेकिन अब तक कुछ फाइनल नहीं हुआ है। अब इसे आप मजबूरी कहें या जरूरी।

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हमने यहां पर कवरेज की। महिलाओं, पुरुषों और विभागीय स्तर पर बात भी करी। ज्यादातर लोग विस्थापित होने के लिए तैयार तो हैं लेकिन उनकी भी कुछ शर्तें हैं। अगर सरकार उन शर्तों के आधार पर लोगों का विस्थापन करती है तो उनको कोई आपत्ति नहीं होगी। इस विस्थापन की वजह से वहां का किसी भी तरह का विकास नहीं हो रहा है। शासन प्रशासन के लिए अच्छा खासा बहाना भी है विकास कार्य न कराने को लेकर।

साथ साल की बुजुर्ग जानकीबाई कहती हैं कि तीन चार पीढ़ी बीत गईं गांव को बसे हुए तब से विस्थापन की बात चल रही है। अब फर्क ये है कि पहले जंगल विभाग वाले कहते थे और अब डीएम, एसडीएम कह रहे हैं। हम चले जायेंगे लेकिन पहले मुआवजा चाहिये। हमारी भूमिधरी जमीन है कैसे छोड़े। सरकार भगा रही है तो जाना ही पड़ेगा वरना अपना घर बार जमीन छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा है।

दसिया बताई हैं कि यतनी अच्छी खेती को कैसे छोड़े। बहुत अच्छी फसल होती है क्योंकि हमारे खेतों में केन नदी की उपजाऊ मिट्टी आती है उससे बिना ज्यादा मेहनत किया फसल तैयार हो जाती है। सबसे ज्यादा राई मतलब सरसो की पैदावार होती है। चार हिस्सेदार के बीच आठ एकड़ खेती है। साल भर के खाने को हो जाता है।

जन विकास समिति के अमित भटनागर कहते हैं कि नौ हजार हेक्टेयर की भूमि जा रही है जिसमें छह हजार हेक्टेयर भूमि वन विभाग की है जो पन्ना टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क जा रहा है। लोगों का पैसा सरकार बहा रही है। सरकार को आकलन करना चाहिए कि इससे हम पा कितना रहे हैं कितना खो रहे हैं। विस्थापन से लोगों की संपत्ति को बहुत नुकसान होगा।

पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्रीय संचालक उत्तम कुमार शर्मा कहते हैं कि तीन गांवों का विस्थापन तय है क्योंकि यब पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में आते हैं। शासन के दिशानिर्देश जारी होने के बाद नियमतः विस्थापन भी किया जाएगा। उसकी प्रक्रिया शासन प्रशासन की तरफ से चल रही है। कितना मुआवजा दिया जाएगा यह कह पाना मुश्किल है। यह प्रोजेक्ट बीसों साल से लंबित है ऐसे में लोगों के बीच जागरूकता पर काम करने की जरूरत नहीं है।

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