खबर लहरिया ताजा खबरें कभी हमारा भी था नाम जो आज है गुमनाम – नक्काल समुदाय

कभी हमारा भी था नाम जो आज है गुमनाम – नक्काल समुदाय

हम अक्सर समुदाय के बारे में सुनते, लिखते हैं। अलग अलग समुदाय की अलग अलग समस्या होती हैं। आज मैं ऐसे समुदाय के बारे मे बताने जा रही हूँ जो मुस्लिम समुदाय से हैं लेकिन बहुत कम लोग उनकी असली पहचान जानते हैं। ये मुस्लिम समुदाय से होते हैं इनकी पहचान भांड,भडेला, नक्काल भी कहते हैं।

पुराने जमाने मे जब फिल्मी हीरो नहीं थे उस समय यही नक्काल बड़े-बड़े राजाओं के यहां गाते बजाते थे उनका दिल बहलाते थे। खुश होकर राजामहाराजा जो इनाम देते थे वही इनका रोजगार होता था। उसी बक्शीश की कमाई से इनके घर चलते थे। इनमे भी कुछ जो गरीब और ग्रामीण स्तर के लोग होते थे वो लोगो के दरवाजे-दरवाजे गाते थे ढ़ोल बजाते थे, उनको इनाम दिया जाता था।

धीरे-धीरे इनकी जगह फिल्मी हीरो-हीरोइन ने ले ली। समाज फिल्मों मे काम करने वाले लोगों को तो इज्ज़त से देखती है लेकिन नक्कालो को आज भी लोग अजीब नज़रो से देखते हैं। यहां तक की इस समुदाय के नये जनरेशन अपनी जात बताने से शर्माते हैं खुद की पहचान छुपाते हैं। लखनऊ से अकबर अली का कहना है उनकी लड़ाई लगभग 50 साल से चल रही है लेकिन, लोग एक नाम तय नहीं कर पा रहे।

कोई हसनी लिख रहा है तो कोई उबैसी,या सलमानी और उसमानी। इस तरह उन्हें एक नाम नहीं मिल रहा जिससे वह अपनी पहचान खुल कर नहीं बता पाते। भांडेला शब्द भद्दा लगता है अल्पसंख्यक का जो लाभ सरकार देती है वो तो मिलता है लेकिन वह अल्पसंख्यक में भी पिछडी जाति में आते हैं। शकील कन्नौज से हैं वो कहते हैं दिल्ली मे पचकुईया रोड मे एक मजार है वहां के शहजादे हैं इरशाद मियां। उन्होंने उन्हें हसनी नाम लगाने को दिया जो वह नहीं लगा सकते क्योंकि उनके यहां सय्यद लगाते हैं। वह इस नाम को अपने नाम के आगे लगाने से गुनाहगार हो जाएंगे।

आने वाले समय में उनके बच्चे सय्यद के बराबर अपने को समझेंगे और उनके बराबर बैठेंगे और उनके यहां शादी करना चाहेंगे जो की गलत होगा। लखनऊ से जिलानी इनका कहना है उनकी जाति का कोई नाम नहीं है। सिर्फ काम के आधार पर नक्काल नाम रखा गया। हर इन्सान कुछ न कुछ नकल करता है इसलिए सब नक्काल हैं।

जिला मुरादाबाद, कस्बा कुन्दरकी के रहने वाले जमीर उबैसी ने बताया की उनके पूर्वज चार सौ साल पहले हिन्दू ब्राम्हण जाति से थे। राजा महराजा को खुश करने के लिए सबकी नकल करने लगे। शादियों मे मंडली बना कर नाटक करते। 1974 में एक बार उनके पड़ोस में पड़ोसियों से झगड़ा हो गया। थाने में रिपोर्ट लिखाई जब पुलिस ने जाति पूछी तो उन्होंने नक्काल बताया। पुलिस ने कहा ये कोई जाति नहीं है नक्काल तो हर इन्सान है। फिर लोगों ने भडेला कहा पुलिस ने वह भी नहीं माना तब लोगों को अपने पहचान की परवाह हुई और उस वख्त से इन लोगों ने अपने जाति के लिए सरकार से अपील की। सेन्ट्रल गौरमेन्ट ने नक्काल नाम दिया और पिछड़ी जाति में शामिल किया। लेकिन धीरे-धीरे जो पहचान जो इज्जत पहले थी नक्कालो की वो खत्म होती गई।

जमीर उबैसी ने बताया की उनकी उम्र 63 साल है वह कहीं जाते हैं तो अपनी असली जाति नहीं बताते तो आज के बच्चे कैसे बताएंगे। नक्काल बताओ तो ये कोई जात नहीं मानी जाती अगर भडेला बताओ तो लोग बडी गंदी और हिकारत और तिरस्कार की नजरों से देखते हैं। उन्होंने सांसद मुरादाबाद को भी ज्ञापन दिया था। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और पिछड़े वर्ग आयोग को भेजा है लेकिन अभी किसी तरह की कोई कारवाई नहीं हुई है।

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