खबर लहरिया खेल खिलौनो से परंपरा बचाने का जुगाड़

खिलौनो से परंपरा बचाने का जुगाड़

बाँदा जिला ,उत्तर प्रदेश! पारंपरिक खिलौने  से परंपरा बचाने का जुगाड़ ,मन में लगन और दिल में चाहत हो तो हर काम सम्भव है कुछ लोग इस नये जमाने में नई नई तकनीकी की खोज करते हैं लेकिन हमारे बुन्देलखण्ड के भोला सिंह पुरानी परम्परा को बचाने में लगे है
बठिंडा, पंजाब के रहने वाले 73 साल के भोला सिंह लकड़ी के खिलौना बनाने के काम में आज भी पूरे मन से लगे हैं, और ये काम वह अपनी रोजी-रोटी के लिए नहीं बल्कि पारंपरिक खिलौनो को बचाने के लिए कर रहे हैं|

भोला कहते हैं कि आज भी जब वह गाना सुनता हूँ लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा, घोड़े के दुम पे मारा हथौड़ा तो सोचता हूँ कि समय कितना कुछ बदल देता है और सिर्फ यादें रहे जाती हैं, बस उन्ही यादों को ताजा करने और पपरंपरा बनाए रखने के लिए वह अमरपुरा बस्ती में एक छोटी सी दुकान खोले हैं| जहाँ वह लकड़ी के ट्रैक्टर-ट्रालियां, बैलगाड़ी, रथ, गाड़ी, गाय, भेंड, बकरी, शेर, और हिरण जैसे के कई खिलौने बीस साल पहले से बना रहे हैं| ये खिलौने सस्ते और टिकाऊ होते हैं| लेकिन आज के दौर में प्लास्टिक खिलौनो के आगे लकड़ी के खिलौने फीके पड़ गये है| फिर भी वह चाहते हैं कि आज के बच्चे भी देश कि संस्कृति से जुड़े इन पारंपरिक खिलौनो को देखें | इसलिए इन खिलौनो को वह बड़े मेहनत और लगन से बनाते हैं और अपने पीछे छोड़ आए यादों कोपूरा करते हैं और उसी पुराने चलन में रहते भी हैं| उनका मानना है कि छोटे बच्चे लकड़ी की गाड़ी से ही ठीक से चलना सिखते है पर शहरो में लोग इन खिलौनो का महत्व नहीं देते, लेकिन गांव के लोग आज भी बच्चों के लिए ये खिलौने खरीदकर ले जाते हैं|