समाज हर तरह के लोगों से मिलकर बनता है क्यों ? जिसमें अलग-अलग लोगों का भिन्न-भिन्न पेशा होता है। जिसका सम्मान करना सबका दायित्व बनता है। लेकिन समाज में लिंग के आधार पर कार्य में भेदभाव आमतौर पर देखने को मिलता है। हम बात कर रहे हैं हमारे समाज में रहने वाले ट्रांसजेंडर वर्ग की, जिसे तीसरे वर्ग भी कहा जाता है। ट्रांसजेंडर शब्द से पहले लोगों द्वारा इन्हें किन्नर, हिजड़ा आदि कहकर परिभाषित किया जाता था। आज इनके सामने सबसे बड़ी समस्या उनका रोज़गार और उनके काम के प्रति लोगों की तुच्छ भावनाओं से लड़ना है।
समाज में आज भी किन्नर समुदाय को सम्मान या दर्ज़ा नहीं दिया गया है , जो समाज में रहने वाले आम नागरिकों के पास मौजूद है। उनकी जीविका और उसका साधन नाचना,गीत गाना और दूसरों की खुशियों में शामिल होना है। लेकिन जब देश में कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन की घोषणा की गयी, उसके साथ ही उनका रोज़गार भी ठप्प हो गया। इस आर्टिकल के ज़रिये हम आपको उनकी द्वारा बताई गयी परेशानियों से रूबरू करवाएंगे।
किन्नर समुदाय की परेशानी, उनकी ज़ुबानी
खबर लहरिया द्वारा कुछ किन्नर समुदाय के लोगों से उनके रोज़गार और उनकी दैनिक परेशानियों के बारे में उनसे बातचीत की गयी। 5 जनवरी 2021 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार रामपुर जिले की रहने वाली प्रिया से जब पूछा गया कि उनका परिवार और समाज उन्हें किस प्रकार समझता है और उन्हें रोज़ाना किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
प्रिया कहती हैं कि समाज उन्हें जैसी वह हैं,वैसा मंजूर नहीं करता। वह यह देखता है कि वह महिला है,पुरुष है या किन्नर है। वह सिर्फ अपनी सीमित सोच और समझ के हिसाब से ही बोलता है। उन्हें कई बार हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। एक बार जब वह और उसके साथी डांस से वापस लौट रहे थे तो उन पर हमला भी किया गया और उनका सारा सामान लूटकर उन्हें मारा भी गया। उनका अपना कोई निजी बैंक खाता भी नहीं है। जब उन्होंने किसी एनजीओ में काम किया था तो सिर्फ उन्हीं की तरफ से बनाया गया बैंक खाता उनके नाम पर है।
फलक कहती हैं, सबसे पहले तो खुद का परिवार ही उन्हें नहीं स्वीकारता। उसके बाद गली-मोहल्ले के लोग और बाहर के लोग उन्हें छेड़ते हैं। यहां तक की फलक ने अपनी पढ़ाई भी अपनी पहचान छुपाकर पूरी की है। इस डर से कि उसके लिंग की वजह से उसे परेशान किया जाएगा। लेकिन फिर भी जिन लोगों को उसके किन्नर होने का मालूम था। वह उसे “चाची,आपा,खाला” आदि नामों से पुकार कर उसे तंग किया करते थे। उसका मज़ाक बनाते थे और उस पर हँसते थे। यहां तक की उन्हें आधार कार्ड और पैन कार्ड आदि चीज़ों को भी बनवाने जाने से पहले सोचना पड़ता है क्यूंकि उनके पहनावे की वजह से लोग उन्हें घूरते हैं और उनके लिए तरह -तरह की समस्यांए खड़ी कर देते हैं।
कोई उनसे नहीं पूछता कि उन्हें सरकार की तरफ से चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिलता भी है या नहीं। वह तो बस नाच -गाकर अपना गुज़ारा करते हैं। जब से लॉकडाउन हुआ तब से उनका यह रोज़गार का साधन भी बंद हो गया। फलक कहती हैं जो खाता उनका स्कूल के समय खुला था। बस आज भी उनका वही खाता है।
मित्रा का कहना है कि आधार कार्ड को उनकी पहचान के मुताबिक़ नहीं बनाया जाता है। जैसा की अन्य लोगों का बनता है। आधार कार्ड को नागरिक होने का पहचान पत्र कहा जाता है। पर जब पहचान ही गलत बनाई जाये तो क्या किया जाए ?
नहीं है किसी प्रकार की सुविधा
लॉकडाउन में वह कहीं नहीं गए। किसी ने राशन दे दिया तो खा लिया। वरना वह भूखे ही रहे। कई बार पड़ोसियों और पुलिस वालों ने भी उन्हें राशन देकर उनकी मदद की। लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें लॉकडाउन में किसी भी तरह की सहायता नहीं मिली।
उनके पास किसी भी तरह का बीमा नहीं है। जो लोग आमतौर पर अपने आगे के जीवन को सुरक्षित करने और बेहतर बनाने के लिए करते हैं। जैसे : एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम)। मित्रा कहती हैं कि उन्होंने खुद भी कभी जीवन बीमा कराने का नहीं सोचा क्यूंकि वह इतना कमा ही नहीं पाती कि उसे आगे के लिए सुरक्षित रख सके। वे जितना भी कमाते हैं, सब वर्तमान के खर्चों को पूरा करने में ही लग जाता है ।
वह एक-दूसरे की मदद खुद ही करते हैं। चाहें वह पैसों से जुड़ी मदद हो या जब तबियत खराब हो तो ऐसे में परिवार की तरह एक-दूसरे की देखभाल करना। सब वह मिल-जुलकर करते हैं।
जब कोई सुनता नहीं, तो किससे कहे?
जब उनसे पूछा गया कि वह अपने लिए सरकार की तरफ से किस तरह की योजनाएं चाहती हैं। इस पर उनका यही कहना था कि जब उनकी बात ही कोई सुनता ही नहीं तो वह किससे कहें। कई बार तो उन्हें झूठा ही बना दिया जाता है कि वह किन्नर ही नहीं है। उनकी सरकार से मांग है कि उनके लिए कोई ऐसी सुविधा बनाई जाये जहां जाकर वह अपनी समस्याओं को बता सके। उन्हें नहीं पता कि अगर उन्हें परेशानी है तो उन्हें कहां और किसके पास जाना चाहिए।
लॉकडाउन के सात महीने के दौरान उन्हें घर का किराया, खाना,पैसों की चिंता आदि चीज़ें सताती रहीं। मित्रा कहती हैं कि उन्हें चिंता थी की बिना रोज़गार के दिन कैसे काटेंगे और आगे क्या होगा। प्रिया कहती हैं कि उनके पास नाचना और गीत गाने के अलावा और कोई रोज़गार नहीं है। वह कहती हैं कि उन्होंने सरकार से भी कोई मांग नहीं की क्यूंकि उनकी बात कोई सुनेगा ही नहीं। “लोग किन्नर है कहकर चीज़ों को छोड़ देते हैं। उन्हें बस लोगों से उनके लिए सम्मना से ज़्यादा और कोई चीज़ नहीं चाहिए। “
यह वही किन्नर समुदाय है जो लोगों की छोटी से बड़ी खुशियों में शामिल होता है। लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाता है। समाज कहता है कि किन्नर द्वारा दिया गया आशीर्वाद बहुत शुभ होता है। इसके बावजूद भी समाज में उन्हें सम्मान ना मिलना, समाज में रहने वाले लोगों की दोहरी मानसिकता को साफ़ तौर पर दर्शाता है।
ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड के यह थे उद्देश्य
साल 2019 में ट्रांसजेंडर प्रोटेक्ट एक्ट को लागू किया गया था। जिसके बाद साल 2020 में यूपी सरकार ने ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड बनाने का निर्णय लिया गया था। बोर्ड बनाने को लेकर राज्य सरकार के अधिकारी द्वारा कहा गया था कि इसके ज़रिये ट्रांसजेंडर समुदाय का कल्याण और उत्थान किया जायेगा। साथ ही बोर्ड में ट्रांसजेंडर प्रतिनिधि सामजिक संगठनों के साथ मिलकर काम करेंगे। राज्य अधिकारी ने कहा, बोर्ड के ज़रिये यूपी में ट्रांसजेंडर की पहचान कर उन्हें सूचीबद्ध किया जाएगा।
– उनका पहचान पत्र बनाया जाएगा
– शैक्षिणिक संस्थानों में उनका दाखिला कराना
– सरकार के विभिन्न छात्रावास दिलाना
– आवास प्रदान करना
– समुदाय के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू करना
साल 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जब ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग की मानयता दी गयी तो यूपी किन्नर अखाड़ा परिषद ने अदालत से ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के गठन की मांग की थी। केंद्र सरकार की विशेषज्ञ समिति ने यूपी सरकार को ट्रांसजेंडरों के लिए कल्याण बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया था।
मार्च 2019 में राज्य विधि आयोग ने सरकार को अपने दिए हुए प्रस्ताव में तीसरे लिंग से जुड़े हुए अधिकारों की मांग की थी।
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल ने ट्रांसजेंडरों को मिलने वाले अधिकारों की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित किया था, जिसे की सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिया गया था। मानसून सत्र के दौरान, विधानसभा में यूपी राजस्व संहिता विधेयक 2020 लागू किया था। जिसके तहत ट्रांसजेंडर्स का अपने पैतृक भूमि पर अधिकार होगा।
बहुत समय के बाद ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में देश में स्वीकारा गया। लेकिन इसके बावजूद आज भी उनका अस्तित्व दूसरों की तरह नहीं है, जैसा की आम व्यक्ति का होता है। जैसा उनका जीवन होता है। ना तो उनके आधार कार्ड उनकी पहचान बता पातें है, ना समाज उन्हें सम्मान देता है। ना उन्हें सरकार की तरफ से किसी योजना का लाभ मिला। ना उनके रोज़गार को लेकर कोई सुविधायें प्रदान की गयी। उनके परिवार वालों द्वारा उन्हें छोड़ दिया गया। समाज में किन्नर होना, इन सब चीज़ों से उन्हें दूर कर देता है क्यूंकि उनकी पहचान को लोग अपना ही नहीं पाए। क्यों ? फिर हम किस समाज की बात करते हैं जो यह कहता है कि समाज उसके लोगों से बनता है। फिर समाज में किन्नर समुदाय की जगह क्यों नहीं है ? क्या वह समाज का हिस्सा नहीं है ? उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिला। क्या वह आम नागरिक की सूची में नहीं आते?