खबर लहरिया जवानी दीवानी यूपी के हर रास्ते पर लिखा है प्रयागराज का नाम

यूपी के हर रास्ते पर लिखा है प्रयागराज का नाम

राजनीति और धर्म के मिश्रण के साथ इस बार के कुम्भ को कुछ विशेष पहचान दी गई है

जहाँ एक तरफ योगी सरकार नाम बदलने की निति संग आने वाले चुनावों के लिए अपनी सीट पक्की करने की जदो जहत से कोशिश कर रही है वहीँ उसी में अर्धकुम्भ को शामिल कर इस बार महाकुम्भ का नाम भी दे रही है।

ऐसे में बुंदेलखंड के रहने वाले कुछ 200 श्रधालुओं ने प्रयागराज यानी पूर्व अलाहबाद की और प्रस्ताव करना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस बार के अर्धकुम्भ में यूपी सरकार ने काफी बड़ा योगदान दिया है।

इस कुम्भ में शामिल हुए लोगों से बात करके पता चला है कि हर छह साल में आयोजित होने वाले इस अर्धकुम्भ में लोग पुन्य प्राप्ति हेतु स्नान करने के लिए जाते हैं। इस बार के कुम्भ में कुल 150 करोड़ लोग के शामिल होने का अंदाज़ा भी लगाया जा रहा है।

“हमारे साथ शामिल हुए बाकी 200 श्रद्धालु भी 19 दिसम्बर को आश्रम छोड़, प्रयागराज में आयोजित इस अर्धकुम्भ का हिस्सा बने हैं”, ऐसा पशुराम नामक एक श्रद्धालु का कहना है। मध्य प्रदेश के विधिशा जिला के रहने वाले पशुराम ने मीलों का रास्ता तय कर इस 55 दिवसीय आयोजन का हिस्सा बनने का फैसला लिया था।

यह आयोजन 15 जनवरी से शुरू कर 4 मार्च तक चलेगा। जिसमे देश भर के लाखों करोड़ लोग भी शामिल होंगे। चित्रकूट जिले के नागेश्वर, जो इस आयोजन में शामिल हुए हैं, उनके अनुसार सभी श्रद्धालु इस आयोजन की तैयारी कर आयोजित दिनों से पहले ही पहुँचने की कोशिश करते हैं।

हालाँकि इस बार के अर्धकुम्भ की सबसे अलग बात ये होगी कि इस बार सरकार ने चुनावों के चलते इसे काफी बड़ा बनाने के प्रयास किये हैं। इसकी निवेश रकम में करोड़ों का पैसा लगाते हुए, सरकार ने सभी स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से लेकर पत्रकारों तक को इसका हिस्सा बनाया है।

अपने साथ आये सभी श्रधालुओं के खाने पीने और यात्रा का प्रबंध करते हुए पशुराम ने बताया कि उन्होंने इस पर कुछ 6-8 लाख रूपए खर्च किये होंगे। जिसमे कुम्भ के दौरान रहने की व्यवस्था का खर्च अतिरिक्त माना जाएगा।

2013 के कुम्भ के मुकाबले, इस बार के कुम्भ में तीन गुना से भी ज्यादा यानी कुछ 4200 करोड़ रूपए निवेश किये गये हैं। और शहर में हो रही तैयारियों से पता चलता है कि योगी सरकार द्वारा इसे बड़ा बनाने के काफी प्रयास किये गये हैं।

जहाँ सड़कें चौड़ी हो गई हैं, अतिक्रमण हो गए हैं, शहर में डिवाइडर और आधा दर्जन फ्लाईओवर बना दिए गए हैं।

इस कुंभ में मौजूद सभी तीर्थयात्रियों के लिए 6000 राज्य बसें तैनात की गई हैं। साथ ही में प्रागराज के लिए 800 विशेष रेलगाड़ियां चलाई गयी हैं, जो इसे उन लोगों के लिए और अधिक सुलभ बनाती हैं। ठहरने के लिए बड़े पैमाने पर आवास, बस मूलभूत सुविधाओं से परे और पिछले संस्करणों के अस्थायी टेंट भी इस कुम्भ मेले में प्रदान किये गये हैं।

यह सब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके प्रशासन द्वारा कटाक्ष और बड़े पैमाने पर किया गया है। जिला स्तर पर “साहब आज ड्यूटी पर नहीं हैं, स्नान के लिए गये हैं”, जैसे काम न करने के बहाने भी सुनने को मिलेंगे।

पोस्टरों में प्रधानमंत्री मोदी के जगमाते चेहरे संग भाजपा के लिए वोट करने की जानकारी पेश करते हुए ये उद्देश्य साफ़ दिखाई पड़ता है कि इस कुम्भ का महा आयोजन केवल श्रधालुओं को आने वाले चुनावों के चलते लुभाने के लिए किया गया है।

इस आयोजन का हिस्सा बने संत देवदास के अनुसार सरकार को सभी कुम्भ में एक अहम भूमिका निभानी चाहिए। देवदास ने प्रयागराज संग नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में भी आयोजित सभी कुम्भ में भाग लिए है। इन सभी का दौरा करते हुए वो बता सकते हैं कि इस बार के कुम्भ में सरकार का योगदान कुछ ज्यादा ही है।

योगी सरकार ने कुम्भ मेले के लिए विशेष रूप से अनिवासी भारतीयों के बीच भी काफी प्रचार किया है। जहाँ प्रधानमंत्री मोदी संग योगी ने भी 15 जनवरी के तिथि को स्नान कर पुण्य प्राप्ति जैसे काव्य का वर्णन भी किया है। आलीशान होटल, अनुभव पैकेज और पर्यटन प्रदान करने जैसी विशेष सेवाओं के भी प्रबंध किये गये हैं।

2019 के चुनाव महज कुछ महीनों बाद ही होंगे, ऐसे में कुंभ के ज़रिये हिन्दुओं से वोट प्राप्त करने के ज़ोरों-शोरों से प्रयास किये जा रहे हैं।

और जहाँ रही नाम बदलने की बात तो योगी जी ने इस कुम्भ को भी पीछे नहीं छोड़ा है। पशुराम के अनुसार छह साल में आयोजित इस अर्धकुम्भ को कुम्भ का नाम और 13 साल में होने वाले कुम्भ को महाकुम्भ का नाम दिया गया है। और ऐसा क्यों किया गया है इसका जवाब तो खुद पशुराम के पास भी नहीं है।

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