खबर लहरिया Blog Govt releases new rice variety: उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के किसानों के लिए चावल की नई किस्म, जानें बीज से जुड़ी पूरी जानकारी

Govt releases new rice variety: उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के किसानों के लिए चावल की नई किस्म, जानें बीज से जुड़ी पूरी जानकारी

आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर श्रवण कुमार सिंह ने ये भी बताया कि “इस किस्म में कई विशेषताएं हैं जैसे किसानों की आय में इससे बढ़ोतरी होगी क्योंकि इसकी फसल जल्दी पक कर तैयार हो जाती है।”

‘मालवीय मनीला सिंचित धान -1’ / Malaviya Manila Sinchit Dhan-1 चावल के नए किस्म की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

भारत सरकार ने चावल की नई किस्म तैयार की है। यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के किसानों के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) द्वारा विकसित की गई है। इस चावल की किस्म का नाम ‘मालवीय मनीला सिंचित धान -1’ / Malaviya Manila Sinchit Dhan-1 रखा गया है। इसे अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान International Rice Research Institute (IRRI) के साथ मिलकर तैयार किया गया है।

बरसात का मौसम शुरू होते ही किसान धान की खेती की तैयारी में लग जाते हैं। बिहार, यूपी में अधिकतर धान की बुवाई का समय जुलाई में होता है। ऐसे तो किसान नए तरह के चावल लगाते हैं जो बाजार में पहले से मौजूद है। किसान अधिकतर सोनम चावल की खेती ज्यादा करते हैं क्योंकि उनका मानना है इससे उनकी कमाई ज्यादा होती है और बाजार में भी इसकी कीमत ज्यादा है।

इन नए किस्म के चावल के बीजों की कई खासियत है जिससे किसानों को धान की खेती में आसानी होगी। इसके दाने लम्बें हैं साथ ही अधिक उपज देने वाले हैं।

चावल की नई किस्म को तैयार करने में लगे 18 साल

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर श्रवण कुमार सिंह ने बताया कि इस नई किस्म को बीएचयू और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई), मनीला, फिलीपींस के संयुक्त सहयोग से लगभग 18 वर्षों के अनुसंधान के बाद विकसित किया गया है।

चावल की नई किस्म की खासियत

  • आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर श्रवण कुमार सिंह ने ये भी बताया कि “इस किस्म में कई विशेषताएं हैं जैसे किसानों की आय में इससे बढ़ोतरी होगी क्योंकि इसकी फसल जल्दी पक कर तैयार हो जाती है।”
  • रोपाई करने से 115-120 दिन के अंदर यह पक जाते हैं।
  • खेती की लागत कम हो जाती है।
  • रोपाई के माध्यम से औसत उपज 55-64 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
  • यह सीधी बुवाई (डीएसआर/ धान की सीधी बुआई) के लिए भी उपयुक्त है।
  • इसमें पानी की कम जरूरत होती है।
  • अगर मानसून सामान्य रहता है तो सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती।
  • यह चावल पतला, लंबा, मीठा और स्वादिष्ट होता है।
  • इसकी वजह से बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है।
  • लंबा और पतला होने के बावजूद, जब धान को मिलों में दराया जाता है, तो बाकी लंबे दाने वाली किस्मों की तुलना में कम टूटता है।

जल्दी पकने के कारण किसान एक ही खेत में साल भर में कई फसलें उगा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हरी मटर-गेहूं-मूंग, या धान-हरी मटर-सरसों-मूंग, या धान-आलू-मूंग, जिससे उनकी आय में काफी वृद्धि होती है। इसकी जल्दी कटाई से गेहूं, आलू, सरसों, मटर आदि जैसी अन्य फसलों की समय पर बुवाई हो जाती है जिससे उनकी पैदावार भी बढ़ जाती है।

मृदा की उर्वरता कैसे बढ़ाएं

भारत सरकार की वेबसाइट विकासपीडिया पर खेत की मिट्टी को कैसे उपजाऊ बनाए कि एक अच्छी फसल तैयार हो सके इसके लिए जरुरी जानकारी दी है।

जैविक खादः पहले और वर्तमान समय में किसान जैविक खाद का उपयोग करते आ रहे हैं जिससे पैदावार अधिक होती है। अब क्योंकि बाजार में रासयनिक खाद आ गई है तो किसान उसी का इस्तेमाल करते हैं जिस वजह से पैदावार पर असर पड़ता है। मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए गोबर की खाद, विभिन्न प्रकार की कम्पोसट, वर्मी कम्पोसट, बायोगैस स्लरी, खालियां, मुर्गी, भेड़ अथवा बकरी से प्राप्त खाद एवं हरी खाद का इस्तेमाल किया जाता है।

फसल अवशेषः फसलों के कुछ अवशेष होते हैं जो खाद का काम करते हैं जैसे – कपास के डण्ठल, गन्ने की सूखी पत्तियों तथा धान का भूसा आदि। अनुसंधानो से यह साबित हुआ है कि गेहूँ व धान का भूसा के साथ 25 किग्रा. नाइट्रोजन/हेक्टेयर या फली वाली फसल का भूसा डालने से मृदा की उर्वरता पर काफी अच्छा असर पड़ता है।

कहां से मिलेगें नए किस्म के चावल के बीज

जानकारी के अनुसार इसके बीज बी.एच.यू. के राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, बरकछा, मिर्ज़ापुर में उपलब्ध हैं।

इस नए चावल की किस्म के आ जाने से किसानों के लिए एक और विकल्प बाजार में आ जायेगा जो उनके आय को बढ़ाएगा और उनकी खेती को आसान बना देगा।

 

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