खबर लहरिया जवानी दीवानी रामनवमी की झलकियां! देखिए इसबार क्यों थी यह अलग

रामनवमी की झलकियां! देखिए इसबार क्यों थी यह अलग

बांदा जिला: साल 2014 के बाद से साल दर साल नवरात्रि के त्यौहार में सरकार धर्म की आड़ में कुछ न कुछ नया बदलाव दिखाती है। इस बार मूर्ती पंडालों में और विसर्जन के समय पुलवामा हमले के समय की अलग-अलग सीन देखने को मिलीं। हद तो तब हो गई जब शहर की जामा मस्जिद को कवर कर दिया गया। यह सब दृश्य हैरान, परेशान और बांदा के इतिहास में पहली बार देखने को मिल रहे थे। जिसने भी देखा बांदा जिले की मशहूर कौमी एकता की हाय-तौबा करता रह गया। ऊपर से हाईकोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए कनफूडू डीजे और पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में नाकामयाब मूर्ती विसर्जन से कराहती केन नदी। ये सब ऐसे दृश्य थे जो देश की एकता, अखंडता, धर्म, और पर्यावरण बचाने से पीछे धकेलते नज़र आ रहे हैं।

बांदा जिले में लगभग एक हज़ार पांच सौ मूर्तियों में से लगभग तीन सौ मूर्तियां शहर के अंदर ही रखी गई थीं। शहर के पंडित जे एन डिग्री कॉलेज रोड में कालूंकुआं चौराहे में स्थित मूर्ति पंडाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मूर्ति भी लगाई गई थी। उनकी मूर्तियों को एक संदेश के साथ पेश किया गया था। साथ ही विसर्जन के दौरान मूर्ति नंबर 073 में सैनिको का पुतला खड़ा किया गया था जिसमें विंग कमांडर अभिनंदन का चेहरा बनाया गया। बीजेपी पार्टी के लोग इस अच्छे मौके को कैसे चूक कर सकते हैं, आखिकार धर्म का ठेका जो ले रखा है। इतना ही नहीं बीजेपी पार्टी ने अपने नाम की टोपियां भी बांटी तो नगर पालिका अध्यक्ष मोहन साहू ने अपने नाम के साथ समाजवादी पार्टी की टोपियां लोगों को बांट दी। ट्रैक्टर में रखी मूर्ती के आगे तिरंगा लेकर लोग खूब नाच गाना किये। कुछ मूर्तियों के सामने तो लोग दारू के नशे में धुत्त रंग गुलाल से भरे बीच सड़क में लोट पोट कर फिल्मी गानों में थिरके जा रहे थे। यहां भी गरीबी और अमीरी का भेदभाव देखने को मिला। छोटी-बड़ी मूर्तियां, गाना बजाना, डीजे और सजावट सब बयां कर रही थी।

 

पर्यावरण प्रदूषण को बचाने की दृष्टि से इस साल हाईकोर्ट का आदेश था कि डीजे नहीं बजाए जाएंगे तो वहीं 2012 से चलता आ रहा है मूर्ती विसर्जन के लिए गड्ढा खोदकर और उसमें पानी भरकर विसर्जन किया जाएगा। डीजे बजने में कोई कमी नहीं हुई। मूर्ती विसर्जन गड्ढे में करने को कहा जरूर गया पर मूर्तियों के विसर्जन से निकला मलबा वापस नदी में गया। दूसरा मूर्तियों के क्षत-विक्षत अंग के ढांचे पानी में तैरने लगे। देखकर लगा कि लोग क्यों आडम्बर करते हैं। उसी मूर्ती की नौ दिन पूजा करते हैं, मन्नत मांगते हैं तो फिर उन्हीं मूर्ती की ये स्थिति करके डर नहीं लगता। या फिर ये सोचा जाए कि नौ दिन में उनकी मन्नत पूरी हो गई अब काम निकल गया तो ये मूर्ती भी बेकार हो गईं। बेकार वस्तुओं का निष्कासन इसी तरह कर दिया जाता है। अरे धर्म के ठेकेदारो इस तरह से मूर्ती और धर्म का अपमान कैसे सहन कर सकते हो। जब लास को ऐसे नहीं फेक सकते, उसको भी सुरक्षित ढंग से व्यवस्थित किया जाता है तो फिर लास से भी गए गुजरी हैं ये मूर्तियां, क्यो? कहां गई धार्मिकता? कहां गया पर्यावरण बचाने का जुनून?

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बांदा जिला की हिन्दू-मुश्लिम एकता भाईचारा प्रसिद्ध है। हिन्दू मुश्लिम मिलकर एक दूसरे के सुख-दुख और त्यौहार में शामिल होते हैं लेकिन धर्म की आड़ में इस भाईचारे को नवरात्रि में बदलते देखा गया। इतिहास में पहली बार देखने को मिला कि प्रशासन को जामा मस्जिद को पूरा कवर करना पड़ा। हालांकि शोसल मीडिया के प्लेटफार्म फेसबुक और वाट्सएप पर इसमें बहुत लोगों ने आवाज उठाई। लोगों का कहना था कि उनके भाईचारे पर जानबूझकर शक किया जा रहा है। सवाल ये उठता है कि आखिकार मस्ज़िद की किलेबंदी क्यों की गई? मस्जिद को इस तरह कवर करना कौमी एकता में दरार की तरफ इशारा करने के लिए काफी है।

अब देखना यह है कि आने वाले सालों में इन बदलावों को कम करने के लिए समाज, धर्म के ठेकेदार, सरकार, पार्टियां और प्रशासन किस तरह की पहल करेगें या ये बदलाव बढ़ते ही जायेंगे?