खबर लहरिया Blog आज़ादी के बाद पहली बार किसी महिला को मिलेगी फांसी

आज़ादी के बाद पहली बार किसी महिला को मिलेगी फांसी

For the first time after independence, a woman will be hanged

पहली बार आज़ाद भारत में एक महिला कैदी को फांसी दी जाएगी। जिसे ऐतिहासिक निर्णनयों और घटनाओं में गिना जाएगा। जिस महिला को फांसी दी जाएगी, उसका नाम शबनम है। जानकारी के अनुसार, उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही परिवार के सात लोगों की बेहरहमी से हत्या कर दी थी। शबमन उत्तरप्रदेश के अमरोहा में बावनखेड़ी गाँव की रहने वाली है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक शैलेंद्र कुमार मैत्रेय ने बताया कि अभी फांसी की तारीख तय नहीं हुई है। लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से सारी तैयारी शुरू कर दी है। मौत का वारंट आते ही महिला को फांसी दी जाएगी। 

मथुरा महिला फाँसीघर में मिलेगी फांसी 

For the first time after independence, a woman will be hanged

शबनम को फांसी देने के लिए बिहार के बक्सर से फांसी मंगाई गयी है। फांसी के फंदे को तैयार करने का ज़िम्मा मेरठ के पवन जल्लाद ने लिया है। यह वही व्यक्ति है जिसने साल 2012 के दिल्ली निर्भया मामले के दोषियों को फांसी पर लटकाया था। महिला को मथुरा के इकलौते महिला फाँसीघर में फंदे पर चढ़ाया जायेगा। 1870 में तकरीबन 150 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत में मथुरा जेल में महिला फाँसीघर बनवाया गया था। हालाँकि, 6 अप्रैल 1998 को  लखनऊ की एक महिला की मृत्यु की सज़ा को उम्रकैद की सज़ा में तब्दील कर दिया गया था। फिर उसने जेल के अंदर ही बच्चे को जन्म दिया था। 

राष्ट्रपति ने किया दया याचिका को खारिज़ 

15 जलाई 2010 में इलाहबाद हाई कोर्ट में दोनों आरोपी शबनम और सलीम ने सेशन कोर्ट के फांसी के फैसले को चुनौती दी थी। लेकिन हाई कोर्ट द्वारा उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया। फिर इसके बाद दोनों ने साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में सज़ा को बदलने की गुहार लगाई थी। इस बार भी अदालत द्वारा उनकी सज़ा को बरकरार रखा गया। जनवरी 2020 में भी सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई के दौरान शबमन की मौत की सज़ा को कायम रखा गया। साथ ही राष्ट्रपति द्वारा महिला की दया याचिका को भी खारिज कर दिया गया है। 

मामले की सुनवाई अमरोहा की अदालत में दो साल तक चलती रही थी। जिसके बाद साल 2010 में जज एसएए हुसैन ने सलीम और शबनम को फांसी की सज़ा सुनाई थी। इससे पहले सवाल-जवाब का सिलसिला 100 तारीखों तक चला था।  फैसले के दिन, न्यायाधीश ने 29 गवाहों के बयान सुने। गवाहों से 649 सवाल पूछे जाने के बाद न्यायधीश ने 160 पन्नों का फैसला सुनाया। जिसके बाद शबनम को बरेली की जेल में रखा गया और उसके प्रेमी सलीम को आगरा की जेल में। 

यह है पूरा मामला 

खबरों के अनुसार यह पूरी घटना 14 -15 अप्रैल 2008, उत्तरप्रदेश के अमरोहा में बावनखेड़ी गाँव की है। उस दिन शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता शौकत अली (शिक्षक), माँ हाशमी, भाई अनीस और राशिद, भाभी अंजुम, बहन राबिया और अपने भतीजे अर्श की हत्या की थी। उसने अपने सभी परिवार वालों को सबसे पहले नींद की गोलियां दी और रात को बेहरहमी से कुल्हाड़ी से उनके शरीर को काटकर उन्हें हमेशा के लिए दुनिया से विदा कर दिया। वो भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि वह उसके रिश्ते के खिलाफ थे और वहीं वह अपने प्रेमी से शादी करना चाहती थी। फिर अपने परिवार की हत्या के बाद उसने अपने 10 महीन के भतीजे अर्श की गला घोंटकर जान ले ली। शबमन को उसके पिता ने काफी प्यार से पढ़ाया-लिखाया था। जिसके बाद उसकी शिक्षामित्र में नौकरी भी लग गयी थी। जिस दौरान उसे आठवीं पास सलीम से प्यार हुआ था। दोनों ही अलग-अलग जाति के मुस्लमान थे। शबनम सैफी और सलीम पठान था। 

इस समय शबनम और सलीम का 12 साल का बेटा ताज भी है। वह बुलंदशहर के सुशील विहार कॉलोनी में रहने वाले उस्मान सैफी के पास रहता है। लेकिन अब उसके पास ना तो उसकी माँ है और न ही उसका पिता। 

द्वारा लिखित – संध्या