खबर लहरिया Blog हुनर में नहीं रही कमाई, फैशन छीन रहा रोज़गार

हुनर में नहीं रही कमाई, फैशन छीन रहा रोज़गार

हमीर जो गद्दे में रुई भरने का काम करते हैं, कहते हैं कि महंगाई और फैशन में मेहनत तो है पर कमाई नहीं है। इसके आलावा उनके पास और कोई काम भी नहीं है।

fashion taking away the glory and hard work of handmade items

                                                           हमीर, गद्दे में रूई भरने का काम कर रहे हैं लेकिन अब इस कार्य में उनकी पहले की तरह कमाई नहीं होती

जब और कोई रोज़गार नहीं होता तो ऐसे में हाथों की कला किसी भी व्यक्ति के लिए उसका रोज़गार बन जाती है। हम बात कर रहे हैं, गाज़ीपुर जिले के ब्लॉक सैदपुर, गांव फरीदाहा के उन लोगों की जो गद्दे में रुई भरने व रुई की धुनाई (रुई साफ़ करना) का काम करते हैं और यह उनका रोज़गार भी है लेकिन उनके इस रोज़गार में अब वो कमाई नहीं रही।

हमीर पिछले 5 सालों से यह काम कर रहे हैं। कहते हैं, जाड़े में हम लोगों को फुरसत ही नहीं मिलती थी। इतने आर्डर आते थे कि चिंता में आ जाते थे कि कैसे देंगे। आज के दौर में फोम के गद्दे आ गए हैं। बाज़ारों में तो यही फैशन और डिमांड में है। अब लड़कियां शादी में खुद कहती हैं कि मुझे दुकान का गद्दा चाहिए फोम वाला। जिस तरह से लोग घर में गद्दे बनाते थे, वह 500 से 600 तक मिलता था और काफी अच्छा था। एक बार अगर भरा जाए तो वह 10 साल तक के लिए सही था।

आगे कहा, वह एक दिन में लगभग 56 गद्दे भर लेते थे ताकि आर्डर को समय पर दे पाएं।

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मेहनत है पर कमाई नहीं

हमीर का कहना है, हुनर के साथ-साथ रोज़गार भी फींका पड़ रहा है। अब तो मज़दूरी भी निकालना मुश्किल हो गया है। एक दिन में अब वह एक या दो गद्दे भर लेते हैं। अब कोई आर्डर भी नहीं आता है। गांव के व्यक्ति ही आर्डर करते हैं। शादी-ब्याह में पहले 4 महीने तक काफी अच्छी कमाई हो जाती थी। अब तो 4 महीने 10-15 हज़ार कमाना भी मुश्किल हो गया है।

अब महंगाई और फैशन में मेहनत तो है पर कमाई नहीं है। इसके आलावा उनके पास और कोई काम भी नहीं है। घर में वह लोग मिलकर गद्दा बनाते हैं और दुकानों पर देते हैं। अभी भी एक गद्दा 800-900 में चले जाता है लेकिन फिर भी इतनी कमाई नहीं है। उनका कहना है कि अगर उनके आसपास और कोई रोज़गार होता तो वह इस काम को बंद कर देते।

अब मशीन भी कर दी है बंद…..

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                                                      फरीदा बेगम रुई की धुनाई का काम करती हैं। इस काम से पैसे न आने की वजह से उन्होंने अपनी मशीन बंद कर दी

फरीदा बेगम बताती हैं, उनके घर भी रुई की धुनाई होती थी लेकिन आज मशीन दो सालों से बंद पड़ी है। उनका कहना है कि अगर वह किसी के आश्रय रहेंगे तो बिना कमाई के मर जाएंगे। अब इस काम में कोई कमाई नहीं रही है। कोई कमाने के लिए घर से बाहर जाता है, कोई ट्रेनों में सामान बेचता है तो कोई घूमकर।

उन्होंने गद्दे की धुनाई इसलिए बंद कर दी क्योंकि उसमें पहले जैसा पैसा नहीं है। न ही उतने लोग लेते हैं। लगभग 5 सालों से उनकी यही स्थति चली आ रही है। लोग आज फैशन की तरफ भाग रहे हैं। उन लोगों का गद्दा उतना बिकता नहीं इसलिए मशीन भी बंद कर दिया है और इधर-उधर भटक रहे हैं। मज़दूरी का काम कर रहे हैं। जो भी 200 से 400 रुपया मिल जाता है। उसी में परिवार का खर्च चल रहा है।

आधुनिक चीज़ों ने बेशक लोगों को आराम दिया, लेकिन इसी चीज़ें ने कई लोगों की मन की शांति, उनकी कला और रोज़गार पर भी असर डाला है जिसका समय के साथ प्रभाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।

इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गयी है। 

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