देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले 100 दिनों से भी ज़्यादा से चल रहे किसान आंदोलन में हर रोज़ देश के हर कोने से हज़ारों किसान जुड़ रहे हैं हैं। जहाँ एक तरफ सरकार अब तक किसान कानूनों को लागू करने के फैसले पर अटल है, वहीँ दूसरों तरफ किसानों ने भी तब तक आंदोलन ख़तम न करने का वादा कर दिया है जबतक तीनों कानून वापस न ले लिए जाएँ। इस पूरे मामले पर कल यानी 7 मार्च दिन रविवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि सरकार देश के किसानों की भावनाओं का सम्मान करती है, और सरकार जल्द ही कृषि कानूनों में बदलाव करेगी ताकि देश भर के किसान इस आंदोलन को अंत कर सकें।
क्या है विरोध का कारण-
सरकार ने सितम्बर 2020 में जो 3 नए कृषि क़ानून लागू किए थे, वो कुछ इस प्रकार हैं: कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020, आवश्यक वस्तु संशोधन बिल।किसानों का कहना है कि इन कानूनों के लागू होने के बाद गल्ला एवं एपीएमसी मंडियों के बंद होने की आशंका है। इसके साथ ही कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में कहा गया है कि किसान अब एपीएमसी मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकते हैं, जिस पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं।
इसके चलते मंडी के कारोबारियों का कहना है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क के सामान बिकेगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। किसानों का यह भी कहना है कि नए कानून आने के बाद एमएसपी पर फसलों की खरीद सरकार बंद कर देगी। इन सभी मुद्दों को मद्देनज़र रखते हुए पिछले तीन महीने से हरयाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं कई अन्य राज्यों के किसान दिल्ली बॉर्डर पर दिन-रात प्रदर्शन कर रहे हैं और इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
संशोधन के लिए तैयार हुई बीजेपी सरकार-
जहाँ अभी तक सरकार तीनों विधेयकों को लेकर काफी अटल थी और किसान मोर्चा के नेताओं के साथ कई बार बैठक होने के
बावजूद कानून वापस लेने से इंकार कर रही थी। वहीँ कल केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा इन कानूनों में संशोधन की बात से इस पूरे मुद्दे को एक नया मोड़ मिला है। तोमर का कहना है कि सरकार किसानों की भावनाओं का सम्मान करती है और पिछले साल बनाये गए कृषि कानूनों में कुछ संशोधनों के लिए तैयार है। इसके साथ ही तीनों कृषि कानूनों का पक्ष लेते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के संशोधन के इस प्रस्ताव का मतलब यह नहीं है कि इन कानूनों में कोई कमी है। तोमर ने कहा कि पिछले साल सितंबर में संसद में पारित किए गए तीनों कानून किसानों को मंडियों में गल्ले को अधिक कीमत में बेचने में मदद कर सकते थे। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री ने बताया कि ये कानून कृषि क्षेत्र में निवेश को भी बढ़ावा देंगे।
किसानों को भड़का रहे हैं विपक्षी दल- तोमर
नरेंद्र सिंह तोमर ने विरोधी दलों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कोई भी इस बारे में बात करने को तैयार नहीं है कि ये विधेयक किसानों के हित के लिए हैं, और सभी दल सिर्फ किसानों को सरकार के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने उन विपक्षी दलों पर भी निशाना साधा जो कृषि-अर्थव्यवस्था के मुद्दे को लेकर राजनीति कर रहे हैं, उनका मानना है कि ऐसा करके विपक्षी नेता किसानों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। तोमर की मानें तो किसान आंदोलन राष्ट्र की एकता और पहचान को क्षतिग्रस्त कर रहा है।
कई कृषि संगठन बैठक हुई हैं नाकाम-
नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के आदेशानुसार उन्होंने कई बार कृषि संगठन के मंत्रियों के साथ बैठक की है, लेकिन उन बैठकों में कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका। तोमर का कहना है कि किसान यह बताने में असक्षम हैं कि आखिर उन्हें क़ानून के किन-किन बिंदुओं से दिक्कत है, वो सिर्फ यह चाहते हैं कि सरकार कैसे भी करके इन कानूनों को वापस ले ले।कृषि मंत्री के इस बयान के बाद, संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य दर्शन पाल ने कहा है कि किसान संगठन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की अपनी मांग पर अभी भी अटल हैं। और किसान तब तक विरोध और आंदोलन करते रहेंगे जब तक सरकार इन में संशोधन नहीं बल्कि इनको वापस नहीं ले लेती।
बता दें कि इससे पहले सरकार ने जनवरी में तीनों कृषि कानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए स्थगित करने के साथ ही किसानों की समस्याओं का उचित समाधान निकालने के लिए संयुक्त समिति बनाने का प्रस्ताव भी दिया था, जिसे किसान संगठनों ने नकार दिया था। अब देखना यह होगा कि क्या इस बार भी सभी कृषि संगठन सरकार के संशोधन के इस प्रस्ताव को नकार कर आंदोलन जारी रखेंगे या इस फैसले का सर्थन करेंगे।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।