खबर लहरिया चित्रकूट नाम के लिये ई-टिकटिंग मशीन

नाम के लिये ई-टिकटिंग मशीन

साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

चित्रकूट मंडल की मैं बात करूँ तो वहां हमेशा समस्याओं का भंडार ही लगा रहता है। सरकार चाहे जितनी भी सुविधा प्रदान करने की बात करें, पर जनता तो परेशान ही रही है।

अगर हम परिवहन विभाग की बसों की बात करें, तो 2014 में सरकार ने हैण्ड हेल्ड ई-टिकटिंग मशीनों को परिवहन विभाग को दिया। सरकार का उददेश्य था,कि वह परिवहन विभाग में हो रही चोरी को रोक पाएगी, पर ऐसा हो नहीं रहा है।

चित्रकूट मंडल में 78 फीसदी ई-टिकटिंग मशीने खराब हो गई हैं, जिसके चलते चालको को पुरानी मैनुअल टिकट काटना पड़ रहा है। इससे परिवहन विभाग को घाटा तो लग ही रहा है साथ ही सवारी और कंडेक्टरों के बीच लड़ाई और मारपीट बढ़ रही है।

15 जनवरी से 4 मार्च तक कुम्भ मेला की भीड़ से परिवहन विभाग के कंडेक्टर बिना मशीन के काम करने में घबरा रहे हैं। बांदा जिला में 210 मशीनों में 180 खराब हैं। तीस मशीन ही योग्य हैं।

चित्रकूट जिला में 143 में 111 मशीन खराब हैं। हमीरपुर में 76 में 65 मशीन खराब हैं। महोबा जिला में 179 में से 116 मशीन खराब हैं। मतलब 608 में 472 मशीनें खराब हैं।

पर सरकार इस पर कोई कदम क्यों नहीं उठा रहा है? जबकि इसके बिना परिवहन विभागों ने अपने स्तर पर कार्यवाही की है, पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

परिवहन विभाग का कहना है कि मशीनें चार साल पुरानी हो चुकी हैं इस वजह से खराब हो रही हैं। उनको मरम्मत के लिये भेजा गया है, दुबारा फिर वह खराब हो जा रही हैं। इसलिये कुम्भ मेला में मशीनों का इस्तेमाल नहीं कर पायेंगें।

बस कंडेक्टरों का कहना है कि हमारी मशीन बीच में बंद हो जाती हैं, तो हमें पुराने ढरें पर टिकट बनाना पड़ता है, तो यात्री हमारे साथ गाली गलौज और मारपीट भी कर देते हैं, पर सरकार और विभाग हम लोगों की सुनवाई नहीं करती है। सरकार ने इस ई-मशीन को शुरू तो करवा दिया, पर इसको कब बदलना है, इस पर क्यों नहीं ध्यान दे रही है?

लेखन: मीरा जाटव, खबर लहरिया सम्पादकीय