खबर लहरिया Blog चित्रकूट: बुंदेलखंड में खदानें बंद होने के कारण संकट में आए कई मज़दूर परिवार

चित्रकूट: बुंदेलखंड में खदानें बंद होने के कारण संकट में आए कई मज़दूर परिवार

जिला चित्रकूट के ब्लॉक मनिकपुर के गाँव सरैया के घाटी कोलान के जंगल में पत्थर का खदान है। इस खदान में कुछ महीने पहले तक कई मज़दूर काम कर रहे थे लेकिन हाल ही इस खदान के भी बंद होने से कई लोगों का रोज़गार छिन गया है।

बुंदेलखंड का इलाका पहाड़ी इलाकों और खदानों के लिए देशभर में मशहूर है। इस क्षेत्र के मज़दूरों को भी अबतक यहीं काम मिल जाता था जिससे उन्हें पलायन करने की ज़रुरत नहीं पड़ती थी। लेकिन धीरे-धीरे इन खदानों को बंद किया जाने लगा है जिससे यहाँ काम कर रहे लोगों को अब परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जिला चित्रकूट के ब्लॉक मनिकपुर के गाँव सरैया के घाटी कोलान के जंगल में पत्थर का खदान है। इस खदान में कुछ महीने पहले तक कई मज़दूर काम कर रहे थे लेकिन हाल ही इस खदान के भी बंद होने से कई लोगों का रोज़गार छिन गया है।

प्रशासन ने खदान मालिकों को ठेका देने से कर दिया है इंकार-

गाँव सरैया के रहने वाले देशराज, रानी, गीता और कांता प्रसाद ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि चित्रकूट के ज़्यादातर इलाकों में पहाड़ मौजूद हैं जहाँ पर कुछ सालों पहले तक खनिज का काम ज़ोरोशोर से होता था लेकिन हाल ही में सरकार ने इन खदान मालिकों को ठेका देने से इनकार कर दिया है जिसके कारण ज़्यादातर खदानें बंद हो गई हैं। इन लोगों का कहना है कि यहाँ मज़दूरी करके यह लोग अपने परिवार का पेट पाल लेते थे लेकिन जब से खदानें बंद हुई हैं इनका घर खर्च निकाल पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। इसके साथ ही अब कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के कारण भी इन मज़दूर परिवारों को कोई दूसरा रोज़गार ढूंढ पाना भी मुश्किल हो रहा है।

लॉकडाउन के चलते दूसरे शहरों में पलायन करने में भी हो रही दिक्कत-

इन लोगों ने बताया कि दूसरे शहरों में रोज़गार ढूंढने जाने के लिए ये लोग ट्रेन का सहारा लेते थे क्यूंकि उसका टिकट सस्ता होता था लेकिन फ़िलहाल लॉकडाउन के कारण ट्रेन से यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए 2500 रूपए का पास बनाना अनिवार्य कर दिया गया है। यह लोग रोज़ जैसे-तैसे रोटी सब्ज़ी का इंतज़ाम कर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं, ऐसे में इनके लिए 2500 रूपए का पास बनवाना एकदम ही नामुमकिन काम है।

जब खदानों को एकदम से बंद किया जाने लगा तब इन मज़दूरों ने पत्थर तोड़ने का काम शुरू कर दिया था। एक पत्थर तोड़ने के इन लोगों को 3 रूपए मिलते थे, और दिनभर में यह लोग 500 रूपए तक कमा लेते थे। लेकिन वो काम भी लॉकडाउन के कारण चौपट हो गया है। इन लोगों ने पत्थर से बनने वाले घरेलू सामान से लेकर खाने-पीने की चीज़ें बेचने का भी काम किया लेकिन एक के बाद एक सारे काम ठप्प होते चले गए। इन लोगों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के कारण इस समय कोई भी नया काम शुरू करना बहुत मुश्किल हो गया है, एक पहाड़ों और खदानों के सहारे ही ये लोग अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे लेकिन प्रशासन ने वो रोज़गार भी इनसे छीन लिया। ये लोग अब चाहते कि सरकार वापस से खदानों का ठेका देना शुरू कर दे ताकि मज़दूर परिवारों को इस कठिनाई के समय में कुछ राहत मिल सके।

रोज़गार देने के लिए नहीं हो रही कोई सुनवाई-

गाँव के लोगों का कहना है कि गाँव के प्रधान भी उनकी किसी तरह से मदद नहीं करते हैं। इन लोगों ने कई बार बेरोज़गारी की शिकायत प्रधान से की लेकिन फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके साथ ही इन लोगों ने यह भी बताया कि गाँव के प्रधान ने इनको रोज़गार दिलवाने में भले कोई मदद नहीं की हो लेकिन अगर ग्रामीणों के पास कभी खाने को कुछ नहीं होता है तो प्रधान उन्हें राशन दे देते हैं।

गाँव सरैया की प्रधान गीता देवी और उनके पति कमल यादव से जब हमने इस बारे में बात की तो उनका कहना है कि वो ग्रामीणों की परेशानी समझते हैं और कोरोना महामारी के कारण लोग रोज़गार ढूंढने बाहर भी नहीं जा पा रहे हैं। इसलिए प्रधान ने अपने घर में राशन वितरण का इंतज़ाम कर लिया है। उन्होंने बताया कि जब भी किसी ग्रामीण को खाने-पीने की सामग्री की आवश्यकता होती है तो वो तुरंत उन्हें आटा, दाल, चावल आदि दे देते हैं। उनका कहना है कि वो नहीं चाहतीं कि गाँव का कोई भी व्यक्ति भुखमरी का शिकार हो। यह समय हर किसी की परीक्षा का है इसलिए ज़रूरी होगा कि लोग एक दूसरे की मदद करें। उनका कहना है कि लॉकडाउन खुलते ही वो कोशिश करेंगी कि ज़रूरतमंद परिवारों को रोज़गार का नया जरिया मिल सके जिससे उनका घर चल सके।

इस खबर को खबर लहरिया के लिए सहोद्रा द्वारा रिपोर्ट किया गया है।

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