खबर लहरिया चित्रकूट चित्रकूट: साक्षरता जैसे मूलभूत अधिकार से वंचित बच्चे

चित्रकूट: साक्षरता जैसे मूलभूत अधिकार से वंचित बच्चे

विश्व में शिक्षा के महत्व के दर्शाने और निरक्षरता को समाप्त करने के उद्देश्य से 17 नवंबर 1965 को यह निर्णय लिया गया, कि प्रत्येक वर्ष 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रूप मे मनाया जाएगा। इस दिन विश्व भर में व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक रूप से साक्षरता के महत्व पर प्रकाश डालने के कार्यक्रम होते हैं। इस दिवस के माध्यम से दुनियाभर में लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है, ताकि वो अपने आने वाले कल को बेहतर बना सकें।

भारत में अशिक्षा को लेकर सबसे बड़ी चुनौती तब आई जब कोरोना वायरस ने बुरी तरह से देश को जकड़ लिया। सरकारी से लेकर प्राइवेट स्कूलों को बंद कर दिया गया और शुरुआत ही ऑनलाइन क्लासेज की। लेकिन ग्रामीण भारत में रह रहे परिवारों के पास स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट की सुविधा न होने के चलते भारत के साक्षरता दर में कुछ ही महीनों के अंदर 2 फीसदी का गिराव आया।

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राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साक्षरता दर 77.7 फीसदी है, जो की 1947 में मात्र 18 % था। देश के ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर 73.5 फीसदी है जबकि शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 87.7 फीसदी है। साक्षरता के मामले में देश का शीर्ष राज्य केरल है, जहां 96.2 फीसदी लोग साक्षर हैं। वहीं आंध्र प्रदेश इस मामले में सबसे निचले पायदान पर है, जहाँ का साक्षरता दर महज 66.4 फीसदी ही है। उत्तर प्रदेश में यह दर 73 फीसदी और मध्य प्रदेश में 73.7 है।

21वीं सदी में जहाँ बाकी देश शिक्षा और विकास को जमकर बढ़ावा दे रहे हैं, वहीँ भारत सरकार ने भी 6-14 साल के आयु वर्ग के प्रत्येक बालक और बालिका को स्कूल में मुफ़्त शिक्षा का अधिकार दिया है। लेकिन उसके बावजूद भी यहाँ 40%से अधिक बालिकायें 10 वीं कक्षा के उपरांत स्कूल त्याग देती हैं।

भारत में स्कूलों की कमी के कारण, स्कूल में शौचालय न होने के कारण, गरीबी, जागरूकता की कमी के कारण बच्चों को उच्च या माध्यमिक कक्षा में आते-आते स्कूल छोड़ना पड़ता है। भारत में अशिक्षा और साक्षरता की कमी के कई कारण हैं, जैसे स्कूलों की कमी, स्कूल में शौचालय की कमी, गरीबी , जागरूकता की कमी, जिसके चलते हमारे देश की बड़ी आबादी आज भी उच्च या माध्यमिक शिक्षा से वंचित है।

जैसा कि हमने देखा कि ग्रामीण बच्चे अब चाहते हैं कि वो भी आगे बढ़ें और शिक्षा पूरी करें और अपने पैरों पर खड़े हों, लेकिन फिर क्यों सरकार इन बच्चों के लिए सुचारू शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध नहीं करा रही? आखिर कब तक ये बच्चे यूं ही अपनी किस्मत के सहारे बैठे रहेंगे? क्या ये कभी साक्षरता का महत्त्व समझ पाएंगे?

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