बढ़ती बेरोजगारी ने पढ़ाई का महत्व तो नहीं घटाया, लेकिन भरोसा ज़रूर कम कर दिया है। अब डिग्री के साथ-साथ स्किल्स भी ज़रूरी हो गए हैं — और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कमाई का रास्ता खोजना। कोई यूट्यूब से कमाने लगा है, कोई डिजिटल मार्केटिंग सीख रहा है, तो कोई फ्रीलांसिंग से अपना करियर बना रहा है। शिक्षा अब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर पहला कदम बन चुकी है। दुर्ग जिले के एक युवा लक्ष्मी नारायण जोशी कहते हैं की डिग्री से पेट नहीं भरता इसलिए उन्होंने आईटीआई करने के बाद एसी रिपेयरिंग का काम शुरू किया है। हमारी किताबों ने बताया कि डिग्री ही सफलता की कुंजी है लेकिन असल ज़िंदगी ने सिखाया स्किल्स हैं, तो रास्ते हैं। पढ़ाई के साथ अगर स्किल्स जोड़ दो तो युवा नौकरी ढूंढने वाला नहीं बल्कि नौकरी देने वाला बन सकता है। लक्ष्मीनारायण जोशी की कहानी भी ऐसा ही कुछ कहती है।
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