खबर लहरिया Blog बुन्देलखण्ड का सूखा बना कडवा सच

बुन्देलखण्ड का सूखा बना कडवा सच

राजनैतिक गलियारों में हमेशा गर्म रहने वाले बुन्देलखण्ड का सूखा आज भी कड़वे सच की तरह साथ है| सरकारी तंत्र की पानी उपलब्धता का दम्भ भारत है, पर आज भी किसानों को हर बार पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती हैं|  कहीं पर नहर और ट्यूबवेल जैसे पानी के संसाधन ना होने से खेती विरान पड़ी रहती है, तो कहीं पर दरवाजे से नहर और पानी का साधन होने के बावजूद भी किसानों को पानी नहीं मिल पाता और खेतों में बोई हुई फसल सूखती रहती है| साथ ही प्रकृति भी किसानों का साथ ना देकर उनको अपना शिकार बनाती रहती है और सरकार से सूखा,ओला जैसी दैवीय आपदाओं के तहत मिलने वाले मुआवजे के नाम पर किसानों के साथ सिर्फ छलावा किया जाता है|
यही कारण है कि बुंदेलखंड का किसान आजादी के 72 साल बाद भी बदहाली से जुझ रहा है और  इतनी सरकारें बनी लेकिन किसानों के खेतों को भरपुर पानी नहीं दे पाईं| वह भी तब जब सबसे अधिक बांधों,तालाबों और कुंओं की श्रेणी में बुन्देलखण्ड को नंबर 1 पे मना गया है| ऐसा ही कुछ हाल बांदा और चित्रकूट जिले का है| जहां बारिश का मौसम होने के बाद भी महिनों से बारिश नहीं हुई और किसानों की फसलें सूख रही हैं|

चुनाव के समय होते हैं बडे-बडे वादे

Bundelkhand became dry

नरैनी तहसील अन्तर्गत आने वाले  द्वावा क्षेत्र के शाहपाटन गांव के किसान देवरतन और कमलेश का कहना है कि उनके क्षेत्र में कोई भी सिंचाई का साधन नहीं है ना सरकारी ट्यूबवेल हैं और ना ही नहरों का कोई साधन है सिर्फ नदी है,तो जो जमीन नदी किनारे है, वहां थोड़ा बहुत फसल हो जाती है वरना भगवान भरोसे ही उनके क्षेत्र का किसान रहता है, जब चुनाव का समय आता है,तो हर बार राजनैतिक मंच पर सुलगने वाले मुख्य मुद्दों में बुंदेलखंड के सूखा के साथ उनके क्षेत्र के सिंचाई का साधन भी शामिल होता है और चुनावी जंग जीतने के लिए नेता किसानों के आंसुओं को वोटों में तब्दील करने को बेताव हो जाते हैं हांथ पैर जोड़ते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं और उसी सहारे उनके क्षेत्र का किसान उनको वोट देता है,लेकिन जीतने के बाद पलट कर नहीं देखते|

नहरें होने के बाद भी नहीं मिलता पानी

Bundelkhand became dry

 नौगवां गांव के किसान कपील और रामकिशोर का कहना है कि  उनके गांव में गुढा़ माइनर की केन कैनाल नहर लगभग 20 साल पहले खोदी गई थी जो दो चार साल ही चली है| इसके बाद से उस नहर में पानी नहीं आय, उनके गांव में 90 प्रतिशत कृषक है, जो सिंचाई का साधन होने के बाद भी परेशान रहता है| अगर नहर आती भी है, तो ऐसे समय में जब पानी का कोई काम नहीं होता या तो फसल कटने के लिए तैयार खडी़ होती है, या फिर कट चुकी होती है, तो ऐसे पानी का क्या मतलब, इसी कारण जो बड़े किसान हैं वह अपना खुद का बोर कराये है और कुछ लोग  ट्यूबवेल कनेक्शन लिएहैं,लेकिन जो गरीब तबके का किसान हैं उनको बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है|
क्योंकि अगर वह किसी के बोर से या ट्यूबवेल से पानी लगाते हैं, तो उनको बहुत ही महंगा पड़ता है या फिर पानी ही नहीं मिल पाता और उनकी खेती वीरान पड़ी रहती है, क्योंकि नहर के अलावा वहां पर सिंचाई के लिए सरकारी ट्यूबवेल का कोई साधन नहीं है यही कारण है कि  उनके गांव का किसान सिंचाई के साधन से वंचित रह जाता है और देश परदेश जाके अपनी रोजी रोटी के लिए मेहनत मजदूरी करता है| अगर उनके गांव की नहर में समय से पानी आने लगे और उसकी खुदाई हो जाए जिससे बराबर सबके खेतों तक पहुंचने लगे तो उनके गांव का किसान भी खुशहाल हो सकता है क्योंकि कृषि के लिए मेन चीज पानी की जरुरत होती है और बुन्देलखण्ड के खास कर बांदा ,चीत्रकूट का किसान  सिंचाई के पानी को लेकर हमेशा परेशान रहता है|

जबकि नदी,तालाब,ट्यूवबेल के साथ साथ यहाँ बहुत से कुंए और रसिन बांध भी है

  यहां सिंचाई के लिए केन,यमुना और बागै नदी के साथ-साथ नहर,ट्यूबवेल,कुंआ और तालाबों का साधन होने के बावजूद भी पानी की समस्या से किसान जूझ रहा है| अगर ये व्यवस्थाएं सुचारु रुप से चलती रहें और उनको कृषि कार्य हेतु समय से मिलती रहे तो यहां का किसान भी गरीबी से मुक्त होकर खुशहाल जीवन जी सकता है|

नहरों की पटरी अधिकतर टुटी और कुंआ तालाबों का नहीं दिया जा रहा महत्व

स्योढा़ गांव के कमलेश कुमार यादव और जगमोहन का कहना है कि उनका गांव  रजवासी गांव है वहां पर लगभग 300 कुंआ है,जिनका जल स्तर बहुत ही अच्छा है लेकिन का महत्व ना होने के कारण अब वह वीरान पड़े हुए हैं ना तो उनसे कोई पीने और खर्च के लिए पानी इस्तेमाल करता है और ना ही सिंचाई के लिए जो उनके यहां से नहर गई हुई है वह भी टूटी हुई है वहां से भी किसानों को पानी नहीं मिल पाता और किसान भगवान भरोसे या अपने व्यक्तिगत सिंचाई साधन से कृषि कार्य करता है, जबकि एक समय था कि गांव में कुछ कुंओं से खेतों की सिंचाई भी हुआ करती थी,लेकिन इस समय उन कुंओ का अस्तित्व मिटता जा रहा है और किसानों को खेती की सिंचाई के लिए दिक्कत बनी रहती है| इसी लिए जो गरीब किसान है वह और भी दिन पे दिन गिरता और कर्ज के बोझ तले दबता चला जा रहा है| अगर उनके यहाँ जो कुंऐं हैं उनकी मरम्त करा के सिंचाई की व्यवस्था की जाये तो किसान खुशहाल हो सकता है

कैसे उभरेगा सिंचाई की समस्या से किसान क्या सरकारें उठाएंगी कोई ठोस कदम या बना रहेगा चुनावी मुद्दा

सवाल यह उठता है कि अगर बुंदेलखंड के बांदा जिले में ही 184 नहरें हैं और चित्रकूटधाम मण्डल सैकड़ों  ट्यूबवेल हजारों कुंऐं और नदी बांध भी तो फिर यहां का किसान सुखे की मार क्यों झेल रहा है और भुखमरी की कगार में क्यों है क्या सरकारे सिर्फ किसानों के मुद्दो को चुनावी मुद्दा ही बनाती रहेगी या फिर  जो सिंचाई के साधन है उन पर भी निगाहे डालेगी |
ताकि उन नहरों और कुआं तालाबों का सुधार हो सके और यहां का किसान सिंचाई का पानी पाकर खुशहाल हो सके क्योंकि अगर देखा जाए तो बांदा जिले में कुआं तालाब जियाओ अभियान भी पिछले साल  पूर्व हीरालाल ने पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए शुरु किया था,जो एक बहुत ही अच्छी पहल थी जिसको देखकर किसानों के मन में एक जिज्ञासा बढ़ी थी कि उनको अब पानी मिलेगा लेकिन आज की स्थिति यह है कि उस योजना का धरातल में कोई पता नहीं है और किसान उसी तरह पानी की समस्या से जूझ रहा है जैसे पहले से भी सिंचाई के इतने सारे साधन होने के बावजूद किसान सूखे की मार झेलता चला आ रहा है,तो फिर इस अभियान का क्या मतलब जब धरातल में उनका कोई महत्व ही नहीं है और सिर्फ सरकारी धन का बंदरबांट किया गया है|