बिहार चुनाव 2025 में छोटे दलों की बढ़ती भागीदारी क्या बदलेगी सत्ता का गणित?
लेखन-हिंदुजा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब क़रीब है। चुनावी हलचल बिलकुल शुरू है तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार बिहार के दौरे पर दीखते हैं। राजनैतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार बिहार चुनाव में छोटी पार्टियों का रेला बहुत होगा और ये कई सीटों के निर्णय बदल सकती हैं। नई राजनीतिक पार्टियों का उभरना पुराने और स्थापित दलों के लिए एक चुनौती बन रहा है। पिछले करीब पचास सालों से बिहार की राजनीति मुख्य रूप से तीन नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है – राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव, जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतिश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के संस्थापक स्वर्गीय राम विलास पासवान और अब उनके बेटे चिराग पासवान जिन्होंने केंद्रे में मंत्री होने के बावजूद बिहार विधानसभा चुनावो में खड़े होने का ऐलान कर दिया है और वो भी आरक्षित नहीं सामान्य सीट से।
कौन हैं बिहार की छोटी पार्टियां?
मुकेश सहनी की वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी), प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और आरसीपी सिंह की ‘आप सबकी आवाज़’ (जो अब जन सुराज में शामिल हो चुकी है) जैसी कई छोटी पार्टियां इस बार के चुनाव में बड़े दलों की राजनीति को प्रभावित कर सकती हैं। इस साल अप्रैल के महीने बिहार में दो नयी पार्टियों का ऐलान हुआ। सिविल सेवा से इस्तीफा देने वाले पूर्व IPS अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे की हिंद सेना पार्टी और पूर्व कांग्रेस नेता आई.पी. गुप्ता ने की इंकलाब पार्टी।
विकासशील इंसान पार्टी
मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी की स्थापना 2018 में हुई । विकासशील इंसान पार्टी शुरू में महागठबंधन के साथ थी लेकिन सीट बंटवारे को लेकर हुए विवाद और उनके अनुसार राष्ट्रीय जनता दल द्वारा छोटे दलों को अहमियत न देने के कारण मुकेश सहनी ने गठबंधन छोड़ दिया। 2020 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने NDA में शामिल होकर 11 सीटों पर चुनाव लड़ा जिनमें से पार्टी ने 4 सीटें जीती। हालांकि खुद मुकेश सहनी चुनाव हार गए। VIP पार्टी वोट शेयर में 1.52% भागीदार रहे। VIP 2025 में 60 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। सहनी इस समय विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा है जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां शामिल हैं। मुकेश सहनी ने 60 सीटों की मांग करते हुए ये दावा किया कि उनकी पार्टी 150 से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
सीपीआई- ऍम-अल लिबरेशन पार्टी उर्फ़ ‘माले’, सीपीआई- ऍम & सीपीआई
बिहार विधानसभा चुनाव में वाम दल (लेफ्ट पार्टियाँ) अब महागठबंधन का अहम हिस्सा बन गए हैं। 2020 में तीन वाम दल—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी CPI(M)— ने मिलकर 243 में से 29 सीटों पर चुनाव लाडे थे जिनमें से उन्होंने 16 सीटें जीती थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने अकेले ही 12 सीटों पर जीत पायी थी। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने हाल ही में मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी 40 से 45 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
हिंदुस्तानी एवं मोर्चा
इन दलों के अलावा बिहार के और दलों मेंपूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) है। जीतन राम मांझी बिहार के एक बड़े दलित नेता के जैसे जाने जाते हैं। HAM पार्टी 2015 में स्थापित हुयी थी। 2015 के चुनावों में HAM ने अकेले 21 सीटों में चुनावो लड़ा था जिसमें से केवल 1 सीट पर उन्हें जीत मिली थी और लगभग 2% वोट हासिल किये थे। वहीँ 2020 के चुनाव में HAM ने जेडीयू के साथ लड़ा था और 7 सीटों में से 4 सेटों पर जीत हासिल की थी। हलाकि इनका वोट शेयर 0.8% था फिलहाल ये एनडीए गुट में हैं।
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी जो एनडीए में शामिल है। कुशवाहा ने RLSP 2013 में जेडीयू से अलग होने पर बनायीं थी मगर वो एनडीए के साथ एक ही गुट में हैं। इस पार्टी को ज़्यादातर कोरी और कुशवाहा समाज का वोट मिलता है जो बिहार की प्रमुख पिछड़ी जाती में आती हैं। 2015 में पार्टी ने 23 सीटों में चुनाव लड़ा था और उनमें से 2 सीटें जीती थी और लगभग 2.56% वोट शेयर पाया था। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाले महागठबंधन से अलग कर लिया और बहुजन समाज पार्टी और जनतांत्रिक पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ गठबंधन कर लिया। RLSP ने 2020 में 104 सीटों से चुनाव लड़ा और एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन उसकी सहयोगी पार्टियाँ AIMIM और BSP कुल मिलाकर 6 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। RLSP का वोट शेयर 2020 में 1.77% रहा।
द प्लुरलस पार्टी
द प्लुरलस पार्टी की स्थापना 2020 में पुष्पम प्रिया चौधरी ने की। इस पार्टी ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपना चुनावी डेब्यू (पहला चुनाव) किया और सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन पार्टी के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए, जिसमें पार्टी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी भी शामिल थीं, जिन्होंने बांकीपुर और बिस्फी सीटों से चुनाव लड़ा था। इन्हे कुल 209,417 वोट मिले।
कौन सी पार्टियां कितनी सीटों से चुनाव लड़ेंगी?
हिन्द सेना के शिवदीप वामनराव लांडे ये तक ऐलान किया कि उनकी पार्टी आने वाले चुनाव में बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इनके अलावा जन सुराज पार्टी भी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बीएसपी ने भी बिहार के औरंगाबाद से ऐलान किया की वो भी सभी 243 सीटों में अकेले उतरेंगे।
इन पार्टियों का गढ़बंधन में आने की कितनी संभावना?
ऐसा लग रहा है कि ये सारे छोटे दल किसी भी बड़े दल के साथ गढ़बंधन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे तो इनका वोटकटवा बनने के ज़्यादा आशंका है। दरअसल, ऐसा देखा गया है कि छोटे दल बड़े पार्टियों के वोटों को काटने की भूमिका निभाते हैं क्यूंकि इनमे ज़्यादातर कोई उम्मीदवार सत्ता में नहीं आता मगर कुछ वोट ज़रूर ले जाता है जिससे चुनाव के परिणाम में फ़र्क़ पड़ता है। समुदाओं के वोट बिखरने से नतीजा बदल जाता है।
कौन है किसका वोट बैंक?
जन सुराज और द प्लुरलस पार्टी को छोड़ दें, तो बिहार की ज़्यादातर नई और छोटी पार्टियों का आधार जातीय और क्षेत्रीय है। लेकिन सिर्फ जाति के दम पर चुनाव जीतना अब मुमकिन नहीं रहा। ये बात चिराग पासवान समझ गए हैं- वो पासवान समुदाय के मजबूत नेता हैं लेकिन अब वो भी समझते हैं कि सिर्फ एक जाति के वोट से बात नहीं बनेगी। यही वजह है कि वे इस बार गैर-आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, ताकि व्यापक जनसमर्थन हासिल किया जा सके।
अगर हम पारंपरिक दलों की बात करें, तो RJD का मुख्य वोट बैंक यादव और मुस्लिम समुदाय रहा है। वहीं, JDU का आधार कुर्मी और कोरी समुदाय रहा है। इसके अलावा, बीजेपी के साथ गठबंधन के चलते जेडीयू को सवर्ण जातियों — जैसे राजपूत, भूमिहार और ब्राह्मण — का समर्थन भी मिलने लगा है। लोक जनशक्ति पार्टी के साथ आने से पासवान यानी दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी एनडीए खेमे में जुड़ता दिख रहा है।
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) का मुख्य वोट बैंक निषाद समुदाय है, जिसमें लगभग 20 से 22 उपजातियां शामिल हैं। बिहार में यह समुदाय अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में आता है। मुकेश सहनी की पार्टी VIP इस समुदाय का पहला संगठित राजनीतिक प्रतिनिधित्व करती है, क्योंकि इससे पहले निषाद समुदाय का कोई प्रभावी नेतृत्व नहीं रहा है। राज्य की कुल आबादी में इस समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 10% मानी जाती है, जो इसे राजनीतिक रूप से एक अहम ताकत बनाती है।
अब सवाल ये है कि नई पार्टियां — जैसे हिंद सेना, इंकलाब पार्टीया जन सुराज — इन पारंपरिक जातीय समीकरणों में कितना घुस पाती हैं? क्या ये दल किसी विशेष समुदाय में अपनी पकड़ बना पाएंगे, या सभी जातियों को जोड़कर कोई नई राजनीति गढ़ेंगे? यह तो आने वाला चुनाव ही तय करेगा।
क्या है NDA का चुनावी रणनीति?
एनडीए गुट में चुनावी राजनीति शिखर पर है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार जेडीयू 103 और बीजेपी 102 सीटों से चुनाव लड़ेंगी। हलाकि कुछ ही दिनों पहले ये अंदेशा लगाया जा रहा था कि शायद मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नितीश कुमार के राजनीति के अंतिम दिन चल रहे हैं लेकिन आये दिनों में देखा गया है कि उनकी एनडीए गढ़बंधन की बीजेपी और लोक जनशक्ति पार्टी ये चुनाव ने केवल नितीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ने की बात करते दिख रहे बल्कि उन्हीं को इस बार का भी मुख्यमंत्री का चेहरा बता रहे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान भी जो अभी तक उलझन में लग रहे थे मगर अब खुले आम नितीश कुमार को ही सीएम का चेहरा बता रहे हैं। मगर ये राजनीति है दोस्तों – तो कब क्या खेल हो जाए इसका सटीक अंदेशा लगाना मुश्किल है।
‘महागठबंधन’ का क्या?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी (VIP), सीपीआई, सीपीआई (एम) और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के शीर्ष नेता इस हफ्ते एक अहम बैठक कर सकते हैं। बैठक में सीट बंटवारे, साझा न्यूनतम कार्यक्रम और संयुक्त चुनाव प्रचार की रणनीति पर चर्चा होगी। हालांकि, गठबंधन में शामिल दलों की ओर से सीटों की अधिक मांग इस एकता के लिए चुनौती बन सकती है। VIP जहां 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रही है, वहीं CPI (ML) लिबरेशन 40 से 45 सीटों पर अपनी दावेदारी जताने को तैयार है। कांग्रेस भी इस बार पहले से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की उम्मीद में है। ऐसे में आने वाले दिनों में विपक्ष की रणनीति और उसके भीतर के समीकरण देखना दिलचस्प होगा।
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