भदोही जिला, ‘कालीन नगरी’ के नाम से जाना जाता है लेकिन कोविड-19 के बाद से यहां काफ़ी शांति नज़र आ रही है। जिन कारखानों में दिन-रात सैकड़ों मज़दूर काम करते थे और खटखट की आवाजें होती थीं, घरों में खच-खच कैंचियां चलती थी, गलैचि फिनिशिंग का काम होता था और इस काम से भदोही का मज़दूर तो पलता ही था लेकिन अन्य जिलों और राज्यों का मज़दूर भी वहां काम करके अपना परिवार पालता था।
आज यह काम बहुत ही धीमा चल रहा है। बाहरी मज़दूर तो बहुत ही कम है लेकिन यहां खुद भदोही के मजदूरों को भी काम नहीं मिल पा रहा है। उनको अब अपना परिवार पालने के लिए पलायन करना पड़ रहा है। जिससे कारीगरों से लेकर मजदूर, ट्रांसपोर्ट, छोटे ठेलिया वाले लोग, रिक्शा वालों, कारखानों और दुकानदारों तक पर बुरा असर पड़ रहा है।
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जब खबर लहरिया ने इसकी कवरेज की तो लोगों ने बताया कि यहां लगभग बड़े और छोटे मिलाकर 2 हज़ार कारखाने हैं, जिसमें 50 हज़ार से ऊपर मज़दूर काम करते थे। लेकिन कोविड-19 के बाद से वैसे तो सभी व्यवसायिक उद्योगों का बुरा हाल है पर जिन उद्योगों का नाता अमेरिका और यूरोप से जुड़ा था जैसे कि भदोही का कालीन उद्योग, उन पर ज़्यादा ही असर देखने को मिला है।
दरअसल भदोही के कालीन व्यापारियों पर कोरोना के प्रकोप ने दोहरी मार डाली है। जिससे अपने देश और विदेश में इसके प्रकोप की वजह से अलग-अलग तरीके से इस घरेलू कालीन उद्योग को नुकसान पहुंचा है।
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लोगों ने बताया कि भदोही में बनने वाले कालीन का सबसे बड़ा खरीददार देश अमेरिका और यूरोप है जहां पर माल जाता था। कोविड-19 के बाद से जो बाहर से माल आता था वह भी उतना नहीं आ रहा। पहले कोविड-19 और अब बताया जा रहा है कि वहां लड़ाई चल रही है। जो कारीगर कोविड के समय गए थे वे वापस नहीं आए। यही वजह है कि कारखानों में या घरों में इक्का-दुक्का मज़दूर ही काम कर पा रहे हैं। उनको भी भरपूर काम नहीं मिलता क्योंकि ऊपर से मटेरियल ही नहीं आ पाता जिसके कारण रोज़गार धीमा हो गया है और लोगों को बाहर के लिए पलायन करना पड़ रहा है।
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