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आज़ाद भारत की एक और सच्ची तस्वीर

आज़ादी ! इस शब्द का मतलब हर किसी के लिए अलग-अलग होता है। एक महिला होने के नाते मेरे लिए आत्मनिर्भर बनना, अपनी खुद की एक पहचान बनाना आज़ादी है। तो वहीँ एक गरीब परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम कर पाना असली आज़ादी है। किसी बच्चे के लिए उसकी मनपसंद का खिलौना मिलना आज़ादी है तो किसी बच्चे के लिए बाल श्रम करके एक टॉफ़ी खरीद पाना ही आज़ादी है।

इन सभी बातों को भूलकर हमारे देश का प्रत्येक नागरिक 15 अगस्त को देश के आज़ाद होने का जश्न मनाता है। महापुरुषों ने 75 साल पहले देश को अंग्रेज़ों से मुक्त कराया और यहाँ के नागरिकों को उनके अधिकार दिलाने के लिए सैकड़ों लोगों ने अपनी जानें भी गंवाईं। पर आज आज़ाद भारत में रह रहे कितने नागरिक अपने आप को स्वतंत्र समझते हैं?

रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में 2020 में 20% आबादी बेरोज़गार थी। स्माइल इंडिया फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 6-14 वर्ष के 35 मिलियन बच्चे स्कूल नहीं जाते। NCRB की एक रिपोर्ट के अनुसार यहाँ आज भी रोज़ाना 88 मामले महिला हिंसा या महिला शोषण के आते हैं।

हर साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र गान गा कर, वीर-जवानों की जंगों की कहानी याद करके हमें आज़ाद भारत में रहने का अहसास तो दिलाया जाता है लेकिन बुनियादी हकीकत तो कुछ और ही दर्शाती है। आज़ादी दिवस के अवसर पर हम पहुंचे कुछ ऐसे समुदायों से बात करने जो आज भी अपनी पहचान पाने के लिए जंग लड़ रहे हैं। इस वक़्त हम खड़े हैं चित्रकूट ज़िले के रेढ़ी भुसौली गाँव में, जहाँ रहते हैं कुछ नक्कल समुदाय के लोग।

पुराने समय में यह लोग राजा-महाराजाओं के यहाँ गाने-बजाने का काम करते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बदला इनकी पहचान मानो लुप्त सी हो गई। तो चलिए जानते हैं कि इन लोगों के लिए आज़ादी क्या है! छतरपुर ज़िले के कई इलाकों में रोड पर आपने कुछ लोगों को नाच-गाना करते और मदारी का खेल दिखाते हुए पाया होगा। लेकिन ये लोग कहाँ रहते हैं, कहाँ से आये हैं यह जानने में किसी को दिलचस्पी नहीं होती।

आइए जानते हैं कि बिना घर और किसी भी सुविधा के आखिर कैसे ये लोग अपना जीवन व्यापन कर रहे हैं। एक ऐसा गाँव जहाँ बिजली नहीं, रहने को घर नहीं, जंगलों के बीच बसे इस गाँव के बारे में शायद ही कोई जानता होगा। हम खड़े हैं चित्रकूट के अकबरपुर गाँव में और यहाँ रहते हैं आदिवासी परिवार। इस गाँव में विकास का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है, पन्नी डालकर और मिट्टी के घरों में रह रहे ये लोग आज़ादी के नाम पर बस मूलभूत सुविधाएं ही चाहते हैं तो देखा आपने कैसे हमारे देश में आज भी कितने परिवार विकास, योजनाओं के लाभ और मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।

आज़ादी के इस मौके पर हम यही चाहते हैं कि सरकार इन लोगों को उनका हक़ और उनकी पहचान दिलाये ताकि वो भी खुलकर आज़ादी के इस जश्न का हिस्सा बन सकें। आप भी हमें कमेंट करके यह ज़रूर बताइयेगा कि आखिर आप के लिए क्या आज़ादी है? और तब तक के लिए जय हिन्द जय भारत!

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