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सफलता की दौड़ में जीवन से हारते महत्वकांक्षी छात्र

10922624_1186337571392755_730608353359154264_n-copyकनुप्रिया गोयल स्वतंत्र लेखिका, विचारक और पेशे से इलेक्ट्रानिक इंजीनियर हैं

हाल में ही देश के सर्वोच्च तकनीकी संस्थानों में प्रवेश के लिए आईआईटी परीक्षा का रिजल्ट आया है। कुछ छात्र-छात्राओं ने सफलता की कहानियां रचीं और कुछ के हिस्से में असफलता आयी। सफलता-असफलता हर परीक्षा का एक हिस्सा है मगर कब यह जीवन और मौत का सवाल बन जाता हैं पता ही नहीं चलता। कोटा में आईआईटी की मुख्य परीक्षा पास कर लेने वाली लड़की ने आत्महत्या कर ली और अपने सुसाइड नोट में उसने इसका दोषी कोचिंग इंस्टीट्यूट को बताया। उसने लिखा है कि ‘यह तनाव और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाले सभी कोचिंग इंस्टीट्यूट बन्द होने चाहिए’। वो अंतरिक्ष विज्ञानी बनना चाहती थी इंजीनियर नही। वो सफल तो हो गयी लेकिन अपने सपने खत्म होने का दर्द नहीं झेल पायी और मौत को गले लगा लिया।
हमारे समाज में जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों और चुनावो के समय, गारंटी एक मुख्य आधार होता है। ये एक प्रकार का व्यवस्थागत गणित है, जिसमें पूंजी के साथ धर्म, जाति और पितृसत्ता का गुणा-जोड़ ही शामिल होता है। करियर के चुनाव में अधिकतर पूंजी का गणित होता है। कमाल ये है कि इस गणित में न क्षमताओ का आंकलन होता है और न स्वयं की इच्छा का।
आइंस्टीन ने कहा था हर इंसान जीनयस है लेकिन अगर आप मछली को उसके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से जज करेंगे तो वो पूरी जिंदगी यह सोचते हुए जीएगी कि वो मूर्ख है।
व्यवस्था के लिये जरूरी है कि हर क्षेत्र में विकास पर्याप्त के मौके हों, मछली को नदियां मिलें और पंछियो को आसमान। उसी प्रकार, अभिभावक बच्चों की प्रकृति समझें और सही चुनाव करने में मदद करें। ताकि किसी के जीवन का मूल्यांकन उसके द्वारा प्राप्त सम्मान और पूंजी की जगह मानवीय समाज को दिए उसके योगदान से हो।
सोचने वाली बात यह है कि क्यों अभिभावक बच्चों पर अपने दायित्व का बोझ, सामाजिक सम्मान और पूंजी के बढ़ते स्तर के रूप में डालना चाहते हैं? क्या यह बात महज सफलता की है? क्या सपने, पूंजी और सामाजिक स्तर के आगे छोटे होते हैं?