खबर लहरिया ताजा खबरें शौच मुक्त भारत की असल तस्वीर

शौच मुक्त भारत की असल तस्वीर

2 अक्टूबर सरकार के लिए खास दिन, लेकिन ये खास गांधी जंयती के लिए नहीं है। बल्कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के तीन साल पूरे होने पर इसकी सफलता का मूल्यांक के कारण है। देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए बनी इस योजना में हर घर में शौचालय होने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। शौच मुक्त भारत करने के लिए पैसा भी पानी की तरह बहा, जिसके लिए सेस लगाकर लोगों की जेबों से पैसा भी निकाला गया। पर अभियान की जमीन हकीकत कुछ और ही है।
2 अक्टूवर 2014 से शुरु हुई, इस योजना के अंतर्गत 2019 तक 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण कराना था। 2015 में इस योजना के तहत 49 लाख शौचालयों का निर्माण हुआ। शौचालय निर्माण की धीमी गति के कारण ही 2017 और 2018 तक 2-2 करोड़ शौचालय बनवाने हैं। इस योजना के तहत गांवों में कई शौचालयों का निर्माण कागजों में हुआ क्योंकि गांवों में लोग अभी शौचालयों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। ऐसा ही एक गांव चटचटगन बांदा जिले में है, जिसे इस साल अभियान को सफल दिखाने के लिए ओडीएफ घोषित कर दिया है। परन्तु इस गांव के कई लोग आज भी शौच के लिए बाहर जाते हैं।
स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए बांदा जिले में हो रही है लीपापोती
शौचालय प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए लोगों के व्यवहार को बदला भी बहुत जरूरी है। सालों से बाहर शौच के लिए जा रहे ये लोग घर में शौचालय बन जाने से उसका प्रयोग नहीं करेंगे। शौचालय प्रयोग करने के लिए लोगों को शौचालय में शौच करने के लाभ बताने होंगे। दूसरा बड़ा कारण जो शौचालय का प्रयोग करने में आता है, वह पानी की कमी हैं, जहां लोग पानी की पूर्ति के लिए कोसों मील की दूरी तय करते हैं, वे एक बोतल पानी का इस्तेमाल ही शौच के लिए करेंगे, नाकि शौचालय में सफाई बनाने के लिए एक बाल्टी पानी बर्बाद करेंगे। पानी की उपलब्धता जब तक लोगों को नहीं मिलेगी, वे शौचालय में नहीं जाएंगे।
तारीक आ रही है पास, अभियान रेंग रहा है पीछे पीछे! बुंदेलखंड में देखिये स्वच्छ भारत की ज़मीनी तस्वीर
बुंदेलखंड में इस अभियान की सफलता तो देखिए। शौचालय तो बनने हैं पर प्रयोग के काम के नहीं हैं, क्योंकि कई बार आधे ही शौचालय निर्माण होता है, तो कभी बेकार सामान लगाने के कारण वे ज्यादा दिन तक चलते नहीं हैं। स्कूलों में शौचालयों का निर्माण तो हो रहा है, लेकिन इन शौचालयों की सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके कारण ही इनका प्रयोग नहीं हो रहा है। शौचालय तो बन रहे हैं, पर उनकी सफाई पर भी ध्यान दिया जाए, क्योंकि गंदे शौचालय में शौच करना खुले में शौच करने से ज्यादा खतरनाक है। काश! इस अभियान को सफल बनाने वाले ये सब बातें जान पाते तो शायद आज इस अभियान की हकीकत कुछ और ही होती।