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महिला पत्रकारों की कलम से – चुनावी पारदर्शिता पर पर्देदारी क्यों !

स्मिता सिंह वत्स

स्मिता सिंह वत्स

स्मिता सिंह वत्स पिछले करीब छह सालों से पत्रकारिता से जुड़ी हैं. मौजूदा समय में कई अखबारों और पत्रिकाओं में लेखन करती हैं। इससे पहले पी7 और राजस्थान पत्रिका में काम कर चुकी हैं।

नगर निकाय चुनावों के दूसरे चरण के मतदान हुए, नतीजे भी अब सामने हैं। लेकिन एक सवाल जो इन चुनावों की घोषणा से शुरू हुआ था उसका जवाब अब तक नहीं मिला है। वह यह है कि आखिर नगर निकाय उम्मीदवारों की योग्यता को परखने का यह कैसा पैमाना चुन रहा है राज्य चुनाव आयोग। पिछले वर्ष दिसम्बर माह की शुरुआत में ही राजस्थान सरकार ने पंचायत चुनावों में उम्मीदवारी पर्चा भरने वालों के लिए दसवीं पास होने की अनिवार्यता के नियम की घोषणा की थी। कुछ ही समय के बाद एक नियम और जोड़ा गया, वह यह कि नगर निकाय और पंचायत चुनावों के लिए उम्मीदवारी पेश करने वाले पहले कोर्ट का हलफनामा पेश करें कि उनके घर में शौचालय है और परिवार का कोई भी सदस्य खुले में शौच नहीं जाता।

पहली नजर में देखें तो चुनाव लड़ने के यह मानक विकासशील सोच के तहत किए गए प्रयास नजर आते हैं, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। इस तरह के नियम क्या दलित, गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके से आने वाले उम्मीदवारों को किनारे लगाने का जरिया नहीं? राजस्थान में इस तरह की नियमावली के साथ हुए यह पहले निकाय चुनाव हैं। नब्बे के दशक में कई राज्यों ने दो से अधिक बच्चे होने की सूरत में पंचायत चुनावों के लिए उम्मीदवार को अयोग्य घोषित किए जाने का नियम लागू किया गया था। जिसके तहत सर्वाधिक बिहार और कई अन्य राज्यों में महिलाओं समेत अल्पसंख्यक समाज और पिछड़े वर्ग के नेताओं को उनके पद से हटाने और चुनावों के लिए उनकी दावेदारी निरस्त करने के मामले सामने आए थे। संविधान में हुए 73वें संशोधन ने स्थानीय निकाय स्तर पर महिलाओं को पचास प्रतिशत सीटों का आरक्षण तो दिया है, लेकिन राज्य सरकारों के इन कदमों से संविधान द्वारा दिए इस हक पर भी गाज गिरी है। साथ ही ऐसे नियम उम्मीदवार को योग्य साबित करने के लिए फर्जी कागजातों और गलत जरियों के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दे सकते हैं। स्पष्ट दिशा-निर्देशों के आभाव में नौकरशाही अपने राजनैतिक आकाओं के इशारों पर इनका दुरुपयोग करते भी नजर आते हैं। मेरे विचार से इस तरह के नियम और कानून विकास के लिहाज से कम और राजनीति की उस सोच से प्रेरित ज्यादा लगते हैं जहां केंद्र एक सशक्त राज्य सरकार नहीं चाहती और राज्य सरकार को मजबुत स्थानीय स्वशासन से परहेज होता है।