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बड़े बांधों से बना खतरा

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मध्य प्रदेश के खांडवा जिले में 2012 में वहां के लोग जल सत्याग्रह का हिस्सा थे। लोग नर्मदा नदी पर बने ओमकारेश्वर डैम का विरोध कर रहे थे। सत्रह दिनों तक साठ गांवों के लोग गले तक के गहरे पानी में खड़े रहे। उनकी मांग थी कि राज्य सरकार बांध के जल स्तर को नीचा करे। भारी बारिश से बांध का जल स्तर बढ़ गया था जियके कारण एक हज़ार एकड़ उपजाऊ ज़मीन डूब गई थी।

आज दुनिया भर में बड़े बांधों को ले कर चर्चा चल रही है। बड़े बांधों से ज़मीन, नदी और पर्यावरण पर गहरा असर पड़ रहा है। ऐसे में इन बांधों के निर्माण पर सवाल उठाना ज़रूरी है। पिछले दस सालों में हुए काम से हमें इन बांधों से होने वाले नुक्सान के बारे में यह जानकारी पता चली है –
– बड़ बांधों की वजह से कई जीव-जंतु, खेत-खलिहान और जंगल खत्म हो गए हैं और चार से आठ करोड़ लोग बेघर हो गए हैं।
– बड़े बांधों को बनाने में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। भारत में ही सरदार सरोवर बांध के निर्माण में चालीस हज़ार करोड़ रुपये खर्च होने की बात है। सिर्फ गंगा नदी पर ही चैदह बड़े बांध बने हैं या बनाने की योजना है।
– माना जाता है कि बांध से बाढ़ को रोका जा सकता है। जहां बांध सालाना बाढ़ को अक्सर रोक सकते हैं वहीं बांध से अचानक पानी छोड़ने की वजह से कई इलाकों में बाढ़ आई है। अमेरिका में 1960 से 1985 के बीच सरकार ने चार हज़ार करोड़ रुपये खर्च किए बांध के कारण आने वाली बाढ़ को रोकने में।
– अक्सर पुराने बांध के रुके हुए पानी से फसल, ज़मीन और मछलियां खत्म हो जाती हैं। इस पानी से बीमारियां भी फैलती हैं।
बाढ़, बिजली की कमी और सिंचाई की ज़रूरत सिर्फ बड़े बांधों से पूरी नहीं हो सकती है। इनसे पहुंचने वाला नुक्सान कहीं ज़्यादा है। आज ऐसे तरीकों की ज़रूरत है जिनसे नदियों को और ज़मीन को नुक्सान न पहुंचे। जिनसे लम्बे समय तक ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को फायदा हो, न कि कुछ लोगों को फायदा और हज़ारों को नुक्सान।