खबर लहरिया ताजा खबरें बजट 2018: किसानों की रिकॉर्ड तोड़ फसल के बाद भी क्यों सरकार किसानों के लिए नहीं सोचती?

बजट 2018: किसानों की रिकॉर्ड तोड़ फसल के बाद भी क्यों सरकार किसानों के लिए नहीं सोचती?

भारतीय किसानों ने 2017 में रिकॉर्ड तोड़ फसल का उत्पादन किया जिसके बाद सरकार ने कृषि बजट में 2017-18 में 111% की वृद्धि की। लेकिन इसके बाद भी  कीमतें लगातार गिरती जा रही है। जिसकी वजह से किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं।
आकड़ों के अनुसार, 2015 में 8,007 किसानों ने आत्महत्या कर की थी। 2016 से 2017 के बीच अवैतनिक कृषि ऋण 20% बढ़ने के बाद कृषि पर निर्भर 60 करोड़ भारतीय किसान लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
यह स्थिति तब है जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में आने से पहले 2022 तक खेती की आय में दोहरीकरण का वादा किया था।
गिरते दामों की वजह से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में गुस्साए हुए किसान टमाटर की अपनी फसल को खुद ही नष्ट करते रहे हैं।
वहींगेहूं, चावल, मोटे अनाज और दलहन की फसलों में अब तक का सर्वाधिक उत्पादन हुआ है। कुल पैदावार 27.56 करोड़ टन हुई है जो पिछले रिकॉर्ड उत्पादन के मुकाबले चार फीसद अधिक है। वहीं, खाद्यान्न में धान की पैदावार 11 करोड़ टन से अधिक हुई है, जो पिछले फसल वर्ष के 10.44 करोड़ टन से अधिक है। गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 9.83 करोड़ टन पहुंच गई है, जो पिछले साल के 9.22 करोड़ टन से अधिक है। मोटे अनाज की पैदावार 4.41 करोड़ टन हुई है, जबकि पिछले फसल वर्ष में यह 3.85 करोड़ टन थी। मोटे अनाज में मक्के की रिकॉर्ड पैदावार 2.62 करोड़ टन हुई है।
इसी तरह, बागवानी उत्पादन भी एक रिकॉर्ड था, जो लगभग 300 मिलियन टन या 2015-16 से 4.8% अधिक था, इसमें आलू की पैदावार अधिक थी जो पिछले वर्ष से 11% अधिक था।
वहीं, वर्ष 2014-15 के अंत में, भारत के कृषि क्षेत्र में पिछले चार वर्षों की तुलना में प्रतिवर्ष 4% की वृद्धि हुई।
इसी बीच, 2016-17 का आर्थिक सर्वेक्षण हमें बताता है कि भारत के 17 राज्यों में कृषि परिवारों की औसत आय 20,000 रुपये है, जो देश की औसत आय के करीब आधी है।
इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार , भारत के 90 मिलियन कृषिप्रधान घरों में से करीब 70% किसान हर महीने औसत से कम कमाते हैं। इसका एक कारण बारिश भी है। 2017 मेंसामान्यमानसून होने के बाद भी, 8 राज्यों को सूखा प्रभावित घोषित किया गया था। जिसकी वजह से, इकोनोमिक टाइम्स के  6 अप्रैल, 2017 के अंक में  जलवायु परिवर्तन के एक युग में अनिश्चित वर्षा के लिए भारत के खेतों की भेद्यता का पता चला।
वहीं, उत्पादन बढ़ने के साथ ही सिंचाई के लिए पानी की मांग 2015 में 910 अरब घन मीटर से बढ़कर 2050 में 1,072 बिलियन क्यूबिक मीटर हो गई। सिंचाई के लिए पानी, उद्योग और ऊर्जा की जरूरतों की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है। जो सूखे के कारण 2011 से लगातार एक दशक से अधिक, प्रति व्यक्ति उपलब्ध पानी 15% से भी कम हो गया है।
अगले पांच वर्षों में किसानों की आय को दोगुना करने के लिए  प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केट (नैम), सॉयल हेल्थ कार्ड्स, नीम का लेप चढ़ा यूरिया (नीम कोटेड यूरिया) और हर बूंद पर अधिक फसल (मोर क्रॉप पर ड्रॉप) आदि ऐसी ही कुछ योजनाएं हैं। इन प्रमुख कार्यक्रमों के अलावा, कुछ और कार्यक्रम भी हैं, जैसे, उर्वरक सब्सिडी का प्रत्यक्ष हस्तांतरण और बाजार हस्तक्षेप वाले कार्यक्रम भी शामिल हैं लेकिन इनका विस्तार कहाँ और कैसे हो रहा है इसका सही अनुमान आंकड़ों में अभी नहीं है।

फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड