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अफवाहों के बाजार से बनते त्यौहार

कोई ही ऐसा इंसान होगा, जिसने कभी कई अफवाह नहीं सुनी हो। अफवाह को समझने के लिए रश्मि की बात अच्छा उदाहरण होगी। रश्मि बताती है कि वह बचपन में बहुत शैतान थी, उसे भागने-दौड़ने वाले खेल पसंद नहीं थे। जिस कारण से उसने अपने एक दोस्त को एक कहानी सुनाई, कि मैदान में एक सफेद कपड़े पहना भूत आ रहा है। उसके कुछ हफ्ते बाद बच्चों ने गली में खेलना शुरू कर दिया। और रश्मि को इसकी वजह एक सफेद घोड़े में बिल्ली जैसी आवाज निकालने वाला भूत पता चली। रश्मि कहती हैं कि इस भूत की कहानी उसके भूत की कहानी से बिल्कुल अलग थी। उसे उस दिन पता चला की बात लोगों के बीच से होकर गुजरने से क्या से क्या बन जाती है।

आजकल ऐसी ही अफवाह के कारण महोबा जिले में मामी-भतीजे का एक त्यौहार बन रहा है। मामी अपने भतीजे को एक टिफिन में पेडा रखकर खिलाएं। तो फिर क्या लोग चल पड़े इस नये त्यौहार को मनाने। सजी-धजी महिलाएं अपनी ननदों के घर जाकर भतीजे को पेडा खिला रही है। पेडे खाने के बाद इन मामियों को श्रृंगार के सामान के साथ एक साड़ी दी जा रही है। ये तो बात इस त्यौहार की थी। लेकिन इसके अचानक से चलने के पीछे की वजह हमें महोबा की रहने वाली ज्ञानवती बताती हैं कि एक मामी से उसके भतीजे ने प्रसाद का पताशा खिलाने को कहा, पर मामी ने उसे कहा कि मैं पहले मंदिर में चढ़ा आती हूं। उसके बाद मामी जब लौटकर आई तो उसने देखा कि उसका भतीजा मार हुआ है। उसने मरे भतीजे के मुंह में पताशा डाला और वह जिंदा हो गया। उसके बाद भतीजे ने अपनी मामी को कहा कि सभी मामियां अपने भतीजे को मिठाई खिलाएं। ये कहानी सुनने के बाद जब ज्ञानवती से पूछा गया कि ये किस गांव की घटना है तो उसने झट से बोल दिया कि ये उसने नहीं पता क्योंकि ये कहानी सबकी तरह उसने भी किसी से सुनी है। इस त्यौहार को मानाने के लिए उत्साहित मालती खुश होकर बोलती है कि हम पेडा खिलाएंगे और हमें पैसों के साथ साड़ी मिलेगी। वहीं 8 साल का रोहित, जो अभी पेडा खाकर खुश है, बोलता है कि उसने पेडा खाया है और मामी को साड़ी और अन्य सामान मां देगी।

वहीं कूजा कहते हैं कि सब बकबास है। दुकानदारों की दुकान नहीं चल रही थी, ये अफवाह उड़ाकर बाजार चलाया जा रहा है। कूजा की बात अनसुनी नहीं की जा सकती है, क्योंकि टिफिन से लेकर पेडा, श्रृंगार का सामान और साड़ियों की दुकानों पर सामान्य दिनों से ज्यादा भीड़ लगी है। दुकानदार विनोद कुमार कहते हैं कि भाव तो चीजों के नहीं बढ़े पर आज दिनभर में 20-25 महिलाएं एक या चार टिफिन खरीद के ले जा रही हैं। सियारानी भी यही बात बताती है कि पेडे वाले से लेकर श्रृंगार वाले की दुकान चल रही है। इस त्यौहार ने गांव में लोगों के कम खर्च करने की प्रवृत्ति को बदलकर बाजार को तेजी दे दी है।  

इस तरह की अफवाह यहां उड़ती रहती हैं। बांदा की रहने वाली सीमा ने ये बात बताती कि कुछ साल पहले झांसी जिले से एक अफवाह उड़ी, जिसके बाद जेठनियों ने अपनी देवरानी को नई साड़ी दी। खैर सीमा देवरानी थी, तो उन्हें एक साड़ी मिल गई। उसके बाद के साल में उन्हें फिर इस अफवाही त्यौहार की साड़ी उन्हें नहीं मिली। इन क्षेत्रों में इस तरह के कई अफवाही त्यौहार अफवाह के फैलने के कारण मनाएं जाते हैं, जो अफवाह के खत्म होने के साथ खत्म हो जाते हैं। इन अफवाहों को कौन फैलाता है, इसकी जांच करना मुश्किल काम है, पर कहीं न कहीं त्यौहारों को अपने मुनाफे में बदलने वाला बाजार इसका पूरा फायदा ले जाता है। शहरों में भी तो लोग त्यौहार की रौनक दिलों से ज्यादा बाजार के विज्ञापनों में पाते हैं। खैर, महोबा में लोग इस त्यौहार की खुशी में खुश हैं और रही बात अफवाह की तो अफवाहें ऐसे ही नहीं फैलती उनके प्रसार में हमारी भी निजी स्वार्थ होते हैं। दुनिया में सब ही ऐसी बातों को मान रहे हैं, जो उनके कानों ने सुनी है।

-अलका मनराल