नीति आयोग द्वारा ज़ारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में भी जानकारी दी गई है कि 2015-16 से 2019-21 के बीच भारत में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। आखिर ये लोग कौन हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी खबर लहरिया की सालों की रिपोर्ट्स तो सिर्फ ये दिखा रही हैं कि योजना सब हवा है, वो हवा जो गांवो के परिवेश में नहीं बहती।
गरीबी मुक्त होगा भारत! लेकिन कैसे? शायद पीएम गरीब कल्याण योजना, पीएम आवास योजना, स्वास्थ्य योजना व जल योजनाओं जैसी तथाकथित गरीबी मुक्त योजनाओं इत्यादि के दम पर!
लेकिन भारत में तो 234 मिलियन गरीब लोगों की संख्या है जो गरीबी से जूझ रही है। शहरों के मुकाबले अधिकतर गरीबी गांव के परिवेश में पाई गई है। ऐसा हाल ही में प्रकाशित यूएन रिपोर्ट का कहना है। फिर सरकार की गांवो से गरीबी को खत्म करने वाली योजनाएं, उनका क्या हुआ? ये योजनाएं तो गरीबी को खत्म करने की बात कर रहीं थी ना?
गांवो में सरकार द्वारा शुरू की गई तथाकथित गरीबी मुक्ति योजनाओं के ढांचे और दावों से जुड़े पहलुओं पर खबर लहरिया लंबे समय से रिपोर्ट करते हुए आई है।
नीति आयोग द्वारा ज़ारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में भी जानकारी दी गई है कि 2015-16 से 2019-21 के बीच भारत में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। आखिर ये लोग कौन हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी खबर लहरिया की सालों की रिपोर्ट्स तो सिर्फ ये दिखा रही हैं कि योजना सब हवा है, वो हवा जो गांवो के परिवेश में नहीं बहती।
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खबर लहरिया की रिपोर्टिंग बताती है कि वाराणसी जिले के ढाका गांव की मलाह बस्ती में साल 2022 में भी झुग्गी-झोपड़ी थी और आज 2024 में भी वहां झुग्गी झोपड़ी ही है। इससे पहले भी वहां झुग्गी-झोपड़ी थी।
यहां रह रहे लगभग 40 परिवार मछुआरा समुदाय से आते हैं। यहां किसी के पास स्थायी रोज़गार नहीं है। गीता नाम की महिला कहती हैं,’बारिश होती है तो बच्चे को लेकर रात भर जागते हैं।” क्योंकि घास-फूस से सिर-ढकने के लिए बनाया गया ये घर बारिश की थपेड़े नहीं सह पाता और अमूमन खो देता है अपनी स्थिरता, योजनाओं के दावों की तरह जिन पर कोई भार नहीं होता कि वो लोगों तक सही में पहुंच रही हैं या नहीं!
यूपी के प्रयागराज जिले के अलोपीगंज बाग में आने वाली मलिन बस्ती में लगभग 500 लोगों का परिवार रहता है। इस बस्ती तक भी साल 2015 से शुरू हुई पीएम ग्रामीण आवास योजना पहुंचने में असमर्थ हैं। अयोग्य है साबित हुई है, लोगों की बातें और ज़रूरतों को सुनने हेतु!
यहां रहने वाली बुज़ुर्ग महिला कहती हैं,कई पीढ़ियां आईं और मर गईं। यहां न बिजली है,न पानी है, न शौच की सुविधा और न ही स्थायी घर।
निवासी राज का कहना है, विकास के नाम पर टूटी-टूटी बस्ती,गंदा कीचड़,देखने के लिए खंभे हैं पर उसमें बिजली नहीं है।
मालती कहती,’चाहें गड्ढे का पानी पीये, चाहें कुछ भी। क्या करे, मरेंगे या जीएंगे, सरकार को क्या!”
बस्ती में मानव जीवन के लिए ज़रूरी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं है। इस बस्ती में यहां रह रहे कई लोगों की पीढ़ियां बसकर चली गईं पर किसी ने विकास या सुविधाओं का चेहरा नहीं देखा कि आखिर वह दिखता कैसा है?
साल 2023 में खबर लहरिया ने ललितपुर जिले के महरौनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गांव जरिया से रिपोर्टिंग की थी।
बिरजी, जो इसी गांव से हैं, अपने परिवार की मदद से उन्होंने घास-फूस, खपरैल, मिट्टी और कच्ची ईंटो से जंगलो के बीच अपना घर बना रखा है और बीतें कई सालों से वह वहीं रह रही हैं। उनका कहना है कि,“अब सरकार नहीं बनाती है तो खुद ही व्यवस्था करना पड़ता है। प्रधान से बोलते हैं तो वो कहते हैं कि उनका नहीं बनेगा।”
अधिकतर लोग मज़दूरी करते हैं। रोज़गार कभी रहता है,कभी नहीं। आय ज़रूरत के अनुसार न्यूनतम से भी कम है। बस्ती,गांव में रह रहे ये लोग,परिवार अपने बच्चों को शिक्षा नहीं दे पाते क्योंकि उतनी आय नहीं है। खाने का खर्चा निकालना ज़रूरी है। स्वास्थ्य सुविधा तो नहीं है पर हर जगह गंदगी है जो हर पल उन्हें यह एहसास दिलाती है कि उन्हें, गांवो को किस तरह से बस एक किनारे कर दिया गया है।
कुछ समय पहले, पीएम नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए नए केंद्रीय बजट 2024-2025 की घोषणा की गई थी। इस दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई 2024 को अपने बजट भाषण में कच्चे या अस्थायी मकान में रहने वाले लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 3 करोड़ अतिरिक्त आवास बनाने की घोषणा की थी। इस योजना पर मौजूदा वित्त वर्ष में 10 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। राज्य नगरीय विकास अभिकरण के अधिकारियों ने बताया कि उत्तर प्रदेश के हिस्से में करीब 20 लाख आवास आने की संभावना है।
लेकिन यह संभावना लोगों को आवास दिला पाती है या नहीं या फिर संभावित होकर रह जाती है इसका जवाब सालों से चली आ रही पीएम आवास योजना यहां यूपी के कई गांवो की प्रस्तुत रिपोर्ट बताने के लिए काफी है।
अर्थशास्त्री कहते हैं कि मानव जीवन के लिए रोटी,कपड़ा और मकान सबसे बुनियादी चीज़ें हैं। वह बुनियादी चीज़ें जो गांव में रह रहे लोगों के पास नहीं है और यह तथ्य इस बात को स्पष्ट करता है कि क्यों गांवो में सबसे ज़्यादा गरीबी है।
नीति आयोग द्वारा की गई गणना के अनुसार, देश में 2005-06 के दौरान बहुआयामी गरीबी 55.3 प्रतिशत थी जो 2013-2014 में 29.2 फीसदी हो गई। अगले दस सालों यानी 2022-2023 में यह घटकर 11.3 फीसदी रह गई है। ऐसा कथित तौर पर प्रस्तुत रिपोर्ट का मानना है।
जिस घटाव की यहां बात की जा रही है वह किस जगह से संबंधित है क्योंकि यह कमी गांवो में तो नहीं दिखाई दे रही। कथित सरकारी योजनाएं जो आज भी बेहतर भविष्य, रोज़गार, स्वास्थ्य,आवास उपलब्ध कराने का गीत गा रही हैं, उनकी धुन का राग गांवो तक पहुंचाना कच्चे घरों, और उन तक जाने वाले कच्चे रास्तों की तरह जो है भी और नहीं भी।
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