खबर लहरिया Blog मज़दूरी से बचत नहीं होती की आवास बनवा पाएं – ग्रामीण

मज़दूरी से बचत नहीं होती की आवास बनवा पाएं – ग्रामीण

बाँदा जिले के ब्लॉकों के गाँवो में रहने वाले कई ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें अभी तक प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। वह मज़दूर हैं। वह इतने पैसे नहीं जुटा पातें कि वह लोग अपना घर बनवा पाएं। 

बांदा: गरीबों को पक्का घर मुहैया कराने की योजना अभी तकरीबन 60 फीसदी तक ही आगे बढ़ पाई है। सर्दी शुरू होने वाली है। ऐसे में लाभार्थियों को उम्मीद है कि सर्दी से पहले ही उनका पक्का आशियाना बनकर तैयार हो जाएगा।

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। इस साल जिले में 13,851 आवास के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। देखा जाए तो वित्तीय साल का आधे से ज़्यादा समय बीत गया है लेकिन अभी भी काफी संख्या में गरीबों के आवास बनने बाकी हैं। हालांकि विभाग का दावा है कि लक्ष्य का करीब 60 फीसदी तक काम पूरा हो गया है। इस योजना से हर साल गांवों में हजारों की संख्या में गरीबों को आवास दिए जाते हैं। इसके बावजूद भी काफ़ी संख्या में लोग अभी भी कच्चे मकानों में जीवन यापन कर रहे हैं। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल साढे़ सोलह हजार से अधिक आवासों के निर्माण का लक्ष्य था। जिसमें करीब ग्यारह हजार आवासों का निर्माण पूरा हो गया था। विभाग का कहना है कि जो भी काम बाकी है, उसे समय से पूरा कराया जाएगा।

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न आवास है, न पेट पालने को मिलती है मज़दूरी

प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत 2015 में हुई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य हर घर को छत देना था जिससे की गरीब और असहाय परिवारों के सिर पर भी छत हो सके। इसके साथ ही परिवार झुग्गी झोपड़ी वा कच्चे टूटे-फूटे घरों से मुक्त हो सकें। इस योजना का लक्ष्य साल 2022 में पूरा होने वाला है पर बहुत से गरीब परिवार हैं जो आज भी इस योजना से वंचित है। ग्रामीण क्षेत्र में बहुत से लोग झुग्गी-झोपड़ी और पन्नी डालकर रहने के लिए मजबूर हैं। उनके पास एक बिस्वा जमीन भी नहीं है सिर्फ मजदूरी ही उनका मात्र सहारा है। वह लोग जैसे-तैसे पेट पालन तो कर पाते हैं लेकिन घरों के बनवाने तक का जुगाड़ नहीं कर पाते।

अगर हम नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत कटरा कालिंजर की बात करें तो यहां बहुत से ऐसे गरीब लोग हैं, जिनके घर बारिश के कारण गिर गये हैं। इन लोगों को आवास का लाभ नहीं मिला है। लोगों ने बताया कि उनके यहां लगभग 25 सौ वोटर हैं जिनमें से सैकड़ों लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। जबकि वह सब पात्र लोग है फिर भी कच्चे और टूटे घरों में रहने के लिए मजबूर है।

गुढाकला गांव की रनिया और सुधा बताती हैं कि वह बिल्कुल भूमिहीन हैं। उसके पास रहने के लिए जो टूटा-फूटा कच्चा घर बना हुआ था, वह भी बारिश में बुरी तरह से गिर गया है जिसमें वह किसी तरह से रह रही हैं। वह मज़दूरी का काम करती हैं लेकिन यह काम भी ठीक से नहीं हो पाता। वह बतातीं हैं कि उनके यहां की जो ज़मीन है वह उपजाऊ नहीं है कि वह किसी के यहां कटाई-बिनाई करके भी अपना भरण-पोषण कर सकें। यही वजह है कि बच्चे भी परदेस चले जाते हैं और वहां से कमा कर लाते हैं तो उसी से ग्रामीणों का परिवार का चलता है।

उन्होंने कई बार गाँव के प्रधान से प्रधानमंत्री आवास की मांग की ताकि उन्हें भी सिर ढकने के लिए छत मिल जाए लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई। यह आरोप है कि उनके ग्राम पंचायत का जो प्रधान था वह कहने पर सिर्फ आश्वासन देता रहा। वहीं जिसने उसे पैसा दिया है सिर्फ उसको आवास मिला है। लोग कहते हैं कि इस बार दूसरा प्रधान हुआ है तो देखते हैं कि वह सुनता है या नहीं।

आवास की मांग करने पर मिलती है डांट

बड़ोखर खुर्द गांव के गौरा और प्रेमबाबू बताते हैं कि उसका पूरा घर कच्चा है जिसमें बस एक ही कमरा है। वह भी गिरने के कगार पर है। टूटने-फूटने लगा है। उसी कमरे में वह किसी तरह बसर करते हैं। वह बताते हैं कि उनके चार बच्चे हैं। एक कमाने वाला मजदूरी करे कि बच्चों की देखभाल करे। चार महीने घर में रहते है तो आठ महीने ईंट-भट्टे में परिवार सहित जाकर कमाते हैं। इसी वजह से बच्चे भी शिक्षित नहीं हो पा रहे हैं। जो कमा कर लाते हैं तो बरसत के चार महीने बैठ कर खाते हैं।

गांव में बराबर मजदूरी नहीं मिलती। वह किसी तरह पन्नी डालकर और उस एक कमरे के सहारे अपना गुजर कर रहे हैं। अगर कोई रिश्तेदार आ गया तो बैठने की जगह नहीं होती है। कई बार आवास की मांग की लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। अगर वह लोग ज़्यादा मांग करते हैं और बार-बार कहते हैं तो उसमें भी उन्हें डांट मिलती है।

वह कहते हैं,‘अब यह बताइए कि जहां पर सरकार हर घर को छत देने की बात कर रही है और अगर एक परिवार में 10 लोग हैं और वह अलग-अलग रहते हैं तो उनको अलग-अलग परिवार मान कर आवास दिया जाता है तो फिर उन्हें क्यों नहीं दिया जा रहा। जब अपने पास देने के लिए पैसे नहीं है तो आवास कैसे मिलेगा। परिवार का पेट पालना ही मुशकिल है।’

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आवास तो मिला लेकिन दूसरी क़िस्त न मिलने से है अधूरा

इसी तरह महुआ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत पचोखर के कमला और रामचरन का कहना है, हम बहुत ही गरीब है। झोपड़ी में रहकर किसी तरह गुज़ारा कर रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला तो वह खुश हो गयें। अब उनका आवास तो बन गया पर अधूरा। सर्दी आने से अब उनकी दिक्कतें भी बढ़ गयी हैं क्यूंकि एक कमरे में चार बच्चों के साथ रहना मुश्किल होता है। जानवर भी खुले में सर्दी से परेशान होगें। उनके पास शौचालय भी नहीं है। मेहनत मज़दूरी से जो कमाते हैं उससे परिवार का भरण-पोषण होता है। मज़दूरी करने के बाद भी दवा-गोली की खुराक पूरी नहीं हो पाती है।

वह बताते हैं, किसी तरह गांव में या आस-पास किसी के यहां मजदूरी लग गई तो कर लिया अगर नहीं लगी तो बैठे रहते। 10 दिन काम मिलता है तो 10 दिन खाली निकल जाता है जबकि एक मजदूर कि जिन्दगी तो ये है कि वह चूल्हे में ‘अदहान चढ़ा’ के जाता है। जब दिनभर काम करता है तब जाकर शाम को भोजन करता है। ऐसे में पेट पालना ही उसके लिए बड़ी बात है। अगर बराबर काम मिले तो एक बार के लिए सोच भी सकते हैं कि कुछ बचत करके धीरे-धीरे अपना पैसा लगा के ही आवास पूरा कर लें पर ऐसा भी नहीं है।

उसने कई बार आवास की दूसरी किस्त का पता लगाया ताकि वह भी आवास पूरा बनवा सके। आवास मिलने के बाद भी वह योजना का पूरी तरह से लाभ नहीं उठा पा रहा है। वह कहतें, राशन कार्ड भी बना हो तो दो युनिट का ही गल्ला मिलता है। वह कई बार युनिट जुड़ाने के लिए भी गया पर नहीं बना। नरैनी और महुआ आने-जाने में 150 रुपये का खर्च होता है। वह कई बार तहसील और महुआ ब्लॉक जा चुका है ताकि आवास की दूसरी किस्त मिल सके और उसके राशन कार्ड में युनिट चढ़ सके। उसका खाद्य सूची में नाम भी है लेकिन उसके पास राशन कार्ड में पूरे परिवार का नाम नहीं है इसलिए वह बहुत ज़्यादा परेशान है। उसका कहना है कि सरकार गरीबों के लिए चाहे जितने भी बड़े-बड़े वादे करे लेकिन जब उनको पूरा लाभ नहीं मिलता तो वह क्या करें।

पात्र लोगों को दिए जाएंगे आवास – नरैनी बीडीओ

हमने इस बारे में नरैनी के बीडीओ मनोज कुमार सिंह से बात की। उनका कहना था कि नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत 82 ग्राम पंचायते हैं। सभी ग्राम पंचायतों को मिलाकर लगभग 3,100 सौ आवास से ऊपर दिए जा चुके हैं। इनमें से ज़्यादातर आवास पूरे भी हो गये हैं। कुछ अधूरे हैं, उन्हें पूरा कराने की कोशिश की जा रही है। जो पात्र लोग रह गये हैं और सर्वे सूची में नाम है उनको आवास दिए जाएंगे।

इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।

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