खबर लहरिया Blog 70 परिवार ट्रैक्टर में भरकर मज़दूरी के लिए हरियाणा हुए रवाना

70 परिवार ट्रैक्टर में भरकर मज़दूरी के लिए हरियाणा हुए रवाना

रोज़गार के लिए वाराणसी जिले के गाँव के 70 परिवार हरियाणा के लिए हुए रवाना।

                                                                                               ट्रेक्टर में भरकर जाते हुए मज़दूर ( साभार –  खबर लहरिया )

रोज़गार, विकासशील देश में आज भी बहुत बड़ा मुद्दा और समस्या का कारण बना हुआ है। अब चाहें वह शहरी क्षेत्र हों या ग्रामीण। कोरोना काल में रोज़गार की समस्या और भी ज़्यादा दयनीय और असहनीय हो गयी है। ऐसा इसलिए क्यूंकि इस दौरान जिनके पास नौकरी थी उनसे भी उनकी नौकरी छीन ली गयी। उद्योग कंपनियों में मज़दूरों की संख्या कम हो गयी। जो मज़दूर ग्रामीणों क्षेत्रों से शहरों की तरफ रोज़गार की आस लेकर आते थे उन्हें भी निराशा ही मिली। ऐसे में जब ज़रूरतमंदों को कहीं भी काम मिलता है तो वह बिना हिचकिचाए उस तरफ दौड़े चले जाते हैं क्यूंकि वह काम उनके और उनके परिवार के जीवन के लिए उम्मीद की एक किरण की तरह नज़र आती है।

यूपी के जिला चित्रकूट, ब्लॉक कर्वी गाँव लोढवार के तकरीबन 70 परिवार मिट्टी के ईंट बनाने का काम करने के लिए ट्रैक्टरों में भरकर हरियाणा राज्य के लिए निकल चुके हैं। ये परिवार 26 अक्टूबर को दूसरे राज्य के लिए रवाना हुए थे। आपको बता दें की गांव की आबादी 5 हज़ार लोगों की हैं। गाँव के 70 परिवार अपने बच्चों को लेकर, घर का ताला बंद कर रोज़गार के लिए रवाना हुए हैं। ये परिवार कुल 8 महीने ईंट के भट्टे में काम करेंगे।

रिपोर्टिंग में हमने पाया कि गाँव का ठेकेदार मुन्ना लोगों को हरियाणा राज्य में मज़दूरी के लिए लेकर जा रहा है। लोगों ने हमें यह भी बताया कि वह लोग अपनी मर्ज़ी से मज़दूरी करने के लिए जा रहे हैं। किसी में उनके साथ ज़बरदस्ती नहीं की है। एक ईंट बनाने की कीमत 5 रूपये है। मज़दूर जितने ईंट बनाते हैं उसी हिसाब से उनका वेतन बनता है।

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जानिये क्या है मज़दूरों का कहना

मज़दूर गोमती देवी कहती हैं कि वह गरीब हैं, ज़्यादा पैसे भी नहीं है इसलिए वह अपने पूरे परिवार को लेकर हरियाणा जा रही हैं। कोरोना की वजह से कई कंपनियां बंद हो गयीं हैं जिसकी वजह से उन लोगों को गाँव में भी काम नहीं मिल रहा।

मज़दूर सावित्री देवो, सुनील कुमार, दिनेश कुमार आदि लोगों का कहना है कि वह लोग पहले कंपनी में काम करते थे पर उन्हें निकाल दिया गया। उन्हें गाँव में काम नहीं मिल रहा इसलिए उन लोगों का पूरा परिवार ईंट-भट्टे में काम करने के लिए जा रहा है। उनके पास कोई ज़मीन भी नहीं है कि वह अपनी बेटी की शादी कर पाएं।

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बंधुआ मज़दूर होने का रहता है डर

लोगों ने बताया कि ठेकेदार ही उन्हें लेकर जाता है और घर तक छोड़ जाता है। वह कहते हैं कि जब काम पर जाने पर वह लोग काम नहीं कर पातें तो उन्हें बंधुआ मज़दूर बना लिया जाता है फिर उन्हें छोड़ा नहीं जाता। कभी-कभी तो मज़दूरों के मेहनत के पैसे भी मार लिए जाते हैं।

न्यूज़क्लिक की 28 जून 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में अनुमानित तौर पर 1.2 करोड़ मज़दूर ईंट-भट्टे के काम में कार्यरत हैं। अधिकतर श्रमिक ठेकेदारों के बड़े नेटवर्क के ज़रिये ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों से इकठ्ठा किये जाते हैं। यहां तक की बहुत से मज़दूर विकसित राज्यों से भी लिए जाते हैं।

यहां सबसे बड़ा सवाल ठेकेदारों का है। ठेकेदारों द्वारा न तो मज़दूरों को कोई पहचान कार्ड दिया जाता है और न हीं किये गए काम को रिकॉर्ड रखने के लिए कोई अन्य कार्ड। ऐसे में जैसे की हमें मज़दूरों ने बताया कि उन्हें हमेशा बंधुआ मज़दूर और उनके पैसे कटने का डर बना रहता है।

इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गयी है। 

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