जिला चित्रकूट के ब्लॉक मानिकपुर गांव रैपुरा की रहने वाली गोमती देवी पिछले 4 सालों से जैविक खाद से खेती कर रही हैं। वो इस जैविक खाद को गौमूत्र और गोबर इकट्ठा करके घर पर ही बनाती हैं। और फिर इस खाद को ही अपने खेत में इस्तेमाल करती हैं।
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गोमती देवी बताती हैं कि जब उन्होंने जैविक खाद बनाने की शुरुआत की थी तब गांव के अन्य लोग उनका काफी मज़ाक बनाते थे और अलग अलग तरह के कमेंट मारते थे, लेकिन जब लोगों ने इस खाद से होने वाले फायदों के बारे में जाना तो अब काफी लोग जैविक खाद बनाना सीखने में इच्छुक हैं।
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गोमती देवी स्वयं सहायता समूह के साथ जुड़कर गांव की अन्य महिलाओं को भी जैविक खाद बनाने की ट्रेनिंग देती हैं। उनका कहना है कि इस खाद के उपयोग से फसल भी अच्छी तैयार होती है, इसके साथ ही इस उत्पादन को खाने से लोगों में बीमारियां होने की संभावनाएं भी कम होती हैं, क्यूंकि इसमें पड़ी खाद पूरी तरह प्राकृतिक है।
गोमती देवी चाहती हैं कि उनकी जैविक खाद देशभर में मशहूर हो जाये और लोग उन्हें इस काम से पहचानें।
जैविक खाद का क्या मतलब होता है?
जैविक खाद पक्षियों के मल-मूत्र, शरीर अवशेष आदि के के विघटन से निर्मित पदार्थ को कहते हैं। सरल भाषा में कहें तो जैविक खाद घास, पत्ते, गोबर व अन्य कूड़ा कचरा, उनके सड़े गले अंश से बनता है। इसी तरह केंचुए व अन्य अपशिष्टवासी कीट भी जैविक खाद ही बनाते हैं।
जैविक खाद के लाभ
– इससे मिट्टी की भौतिक व रसायनिक स्थिति में सुधार आता है।
– उर्वरक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
– सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में वृद्धि होती है।
– मिट्टी की संरचना में सुधार होता है। इससे पौधे की जड़ों का फैलाव भी अच्छा होता है।
– इससे मिट्टी की पानी रोकने की क्षमता बढ़ती है।
– मृदा अपरदन (मिट्टी का कटना) कम होता है।
– मिट्टी का तापमान व नमी बनी रहती है।
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