बांदा बुन्देलखण्ड। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को सालों से रोजगार नहीं मिला अगर किसी को मजदूरी मिली भी है, तो भुगतान नहीं हुआ है।
बांदा बुन्देलखण्ड। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को सालों से रोजगार नहीं मिला अगर किसी को मजदूरी मिली भी है, तो भुगतान नहीं हुआ है। ऐसे में मजदूर मनरेगा में काम करने में रुचि नहीं कर रहे हैं। दूसरा थोड़ा बहुत जो काम लगा भी तो जेसीबी के जरिए प्रधानों और साथियों द्वारा करा लिया जाता है। उनका कहना है कि एक तो नियमित काम और भुगतान नहीं होता। अगर काम हुआ भी तो जेसीबी से काम होने के कारण काम नहीं कर पा रहे हैं जिससे ग्राम पंचायतों का विकास कार्य भी प्रभावित हो रहा है।
नवभारत टाइम्स की 16 मई 2025 के रिपोर्ट में छपी खबर के अनुसार बांदा जिले में 470 ग्राम पंचायत है। यहां पर लगभग 2.28 लाख मनरेगा मजदूर पंजीकृत हैं, जिनमें से लगभग एक लाख मजदूर एक्टिव हैं। ये मजदूर गांव में मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि उन्हें गांव में रोजगार मिलना मुश्किल हो गया है। कई पंचायतों में तो पूरी तरह से मनरेगा का काम ठप चल रहा है और जहां चल भी रहा है वहां सीमित संख्या में ही मजदूरों को काम मिल पा रहा है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में अब तक
केवल 32,493 काम किए गए हैं, जबकि पिछले वर्ष मार्च और अप्रैल के महीने में यह संख्या 1,22,567 थी। यानी इस वर्ष 90,074 कार्य कम हुए हैं। इसका सीधा असर मजदूरों की आमदनी पर पड़ रहा है।
ग्राम पंचायत चकला और दोहतरा गांव के मजदूरों का कहना है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मतलब (मनरेगा) के तहत ग्रामीणों को मिलने वाले रोजगार देने की सरकार कि मंशा अब कागजों में ही सिमटी नजर आ रही है। उनके ग्राम पंचायत में मनरेगा का काम लगभग ठप है और ये सचिवों और ग्राम प्रधानों की उदासीनता की कमी के कारण है जो काम शुरू नहीं हो पा रहा है, जिससे मजदूरों को मजबूरी में रोजी-रोटी के लिए गांव छोड़ शहर की ओर पलायन करना पड़ रहा है।
गांव के कामता प्रसाद बताते हैं कि 4 साल प्रधानी के बीत जाने के बाद भी लोगों को मनरेगा के तहत काम नहीं दिया गया है। जब उन लोगों को काम नहीं मिलता है तब मजबूरी में पलायन करते हैं और बाहर से मजदूरी करके अपने परिवार के साल भर के भरण-पोषण के गुजर के लिए रुपये लाते हैं जिससे उनका खर्च चलता है। कामता प्रसाद कहते हैं कि वह लोग तो काम करना चाहते हैं पर काम नहीं मिल रहा है। इस कारण से वह लोग पलायन करके रोजनदारी करते हैं। उनको निजी कामों मतलब प्राइवेट काम करने में ₹400 मजदूरी मिलती है और मनरेगा में 252 रुपए।
बड़ोखर खुर्द गांव के रामलाल का कहना है कि उनके पास जांब कार्ड है और काम भी करना चाहते हैं पर गांव में काम नहीं मिल रहा। इसलिए रोज 20 रुपए किराया लगाकर उन्हें काम की तलाश में बांदा शहर जाना पड़ता है। रोज सुबह 8 बजे घर से निकलते हैं और शाम को 7 बजे लौटते हैं। वहां भी कभी काम मिला तो कभी न मिला तो निराश हो कर लौटना पड़ता है। मनरेगा योजना कागजों तक सीमित रह गई है। रोजगार नहीं मिल पा रहा है।
पिपरहरी ग्राम पंचायत के चौहानन पुरवा की शकुंतला और कछिया पुरवा कि रानी कहती हैं कि सरकार द्वारा चलाई गई मनरेगा योजना के तहत गांव के पलायन को रोकना और रोजगार देना था। जब योजना चली थी तो गांव-गांव की दीवारों में लिखा हुआ था कि हर ‘हाथ को कम दो, काम के बदले दम दो’ और लोगों के जॉब कार्ड भी बने लेकिन वह जॉब कार्ड अब कोरे कागज की तरह घरों के किसी कोने या बक्सों में पड़े हुए हैं। अगर कभी कभार काम मिला भी तो मजदूरी के लिए चक्कर काटने पड़ते हैं इसलिए लोग रुचि नहीं रखते हैं। वह तो चाहती हैं कि उनके गांव में भरपूर काम मिले ताकि बाहर न जाना पड़े लेकिन क्या करें जब काम नहीं मिलेगा तो परिवार पालने के लिए मजबूरी में उनको पलायन करना पड़ता है। भले ही मनरेगा के तहत मजदूरी कम मिलती है लेकिन अगर बराबर काम मिलता तो शायद जितना पलायन हो रहा है उतना नहीं होता। वह खुद परिवार सहित गांव से बाहर दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में मजदूरी के लिए जाती हैं।
नवभारत टाइम्स की 16 मई 2025 के छपी खबर के अनुसार उपायुक्त श्रम एवं रोजगार अधिकारी अजय कुमार पांडे ने बताया है कि ग्राम पंचायतें मनरेगा में रुचि नहीं ले रही हैं, जो घोर लापरवाही है। सभी खंड विकास अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि प्रत्येक पंचायत में तुरंत काम शुरू कराया जाए और मानव दिवस बढ़ाए जाएं। अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो जिम्मेदारों के खिलाफ शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
वहीं नरैनी बीडीओ प्रमोद कुमार का कहना है कि पिपरहरी में तालाब की खुदाई का काम शुरू है। इस तरह से और भी कई ग्राम पंचायत में कुछ-कुछ काम शुरू कराया गया है। पिछले वर्ष 2024 के दिसंबर महीने से मार्च तक की मजदूरी मार्च में आई है मार्च से इधर की मजदूरी फिर नहीं आई जो मजदूर रोज का कमाने खाने वाला है या यूं कहें कि चूल्हे पर अदहन चढ़ा कर मजदूरी के लिए जाने वाला मजदूर इतने-इतने दिन तक पैसा मिलने का इंतजार कैसे कर सकता है। अगर समय से भुगतान हो तो फिर भी मजदूर काम में रुचि रखें। अगर कोई काम करने वाला है तो उन मजदूरों के नंबर दिए जाएं और मजदूरों उनसे संपर्क करें वह काम जरूर देंगे।
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