खबर लहरिया Blog लॉकडाउन में फसे मुसाफ़िर की दास्तान

लॉकडाउन में फसे मुसाफ़िर की दास्तान

लॉकडाउन में फसे मुसाफ़िर की दास्तान

अपने घर से दूर शहरों में फंसे मजदूरों पर चंद लाइनें, जब वह कोरोना से परेशान होकर अपने गांव के लिए रवाना हुए।


नैनों में था रास्ता मन में बसा था गांव।
हुई न पूरी यात्रा पर छलनी हो गये पांव।।
आशा जो थी एक मन में मिलने की परिवार से।
टूट के चकनाचूर हो गई बिठा दिया गया जब ठाँव- ठाँव।।
खुद का पेट भूखा है पर चिंता है परिवार की।
क्या कर रहे होंगे लोग क्या हालत होगी मेरे घर द्वार की।।
सूना होगा घर आंगन मेरा, पर इस परदेशी की आहट होगी।
पर एक गम भी है, कि
जिस परदेशी के आने पर लोग खुशी से गले लगाते थे।
आज इस कोरोना से दूर – दूर भागेंगे।।
कब वो दिन आयेगा जब हम अपने घर को जाएंगे।
चारो तरफ खुशहाली होगी सब हंसकर गले लगाएंगे।।

मुसाफ़िर की दास्तान!