जामुन जीभ का स्वाद तो बढ़ाता ही है साथ में अपने रंग की छाप जीभ पर छोड़ देता है।
रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – सुचित्रा
गर्मियों के मौसम में अगर जामुन न खाएं तो फिर क्या खाएं! अंग्रेजी में जामुन को ब्लैक पल्म (Black Plum) या फिर जावा पल्म (Java Plum) कहते हैं। ऐसे तो गांव हो या शहर जामुन बाजार में बिकते हैं और लोग बड़े चाव से खाते हैं। इसका रंग देखने में भी काफी सुन्दर लगता है। जामुन जीभ का स्वाद तो बढ़ाता ही है साथ में अपने रंग की छाप जीभ पर छोड़ देता है। जामुन के स्वाद की ग्रामीण स्तर पर खास कहानी है क्योंकि जिनके यहां जामुन का पेड़ होता है वहां पर गांव भर के बच्चे पेड़ पर चढ़कर जामुन तोड़ते हैं।
इस समय यूपी के वाराणसी ज़िले के गांव पुरानापटी में जामुन की तुड़ाई जोरों पर है। यह जामुन जून से लेकर अगस्त तक बाजार में दिखता है। जामुन के फूल मार्च-अप्रैल में आने लगते हैं और जून की पहली बारिश के साथ ही यह फल पकने लगता है। जून के अंत तक यह गांवों से शहर के बाजारों तक पहुंच जाता है।
जामुन का रंग और स्वाद
अगर बात करें जामुन के रंग और स्वाद की, तो इसका रंग गहरा बैंगनी या काला होता है और स्वाद में यह खट्टा-मीठा और बहुत ही मजेदार होता है। गर्मियों में जब सूरज की तपिश ज़ोर पकड़ने लगती है, तब यह सुंदर जामुनी फल पेड़ों पर खिल उठता है।
जामुन की तुड़ाई
गांव में लोग बड़े ही सलीके से इसकी तुड़ाई करते हैं। एक हाथ में डंडा होता है जिससे वे पेड़ की डालियों को हिलाते हैं और नीचे लोग चारों तरफ से कपड़ा पकड़कर खड़े होते हैं ताकि जामुन जमीन पर गिरकर खराब न हो जाए। क्योंकि यह ऐसा फल है जो ज़मीन पर गिरते ही फट सकता है और फिर खाने लायक नहीं रहता।

पेड़ से जामुन तोड़ने के लिए डंडे का इस्तेमाल और नीचे खड़े कपड़ा पकड़े लोगों की तस्वीर (फोटो साभार: सुशीला)
जामुन की तुड़ाई से बाजार तक का सफर
सोनू का कहना है कि जामुन का पेड़ गांव से लेकर शहर तक आसानी से मिल जाता है। सोनू और उनके परिवार के लिए जामुन की तुड़ाई और उसे बाजार तक पहुंचाना काफी संघर्ष भरा हुआ है। जामुन तोड़ने के बाद उन्हें धोकर साफ़ किया जाता है और फिर मार्केट में ले जाकर बेचा जाता है। इस समय जामुन की बिक्री ज़ोरों पर है। सोनू बताते हैं कि अभी जामुन 100 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। जब सीज़न खत्म होने लगता है, तब इसकी कीमत बढ़कर 150 प्रति किलो तक पहुंच जाती है। हालांकि वे इसे मंडी से नहीं लाते, बल्कि अपने ही खेत और पेड़ों से तोड़कर सीधे ले जाते हैं, इसलिए खर्चा भी बचता है और मुनाफा भी अच्छा होता है।
दुकानदारी का समय और मेहनत का फल
सोनू बताते हैं कि वे सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक दुकान लगाते हैं। वे रोजाना 8 से 10 घंटे मेहनत करते हैं। बीच-बीच में ग्राहकों को बुलाने और माल बेचने के लिए प्रचार भी करना पड़ता है करनी पड़ती है। इतनी मेहनत करने के बाद जो कमाई होती है उसे पाकर राहत मिलती है। मेहनत की मजदूरी अच्छी निकल आती है, इसलिए वे इस काम को पूरे मन से करते हैं।
सुनीता जो बाजार में जामुन के ठेले पर मिली थी। वे कहती हैं कि “आज हम जामुन खरीद रहे हैं। इसे देखते ही मुंह में पानी आ जाता है। इसके कई फायदे हैं जैसे त्वचा की चमक बढ़ाना, मुंहासों को कम करना और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखना। जामुन पाचन संबंधी समस्याओं को भी दूर करने में मदद करता है।
सुनीता कहती हैं, “अगर आप अभी तक जामुन को अपनी डाइट में शामिल नहीं कर रहे हैं, तो अब समय आ गया है कि इसे ज़रूर शामिल करें। यह न सिर्फ स्वाद देता है, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत सारे फायदे देता है। हमारा तो यही कहना है कि एक बार इस काले, खट्टे-मीठे जामुन को ज़रूर खाकर देखिए।”
नामक बढ़ा देता है जामुन का स्वाद
लोगों का कहना है कि जामुन में नमक मिल जाये तो स्वाद दोगुना हो जाता है। बाजार में जो जामुन बेचते हैं वो भी नमक लगाकर खाने के लिए देते हैं।
जामुन से जुड़े गांव के किस्से
दयाशंकर कहते हैं,”पहले जैसा अब कौन लोग जामुन खाते हैं? पहले जब हम छोटे थे तो जामुन का एक अलग ही मज़ा था। जब पेड़ से जामुन गिरने लगते थे, तो कोई पेड़ पर चढ़ जाता था, तो कोई सुबह-सुबह उठकर बिनने दौड़ता था। हमारे लिए ये रोज़ का खेल और स्वाद दोनों था।”
वो बताते हैं “सुबह उठते ही यह होड़ होती थी कि कौन पहले जामुन के पेड़ तक पहुंचेगा। एक लोटा भर जामुन बीनकर हम खुशी-खुशी खा जाते थे। अब वैसा समय कहां रहा? अब तो जामुन एक तरह का मनोरंजन बनकर रह गया है। पहले जैसा स्वाद, वो लगाव, अब लोगों में नहीं दिखता।”
दयाशंकर भावुक होकर कहते हैं “हमारे समय में पेड़ के नीचे बिखरे जामुन बीनते थे। एक मुट्ठी या एक गिलास भर जामुन खाकर दिन की शुरुआत करते थे। रात में पेड़ के नीचे जामुन गिरते रहते थे, तो सुबह यह डर होता था कि कोई और पहले न पहुंच जाए — हम ही पहले बीन लें।”
वो आगे कहते हैं “वही आदत आज भी बनी हुई है। जब मौसम आता है, तो अब खरीद कर भी जामुन खा लेते हैं। कुछ लोग तो मजाक में कहते हैं – ‘काहे बाबू जामुन लेकर आए हैं! लेकिन सच्चाई ये है कि अब सबको जामुन का असली स्वाद और इसके फायदे मालूम नहीं हैं।”
दुनिया बदल गई है, और फलों का स्वाद भी जैसे लोगों के मन से बदल गया है। पहले की बातें अब बस यादें बन गई हैं। जामुन सिर्फ फल नहीं था, वो एक अहसास था बचपन का, दौड़ का, दोस्ती का।
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