खबर लहरिया Blog प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

24 मार्च को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी। इसके बाद बेरोजगारी और जीवन निर्वाह के लिए पैसों की कमी के कारण हजारों प्रवासी मजदूरों को  शहरों को छोड़कर पैदल ही अपने-अपने गांवों की ओर निकल दिए थे, क्योंकि लॉकडाउन के कारण सभी परिवहन सेवाएं रुकी हुई हैं। न उनके पास काम है न खाने को रोटी लिहाज़ा उनके लिए घर लौटना बेहतर ऑप्शन है इसलिए लोग सैकड़ो की संख्या में पैदल ही निकल गए हैं।

भारत का सुप्रीम कोर्ट

ऐसे में वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कोरोना के चलते लॉकडाउन होने से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने परिवार के साथ सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। उनके पास न तो रहने की सुविधा है और न ही घर पहुंचने का जरिया। इन लोगों को भयंकर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि अदालत राज्य सरकारों को आदेश दें कि इन लोगों को शेल्टर होम में रखकर सुविधाएं दी जाएं।

30 मार्च को सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव से कहा कि हम सब कुछ से निपट लेंगे लेकिन केंद्र जो कर रहा है उससे नहीं। सीजेआई ने कहा कि पहले हम सरकार की ओर से उस हलफनामे को देखना चाहते हैं जिसे दाखिल करना है। फिर हम इस पर 1 अप्रैल को सुनवाई कर सकते हैं। बता दें कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़कर 30 मार्च तक 1073 हो गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस बीमारी से अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है। राहत वाली बात यह है कि 100 मरीज इस बीमारी से ठीक भी हो चुके हैं।

हालांकि इस समय बहुत लोग मदद के लिए आगे आये हैं। प्रवासी मजदूरों लोगों को खाना और दवाई जैसी जरुरी चीजें मुहैया कराने में प्रशासन से लेकर आम जनता तक आगे आ रही है लेकिन सच्चाई ये भी है कि ये लोकडाउन ऐसे टाइम लिया गया के लोग हड़बड़ा गए और हर संकट की स्थिति में लोग पूरा परिवार एक साथ होकर भूखे भी रहे तो साथ में। हर किसी को अपने परिवार की चिंता है घर पर बच्चे बूढ़े कैसे होंगे ? तो वही घर के लोग बाहर फसें लोगो की चिंता में क्योकि अभी सब बिखरे हुए है। हमारी कई ऐसे राहगीरों से बात हुई जो 200 से 500 किलोमीटर पैदल चल कर अपने गाँव जा रहे थे. उनके अनुसार अगर मौत भी आये तो अपने परिवार के साथ मरना भी मंजूर है क्योकि ऐसे कोरोना से भले ही बच जाएंगे लेकिन भूख और अपनों की चिंता से कौन बचाये ?