खबर लहरिया Blog Same-Sex Marriage Hearing : सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह की मंज़ूरी के लिए याचिका

Same-Sex Marriage Hearing : सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह की मंज़ूरी के लिए याचिका

सीनियर अधिवक्ता मुकुल रस्तोगी ने कहा, “वह सिर्फ विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की मांग कर रहे हैं जो विवाह को “पुरुष और महिला” के बजाय “पति-पत्नी” की तरफ देखता है।” आगे यह भी कहा कि वह व्यक्तिगत कानूनों के दायरों में नहीं जाएंगे।

Same-Sex Marriage Hearing in Supreme Court

                                                                   एलजीबीटीक्यू का सांकेतिक फोटो

पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मंज़ूरी देने वाली याचिका पर सुनवाई की जा रही है। समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली दलीलों के एक बैच की सुनवाई करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के लिए एक जोड़े द्वारा 30 दिनों की अनिवार्य सूचना “असंवैधानिक” है।

उन्होंने कहा, “विषमलैंगिक विवाह में भी आपको नोटिस देना पड़ता है और लोगों को इस बात पर आपत्ति होती है कि शादी होनी चाहिए या नहीं, यह असंवैधानिक है।”

आगे टिप्पणी देते हुए सीजीआई ने यह भी कहा कि बाइयोलॉजिकल महिला या पुरुष की धारणा “पूर्ण” नहीं है और सिर्फ यह सवाल नहीं है कि आपके जननांग क्या है।”

याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क देते हुए सीनियर अधिवक्ता मुकुल रस्तोगी (Advocate Mukul Rohatgi) ने कहा,”एलजीबीटीक्यू को भी गरिमापूर्ण जीवन, विवाह और परिवार का अधिकार होना चाहिए जैसाकि दूसरों के लिए उपलब्ध है।”

आगे कहा, “वह सिर्फ विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की मांग कर रहे हैं जो विवाह को “पुरुष और महिला” के बजाय “पति-पत्नी” की तरफ देखता है।” आगे यह भी कहा कि वह व्यक्तिगत कानूनों के दायरों में नहीं जाएंगे।

वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी (Menaka Guruswamy) ने कहा कि विवाह “न केवल गरिमा का सवाल है, बल्कि अधिकारों का एक गुलदस्ता है जो एलजीबीटीक्यू लोगों को जीवन बीमा या चिकित्सा बीमा की तरह जौहर (नवतेज जौहर बनाम भारत संघ/ (Navtej Johar vs Union of India)) के बाद से वंचित किया जा रहा है।”

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा कि अदालत को पहले इस मुद्दे का समाधान करना होगा कि क्या विवाह के माध्यम से नए सामाजिक-कानूनी अधिकार बनाने के लिए न्यायपालिका सही मंच है।

वहीं भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़(D Y Chandrachud) ने याचिकाकर्ताओं को सुनने के बाद कहा कि “अब जब हम मामले को व्यापक रूप से समझ गए हैं, तो क्या हम पर्सनल लॉ को लेकर क्लियर रह सकते हैं? यह एक संभावित विकल्प है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीजीआई चंद्रचूड़ का मानना ​​है कि विशेष विवाह अधिनियम में नोटिस अवधि की शर्तें असंवैधानिक हैं। “नोटिस मुद्दा विषमलैंगिक विवाह के लिए भी है क्योंकि आप कह रहे हैं कि विषमलैंगिक विवाह में भी, आपको एक नोटिस देना होगा और लोगों से इस बात पर आपत्ति जतानी होगी कि शादी होनी चाहिए या नहीं, या यह असंवैधानिक है।”

 

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