खबर लहरिया Blog उज्ज्वला योजना : धुएं में खाना बनाने से पड़ता है प्रभाव, सिलिंडर मिले तो आराम हो – ग्रामीण महिलाएं

उज्ज्वला योजना : धुएं में खाना बनाने से पड़ता है प्रभाव, सिलिंडर मिले तो आराम हो – ग्रामीण महिलाएं

ग्रामीण क्षेत्रो में उज्ज्वला योजना लागू होने के बाद भी कई ग्रामीण महिलाओं को गैस सिलिंडर नहीं मिला है।

उज्ज्वला योजना के तहत सरकार ने कहा कि इस योजना के ज़रिये ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही गरीब महिलाओं को मुफ़्त एलपीजी गैस कनेक्शन मिलेंगे। उन्हें मिट्टी के चूल्हे या धुएं में खाना नहीं बनाना पड़ेगा। कहा तो इसके आलावा और भी बहुत कुछ था लेकिन वह कितना पूरा हुआ और कितना नहीं, इस चीज़ अनुमान कुछ हद तक सभी को है।

10 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री ने इसी में कड़ी जोड़ते हुए उज्ज्वला योजना 2.0 की शुरुआत की। इस बार पीएम मोदी ने उज्ज्वला योजना के लिए यूपी के महोबा को चुना है और पिछली बार भी यूपी को ही चुना था। 6 साल पहले पूर्वी यूपी के बलिया से उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गयी थी। कुछ हद तक इस योजना का लाभ लोगों को मिला है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में भीतरी हिस्सों में रहने वाले कई परिवार अभी-भी योजना के लाभ से वंचित हैं। चुने गए पूर्व गाँव का ब्यौरा भी सरकार की तरफ से नहीं दिया गया है कि गाँव में सभी के गैस कनेक्शन लगे हैं या नहीं ? अब महोबा जिला लेकिन सवाल वही है, कितनों को मिलेगा और कौन फिर योजना के लाभ से रह जायेंगे। इसके अलावा यूपी के अन्य जिलों का क्या ? अगर वह चयनित जिले नहीं है तो क्या प्रशासन उन पर ध्यान नहीं देगा ?

हम इस आर्टिकल में बात कर रहे हैं टीकमगढ़ जिले के ब्लॉक बल्देवगढ़ के अंतर्गत आने वाले गाँव लखेरी की। यहां रहने वाली कई महिलाओं को गैस सिलिंडर नहीं मिले हैं।

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गैस कनेक्शन न होने से महिलाओं को होती परेशानियां

लखेरी गांव की तुलसी पाल कहती हैं, जबसे सरकार ने योजना चलाई है तब से ही फॉर्म भरते आ रहे हैं। एक महीने पहले बल्देवगढ़ एजेंसी भी गए। वहां कहा गया कि आएगा तो दे दिया जाएगा। बस आश्वासन मिल रहा है लेकिन आज तक सिलिंडर नहीं मिला। जो योजना के पात्र हैं उन्हें लाभ मिलना चाहिए। बड़े-बड़े लोगों को सिलिंडर मिल रहे हैं वहीं जो महिलाएं जंगल से लकड़ी बीनकर खाना बनाती हैं, सरकार उन्हें योजना का लाभ नहीं दे रही है।

उनकी मांग है कि जांच के बाद उन्हें भी सिलिंडर दिया जाए। आज के समय में लकड़ी नहीं मिलती। किसी के खेत में कंडा-लकड़ी बीनने जाते हैं तो लोग गाली-गलौच करते हैं। अगर जंगल लकड़ी लेने जाते हैं तो जंगल वाले रोकते हैं। कहतें हैं, यहां पर मत आना। ऐसे में जब न लकड़ी-कंडे मिलेंगे और गैस सिलिंडर भी नहीं है तो वह खाना कैसे बनाएंगे और खाएंगे। सबसे पहले तो खाना ज़रूरी है उसके बाद काम होता है।

गीता पाल कहती हैं, घर में सिलिंडर किसी के नाम नहीं है। लगभग 20 लोगों का परिवार है। चूल्हे पर तो पूरा दिन खाना बनाने में निकल जाता है। चूल्हे से निकलने वाले धुएं से आँखों पर भी असर पड़ता है। अगर उन्हें गैस सिलिंडर मिल जाए तो वह धुएं से बच सकते हैं।

ग्राम पंचायत बनेरा गांव मिलनखेरा और गाँव लखेरी की मनबाई ढीमर और गोकुल प्रसाद बंशकार, दोनों की यही समस्या है कि बल्देवगढ़ एजेंसी द्वारा उन्हें यही कहा गया कि जब उनका नाम आएगा तो उन्हें गैस सिलिंडर मिलेगा। गाँव की 10 प्रतिशत महिलाओं को योजना का लाभ नहीं मिला है।

लोगों को सिलिंडर देने की प्रक्रिया ज़ारी है – गैस एजेंसी ऑपरेटर

बल्देवगढ़ गैस एजेंसी के मां विंध्यवासिनी इंडेन गैस एजेंसी के ऑपरेटर नीरज रैकवार ने बताया कि साल 2016 में चालू हुई योजना कुछ दिन पहले बंद हो गयी थी। दूसरे चरण में यह योजना 10 अगस्त 2021 को शुरू हुई जिसमें कुल 1,600 कनेक्शन आये हुए हैं जिसमें से 700 कनेक्शन बंट चुके हैं। काफ़ी लोगों को सिलिंडर मिलने की प्रक्रिया ज़ारी है। वहीं जिन लोगों ने यह आरोप लगाया है कि उनका सिलिंडर किसी और को दिया जा रहा है तो ऐसा कुछ नहीं है। जिन लोगों के नाम आ जाते हैं उन्हें फोन करके सूचित कर दिया जाता है। अब जिनका नहीं आता वह उनको कहां से दें।

इस खबर की रिपोर्टिंग रीना द्वारा की गयी है। 

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