खबर लहरिया Blog “गुलामी की अंतिम हदों तक लड़ेंगे”- रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की कविताएं हर ज़ुल्म की आवाज़ बनेंगी

“गुलामी की अंतिम हदों तक लड़ेंगे”- रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की कविताएं हर ज़ुल्म की आवाज़ बनेंगी

यूपी सिर्फ ऐतिहासिक जगह, धार्मिक स्थानों के लिए ही नहीं बल्कि क्रांतिकारी कवियों के लिए भी जाना जाता है। आज हम आपको उत्तरप्रदेश के एक ऐसे क्रांतिकारी कवि से रूबरू करवाएंगे। जिसके बाद हो सकता है कि उनके शब्द आपकी ज़बा से चिपक जाएं।

कविताएं शुरू से ही विद्रोह या ये कहें कि क्रांति की सबसे बड़ी साधन रही हैं। अब हम उसमें चाहें आज़ादी के गीतों और कविताओं की बात कहें या फिर हक की लड़ाई में इस्तेमाल होतेचीर शब्द जो कि व्यक्ति, समुदाय के दिमाग पर छपसी जाती है। आज भी कविताओं और शब्दों का उतना ही महत्व है, जितना की पहले था। किसी भी लड़ाई या आंदोलन में सबसे ज़्यादा गूंज शब्दों की होती हैं। जैसे ये पंक्तियां, ” ज़ुल्मी जबजब ज़ुल्म करेगा, सत्ता के गलियारों से,चप्पा चप्पा गूंज उठेगा इंकलाब के नारों से आपने इस पंक्ति को कई प्रदर्शनों में भी सुना होगा। ये कविताएं हमारे ज़हन में दबी आवाज़ को चीखचीखकर कहने का काम करती हैं। जहाँ शब्द आवाज़ से भी ज़्यादा शोर मचाते हैं। 

गुलामी की अंतिम हदों तक लड़ेंगे“- रमाशंकर यादवविद्रोही

                                                       फोटो साभार – सोशल मीडिया

इस ज़माने में जिनका ज़माना है भाई

उन्हीं के ज़माने में रहते हैं हम

उन्हीं की हैं सहते, उन्हीं की हैं कहते

उन्हीं की खातिर दिनरात बहते हैं हम।

यह उन्हीं का हुक्म है जो मैं कह रहा हूँ

उनके सम्मान में मैं कलम तोड़ दूँ

ये उन्हीं का हुक़ूम है

सबक लिए और मेरे लिए

कि मैं हक छोड़ दूँ।

लोग हक छोड़ दें पर मैं क्यों छोड़ दूँ

मैं तो हक की लड़ाई का हमवार हूँ

मैं बताऊं कि मेरी कमर तोड़ दो,मेरा सिर फोड़ दो

किंतु ये कहो कि हक़ छोड़ दो।

 

आपसे कह रहा हूँ अपनी तरह

अपनी दिक्कत से सबको ज़िरह कर रहा हूँ

मुझको लगता है कि मैं गुनहगार हूँ

क्योंकि रहता हूँ मैं कैदियों की तरह।

 

मुझको लगता है कि मेरा वतन जेल है

ये वतन छोड़कर अब कहाँ जाऊंगा

अब कहाँ जाऊंगा जब वतन जेल है

जब सभी कैद हैं तब कहाँ जाऊंगा।

मैं तो सब कैदियों से यही कह रहा

आओ उनके हुकुम की उदूली करें

पर सब पूछते हैं कि वो कौन है

और कहाँ रहता है।

मैं बताऊँ कि वो जल्लाद है

वो वही है जो कहता है हक़ छोड़ दो

तुम यहाँ से वहाँ कहीं देख लो

गांव को देख लो और शहर देख लो

अपना घर देख लो

अपने को देख लो

कि इस हक की लड़ाई में तुम किस तरफ़ हो।

आपसे कह रहा हूँ अब अपनी तरह

कि मैं सताए हुओं की तरफ हूँ

और जो भी सताए हुओं की तरफ है

पर उनकी तरफ़ इसके उलटी तरफ़ है।

उधर उस तरफ़ आप मत जाइए

जाइए पर अकेले में मत जाइए

ऐसे जाएंगे तो आप फँस जाएंगे

आइए अब हमारी तरफ आइए।

आइए इस तरफ की सही राह है

हम कमेरों की भी क्या कोई जात है

हम कमाने के खाने का परचार ले

अपना परचम लिए अपना मेल लिए

आख़िरी फैसले के लिए जाएंगे।

अपनी महफ़िल लिए अपना डेरा लिए

उधर उस तरफ़

ज़ालिमों की तरफ़ 

उनसे कहने की गर्दन झुकाओ चलो

अब गुनाहों को अपने कबूलो चलो।

दोस्तों उस घड़ी के लिए अब चलो

और अभी से चलो उस खुशी के लिए

जिसके खातिर लड़ाई ये छेड़ी गई

जो शरू से अभी तक चली रही है

और चली जाएगी अंत से अंत तक

हम गुलामी की अंतिम हदों तक लड़ेंगे……

अर्थ

उदूलीआज्ञा मानना , ज़िरहबहस, दलील

हमवारबराबर,एकसा

जीवन परिचय

जीवनकाल : 3 दिसंबर, 1957 से 8 दिसंबर, 2015

जन्मउत्तरप्रदेश, सुल्तानपुर

मरने की जगहदिल्ली

मुख्य रचनाएं : नई खेती, औरतें, मोहनजोदाड़ो, जनगणमन, कविता और लाठी आदि।

विषयसामाजिक

भाषाहिंदी, अवधी

 

 

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