राजा,मंत्री,चोर,सिपाही का खेल चार लोगों के बीच खेला जाता है। इसमें चार कागज की छोटी-छोटी पर्चियां बनाई जाती हैं। चारों पर्चियों पर अलग-अलग चोर, सिपाही, राजा और मंत्री का नाम लिखा जाता है। सबसे ज़्यादा अंक राजा के पास होते हैं। दूसरे नंबर पर मंत्री, तीसरे पर सिपाही और आखिर में चोर होता है, जिसका अंक ज़ीरो यानी शून्य होता है।
बचपन में हम सब कई ऐसे खेल खेलते थे जो हमारे दिल को खुशी से भर देते थे। बचपन को खेल से कोई जुदा नहीं कर सकता। गांव की खुशबू और बचपन के खेल। आज भी मुझे याद है, अपनी छुट्टियों के दिन मैं अपनी चाची के साथ बिताया करती थी।
दोपहर में जल्दी-जल्दी सारे काम निपटाकर मेरी दो सहेलियां और चाची, हम सब साथ में मस्ती करते थे। हम टोली बनाकर चोर-सिपाही का खेल खेलते थे। एक खाली पन्ना और कलम उठाकर कागज की पर्ची बनाते थे और फिर क्या शुरू हो जाती थी, धमाल चौकड़ी। हम बात कर रहे हैं उसी खेल की जिसे सुनते ही बचपन की सारी कहानी आंखों के आगे घूमने लगती है, ‘राजा,मंत्री,चोर,सिपाही’ का खेल।
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ऐसे खेला जाता है खेल
राजा,मंत्री,चोर,सिपाही का खेल चार लोगों के बीच खेला जाता है। इसमें चार कागज की छोटी-छोटी पर्चियां बनाई जाती हैं। चारों पर्चियों पर अलग-अलग चोर, सिपाही, राजा और मंत्री का नाम लिखा जाता है। सबसे ज़्यादा अंक राजा के पास होते हैं। दूसरे नंबर पर मंत्री, तीसरे पर सिपाही और आखिर में चोर होता है, जिसका अंक ज़ीरो यानी शून्य होता है।
चारों पर्चियों को हवा में उछाला जाता है और फिर सभी खिलाड़ी एक-एक पर्ची उठाते हैं। वैसे कोशिश तो सबकी यही होती है कि उन्हें राजा की पर्ची मिल जाए और चोर की पर्ची से वे बच जाए। अब जिसके हिस्से में जो पर्ची आती है वो उसे अपने पास रखता है। मंत्री की पर्ची जिसके हाथ में होती थी वो आदेश देता है, सिपाही, चोर को पकड़ो। फिर सिपाही की पर्ची लाने वाले को यह तय करना होता था कि चोर कौन है। उसे राजा और चोर के बीच में किसी एक को अंदाजा लगाकर बताना होता था कि चोर कौन है और यही खेल का सबसे मज़ेदार पड़ाव भी होता था, बिलकुल ‘बूझो तो जानो’ की तरह।
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जिसके नंबर ज़्यादा, वो विजेता
पर्ची उछालने का सिलसिला लगभग 10 से 12 बार चलता था। हर खिलाड़ी के नाम के खाने (कॉलम) बनाए जाते थे। हर बार चोर का फैसला होने के बाद सभी खिलाड़ियों के हाथ में आई पर्ची के नंबर उसके नाम के आगे लिखे जाते थे। जैसे जिसको राजा की पर्ची मिली उसके नाम के आगे 1000 अंक और इसी तरह से चोर, सिपाही और मंत्री के अंक होते थे। आखिरी में सभी के अंक जोड़े जाते थे। वैसे चोर की पर्ची वाले व्यक्ति के हाथ तो कुछ नहीं लगता।
सभी अंक जोड़ने के बाद जिसके नंबर सबसे ज़्यादा होते, वह खेल का विजेता होता। जो भी कोई जीतता था तो सब मिलकर हंसी के ठहाके लगाते थे। समय कब गुज़र जाता था, पता ही नहीं चलता था। आज भी सोचते हैं तो यही लगता है कि ये समय कितना जल्दी चला गया, उसे थोड़ा और थाम लेना था।
हमारी कहानीकर्ता बताती हैं, वह इस खेल को इसलिए खेलती थी क्योंकि उन्हें अपनी चाची की कहानी सुनना बहुत पसंद हुआ करता था। सब लोगों के साथ मिलकर खेलना पसंद था। इसलिए अगर वह चोर, सिपाही, राजा, मंत्री खेलतीं तो रात में उनकी चाची उन्हें कहानी सुनातीं। उनकी कहानी सुनते-सुनते फिर उन्हें नींद आ जाती थी।
इस लेख को संध्या व गीता देवी द्वारा लिखा गया है।
इलस्ट्रेशन – ज्योत्स्ना सिंह
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