खबर लहरिया Blog गिल्ली-डंडा, छुपन-छुपाई इत्यादि बचपन के वो खेल जो आज बस याद बन गए

गिल्ली-डंडा, छुपन-छुपाई इत्यादि बचपन के वो खेल जो आज बस याद बन गए

आज भी बच्चे आधुनिक वीडियो गेम्स की दुनिया के परे खो-खो, गिल्ली-डंडा व पिट्ठू ग्राम आदि जैसे खेलों को खेलना और उसे जीना पसंद करते हैं।

आधुनिक वीडियो व डिजिटल गेम्स में वो खेल कहीं खो से गए हैं जो हर किसी के बचपन की यादों में आज भी कहीं न कहीं बसे हुए हैं। आज वे खेल अमूमन हमारी यादों में ज़्यादा जीवंत दिखाई प्रतीत होते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बच्चे आधुनिक वीडियो गेम्स की दुनिया के परे खो-खो, गिल्ली-डंडा व पिट्ठू ग्राम आदि जैसे खेलों को खेलना और उसे जीना पसंद करते हैं। चलिए बात करते हैं, बचपन के उन यादगार खेलों के बारे में और उनके साथ जुड़ी कहानियों के बारे में भी।

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गिल्ली-डंडा

गिल्ली-डंडा

गिल्ली-डंडा का खेल सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है। बच्चों में इस खेल को लेकर ख़ासा ज़िक्र देखने को मिलता है। बस इस खेल को खेलने में थोड़ी सावधानी बरतने की ज़रुरत होती है। यह खेल मज़ेदार भी है और थोड़ा सावधानी भरा भी। थोड़ी-सी चूक से किसी की आँख या नाक फूट सकती है।

इस खेल में डंडे की मदद से गिल्ली को दूर पहुँचाने की कोशिश रहती है, वहीं दूसरे खिलाड़ी को गिल्ली को उठाकर उसकी जगह बदलनी होती है। इस तरह से यह खेल ज़ारी रहता है।

कहानी : तो यह कहानी हमारी रिपोर्टर गीता देवी की है। इस खेल को वह बचपन में बहुत खेलती थीं। उस समय गीता की उम्र लगभग 10 साल होगी। गर्मी का मौसम था और दोपहर के समय खाना के बाद नीम के पेड़ के नीचे गीता व उनकी दोस्त मिलकर गिल्ली-डंडा खेलने लगे। खेलने में बहुत मज़ा आ रहा था। पास खड़े बच्चे देख रहे थे। जब गीता ने डंडे से गिल्ली मारी तो वह छिटक कर एक लड़के के चेहरे पर लग गयी और उसके चेहरे पर सूजन आ गयी। गीता को खूब डांट पड़ी और शायद इसी वजह से गीता को वो दिन आज भी याद है जिसे सोचकर उन्हें बहुत हँसी भी आती है।

खो-खो

खो-खो

इस खेल में दो टीमें होती हैं। एक टीम रनिंग (दौड़ना) करती है और दूसरी उसे चेज़ (पीछा करना)। चेज़ करने वाली टीम के 9 खिलाड़ी सीमित दूरी पर एक-दूसरे के विपरीत मुंह करके बैठते हैं। रनिंग टीम के खिलाड़ी एक-एक करके मैदान के अंदर आते हैं, जिन्हें चेज़ करने वाली टीम के खिलाड़ियों को एक निर्धारित समय के अंदर आउट करना होता है। बारी-बारी से दोनों टीमों को रनिंग करने का मौका मिलता है। इसमें जो ज़्यादा खिलाड़ियों को आउट करता है, वह टीम विजेता बन जाती है।

छुपन-छुपाई

hide and seek

छुपन-छुपाई का खेल बड़ा ही मज़ेदार खेल होता है जिसमें एक व्यक्ति सभी छिपे हुए लोगों को ढूंढ़ता है। सबसे पहले एक खिलाड़ी को अपनी आँखे बंद करके गिनती गानी होती है।

इसी दौरान बाकी खिलाड़ियों को सीमित क्षेत्र में छिपना होता है। फिर खेल की अगली कड़ी में आंखें बंद करने वाले खिलाड़ी को छिपे हुए सभी खिलाड़ियों को ढूढ़ना होता है। अगर वह इसमें कामयाब होता है, तो सबसे पहले ढूंढ़े गए खिलाड़ी को अपनी आंखें बंद करनी होती है और फिर से वही प्रक्रिया दोहरानी होती है। अगर वह छुपे हुए खिलाड़ियों को नहीं ढूंढ़ पाता और पीछे से किसी खिलाड़ी ने आकर टीप मार दी यानी छू दिया तो फिर उस खिलाड़ी को दोबारा से खेल को शुरू करना पड़ता है। कोई दरवाज़े के पीछे छुपता है तो कोई खटिया के, हा हा कितना मज़ेदार है न।

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कंचा गोली

कंचा गोली

कंचा-गोली का खेल आज भी गाँवो में कई बच्चे खेलते दिखाई दे जाते हैं। इसे खेलने के लिए छोटी-छोटी गोलियों का इस्तेमाल होता है। ये गोलियां ज़्यादातर मार्बल्स की बनी होती हैं।

इस खेल को खेलने के इतने तरीके हैं कि बताना मुश्किल होता है, कौन-सा ज़्यादा लोकप्रिय है। फिर भी ज़्यादातर एक गोली को अंगुली की मदद से दूसरी गोली पर निशाना लगाने का तरीका और घीसी जो हाथ की कोहनी के बल खेलते हैं, इन दो तरीकों से खेलना सबसे ज़्यादा पसंद किया जाता है।

खेल का नियम कुछ ऐसा होता है कि गोली पर सही निशाना लगाने वाले खिलाड़ी को दूसरे खिलाड़ी एक गोली देनी होती है। आखिर में जो ज़्यादा गोलियां जीतता है, वह इस खेल का राजा/रानी कहलाता है।

इससे जुड़ा हम आपको एक मज़ेदार किस्सा सुनाते हैं। रिपोर्टिंग के लिए हमारी रिपोर्टर श्यामकली एक गांव में पहुंची। वहां कुछ बच्चे कंचे खेल रहे थे और खूब धूम मचा रहे थे। आस-पास भीड़ इकठ्ठा हो रखी थी। बच्चों को खेलता देख श्यामकली को भी अपने बचपन की याद गयी और उन्होंने बच्चों को उनके साथ खिलाने को कहा। वह भी बच्चों के साथ खेलने लगी और दूसरे ही चांस में बच्चों ने श्यामकली को आउट कर दिया।

आंख-मिचौली

आंख-मिचौली

 

आंख-मिचौली के खेल में एक खिलाड़ी की आंखों में पट्टी बांधी जाती है। फिर उसे बाकी खिलाड़ियों को पकड़ना होता है। पकड़े जाने पर दूसरे खिलाड़ी को इसी प्रक्रिया से गुज़रना होता है।

इस खेल को खेलने का एक और दिलचस्प तरीका है। जिस खिलाड़ी की आंखें बंद होती है उसके सिर पर बाकी खिलाड़ी एक-एक करके थपकी मारते हैं। ऐसे में अगर वह सबसे पहले मारने वाले को पहचान लेता है तो पहचाने गए खिलाड़ी की आंखें बंद की जाती है। वहीं इस खेल में खिलाड़ियों की संख्या पर रोक नहीं होती है।

पिट्ठू ग्राम / पिट्टू का खेल

पिट्ठू ग्राम / पिट्टू का खेल

पिट्टू का खेल, खेलने के लिए एक गेंद और कुछ समतल पत्थरों की ज़रूरत होती है। इन पत्थरों को एक के ऊपर एक सजाया जाता है। फिर गेंद की मदद से पहली टीम का खिलाड़ी, इन्हें तय की गयी दूरी से गिराने की कोशिश करता है। अगर वह उन पत्थरों को गिराने में सफल होता है तो दूसरी टीम के खिलाड़ी उसे गेंद की मदद से चेज़ (पकड़ते) करते हैं।

गेंद, पत्थर गिराने वाले खिलाड़ी की टीम के किसी भी साथी को छुए, इससे पहले उन्हें गिरे हुए समतल पत्थरों को सजाकर पिट्ठू ग्राम बोलना पड़ता है। अगर वह ऐसा नहीं कर पाता तो वह टीम से बाहर हो जाता है। यह सिलसिला टीम के आखिरी खिलाड़ी तक चलता रहता है। इस खेल को भी जितने लोग चाहें एक साथ खेल सकते हैं। बस दोनों टीमों में खिलाड़ी की संख्या बराबर होनी चाहिए।

रस्सी कूदना

रस्सी कूदना

रस्सी कूद के इस खेल को भी कई तरीके से खेला जा सकता है। पहला तरीका यह है कि आप इस अकेले भी एक रस्सी की मदद से खेल सकते हैं।

दूसरे तरीके में तीन खिलाड़ियों की ज़रुरत पड़ती है। पहले दो खिलाड़ी रस्सी के दोनों सिरों को पकड़ते हैं। वहीं तीसरा लगातार रस्सी के बीच में कूदता है। उसे इसका ख्याल रखना होता है कि रस्सी उसके पैर में न फंसे। अगर वह इसमें असफल होता है, तो उसे आउट माना जाता है। इसमें जो खिलाड़ी ज़्यादा बार जंप (कूदता) करता है, वह इस खेल का विजेता माना जाता है। इस खेल की एक खासियत यह भी है कि इसे वज़न घटाने के लिए भी खेला जाता है, लेकिन इस खेल में हमारी रिपोर्टर हमेशा से फिसड्डी रही हैं, जिस बात को उन्होंने खुद ही हमें बताया।

लंगड़ी टांग

लंगड़ी टांग

लंगड़ी टांग के खेल में सफेद या लाल पत्थर की मदद से छोटे-छोटे डिब्बे बनाए जाते हैं। फिर चपटे पत्थर को इन डिब्बों में पैर की मदद से डालना होता है, वो भी बिना लाइन को छुए हुए, एक पैर पर खड़े रहकर। अगर कोई लाइन छू जाती है या गिट्टी बाहर नहीं निकाल पाता तो वो हार जाता है। वहीं जो बिना लाइन छुए बाहर निकल गया, वो जीत जाता है।

इस खेल को कुर्सी और गाने की मदद से भी खेला जाता है। इसमें जितने चाहें उतने खिलाड़ी भाग ले सकते हैं। खेल का नियम कुछ ऐसा होता है कि गाने के बजते ही लोगों को कुर्सी के चारों ओर चक्कर लगाना होता है और गाने के रुकते ही खाली कुर्सी पर बैठना होता है। जो कुर्सी पर नहीं बैठ पाता, वह खेल से बाहर हो जाता है। हर बार कुर्सी कम कर दी जाती है और जो अंत तक कुर्सी पर बैठता है, वह खेल जीत जाता है।

चोर-सिपाही

चोर-सिपाही

चोर-सिपाही के खेल में दो टीमें बनती हैं जिसमें एक पुलिस बनती है तो दूसरा चोर के रोल में होता है। पुलिस बनने वाली टीम को चोर टीम के खिलाड़ियों को पकड़ना होता है। जैसे ही वह अपने इस काम में सफल हो जाते हैं वैसे ही चोर टीम पुलिस बन जाती है और पुलिस टीम चोर बन जाती है। हाहा, मज़ेदार है ना। पुलिस, चोर बन गया और चोर, पुलिस…गज़ब।

बचपन को जीवित रखने वाले यह खेल बस यादों के दायरें में बंध कर रह गए हैं जिसे आज भी कई लोग याद करते हैं। यह खेल आज यादों की तरह बिसरते जा रहे हैं।

इस खबर की रिपोर्टिंग श्यामकली द्वारा की गयी है व ग्राफ़िक्स खबर लहरिया के लिए निव द्वारा बनाये गए हैं। 

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