एक दिन पहले ही मैंने बांदा से कानपुर तक की यात्रा की। सुबह सात बजे रोडवेज बस पकड़ी। लगभग 45 किलोमीटर बस चलने के बाद पहुंचती है यमुना नदी के ऊपर बने पुल पर जिसको सब चिल्ला-घाट पुल के नाम से बुलाते हैं। सुबह का वक्त था। थोड़ी ऊपर चढ़े सूरज की रोशनी नदी के पानी में पड़ती है और उससे चमकने वाली प्रतिबिंब, गहरे नीले आसमान तले चल रही बस मन को सुकून दे रही थी कि अचानक से एक हवा का झोंका आया और सौंधी खुशबू देते हुए गायब। बस मैं समझ गई वह खुशबू दूध और दाने से भरे धान की थी। वह खुशबू बार-बार आती और चिढ़ा कर चली सी जाती रही। मैं समझ रही थी कि सड़क के दोनों तरफ धान के ही खेत लहलहाते नजर आ रहे हैं तो धान की खुशबू ही है।
बहुत लोग खेत में धान काटते हुए भी दिख रहे थे। कुछ लोग तो धान की कुटाई और मड़ाई कर रहे थे। मुझे लग रहा था बस से उतार जाऊं और खेत से धान खरीद लाऊं। उनसे यह भी चिरौरी कर लूं कि वह कांडी-मूसल से थोड़े चावल निकाल दें क्योंकि उसका स्वाद आज भी मुझे याद है। बचपन में दादी-नानी के यहां इन दिनों यही खाने को मिलता था। खाने में इतना अच्छा और पौष्टिक से भरा होता है कि सोचते ही मेरे मुंह में पानी आ गया। आप चावल के साथ चाहे दूध, दही, मट्ठा, सब्जी, दाल या फिर नमक और सरसों का तेल जिसके शौकीन हैं खा सकते हैं।
थाली में सजता चावल, एक औरत की कहानी
ये स्वादिष्ट ख्याल के साथ देखती हूं एक महिला अपने नन्हे शिशु के साथ मेरे बगल वाली सीट में बैठी है। पैरों के नीचे रखे एक गठरी से बच्चे का कजरौटा निकालते हुए बच्चे से बोली चुप हो जा वरना ये दीदी मारेंगी। मैं बच्चे को दुलराते हुए हंसकर बोली उसको पता है कि मैं क्यों मारूंगी उसे। धीरे-धीरे हमारी बातें शुरू हुईं और दोस्ती जैसे हो गई। उसने मुझसे बहुत सारी बातें की। मैंने जैसे ही उससे पूंछा कहां जा रही हो वैसे ही उसने ताना मारते हुए बोली कि आप जैसे लोगों की थाली में सजने वाले चावल मतलब धान की कटाई करने जा रही हूं। तब वह चावल की कहानी विस्तार से बताती है।
“मेरे ससुर के पास पांच बीघे खेती है। इस समय चार बीघे में धान बोया है। दो बीघा अपने खाने के लिए जो मोटा चावल है और दो बीघे में पतला वाला उसको बेचने के लिए लगाया है। हमारे जिले फतेहपुर तरफ यमुना नदी होने के कारण धान की अच्छी पैदावार होती है लेकिन उसके लिए हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। दो महीने पहले ही मेरे बच्चा हुआ है। इस नन्हे बच्चे के साथ मुझे खेत में काम करने के लिए जाना पड़ता है, मजबूरी है।
आज सुबह चार बजे जगी हूं। सबसे पहले भैंस, गाय, दो बैल और तीन बकरियों को चारा डाली। उनके गोबर के कंडे बनाये। बर्तन साफ करके झाडू लगाई। नहाकर खाना बनाई और बच्चे की व्यवस्था की। खाना बांधकर निकल आई हूं। बूढ़े सास-ससुर को बनाकर रख आई हूं उनके पास। धान तैयार करने में बहुत मेहनत लगती है जितना अनाज नहीं उसकी चार गुना मेहनत। सबसे पहले खेत में अहली करके और पानी भरकर धान की बेड लगाई। उसके बाद तीन बार पानी लगाई और तीन बार खाद डाल डाल चुकी हूं। अब जब फसल पक गई है तो खुद ही काटने भी जा रही हूं। अभी तो दवाई कराने जा रही हूं बच्चे की वापसी आने पर सीधे खेत चली जाऊंगी इसलिए पूरी व्यवस्था के साथ निकली हूं।
जब मैंने उससे और पूंछा कि काटने के बाद क्या काम करना पड़ता है तो उसने आगे बताया कि काट कर सूखने के लिए फैला देंगे। सूख जाने पर धान की मड़ाई करेंगे बैलों से और कुछ पछाड़-पछाड़ के धान पयार से अलग कर लेंगे। धान साफ-सुथरा करेंगे फिर ले जाएंगे मील वहां दरवा के चावल निकलवा लेंगे और बाज़ार में या मंडी में बेंच देंगे। मोटे वाले धान को चक्की में दरवा के रख लेंगे साल भरके खाने के लिए हो जाएगा। ताकि हम लोग मोटे चावल से ही काम चला लें और मेरे तरफ इशारा करते बोली आप जैसे लोगों की थाली पतले और खुशबूदार चावल से सज सके। जितना ज्यादा महिलाओं का खून-पसीना खेती के काम में बहेगा उतना ज्यादा अच्छे और खुशबूदार चावल अमीर घरानों की थाली सजायेंगे।
इस तरह से बात करते करते उसका स्टॉप आ गया और वह गठरी उठाई और उतरते हुए बोली कि मेरी बातों का बुरा न मानना दीदी। हमारी कहानी सब कोई नहीं सुन सकता। बहुत आम है हमारी जिंदगी और महकते खुशबूदार चावल की। हम चावल के लिए मरते हैं और चावल हमारे लिए तभी तो हम दोनों घर, परिवार और समाज की जिंदगी सजाते हैं।