वृद्ध ललिता देवी, जो खुद उस समय भवन निर्माण की गवाह थीं, बताती हैं। हमने खुद मेहनत कर के यह भवन बनवाया था। ना सरकार से कोई मदद मिली, ना किसी नेता से। सबकुछ अपने बल पर किया। परंतु बीते 25 सालों में इस भवन की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – कुमकुम
पटना जिले के फुलवारी ब्लाक कोरियावा पंचायत के अंतर्गत नगवा गांव में दो सामुदायिक भवन हैं – एक सरकारी सुविधाओं से परिपूर्ण, जबकि दूसरा मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित। स्थानीय लोगों का आरोप है कि जातीय भेदभाव के चलते ऐसा हो रहा है।
पासवान समाज का भवन
नगवा गांव के पासवान टोला में स्थित सामुदायिक भवन आज से करीब 25 वर्ष पहले दलित समुदाय द्वारा मिल-जुलकर चंदा इकट्ठा करके बनवाया गया था। सरकारी जमीन पर गांव के लोगों ने स्वेच्छा से श्रमदान और धन एकत्र कर एक कमरा और बाउंड्री बनवाई ताकि उनके समाज के लोग अपने पारिवारिक और सामाजिक कार्यों को एक छत के नीचे सम्पन्न कर सकें। साथ ही उन्होंने अपने पैसे से एक हैंडपंप भी लगवाया।
वृद्ध ललिता देवी, जो खुद उस समय भवन निर्माण की गवाह थीं, बताती हैं। हमने खुद मेहनत कर के यह भवन बनवाया था। ना सरकार से कोई मदद मिली, ना किसी नेता से। सबकुछ अपने बल पर किया। परंतु बीते 25 सालों में इस भवन की हालत में कोई खास बदलाव नहीं आया। न तो शौचालय की व्यवस्था है, न ही बिजली, न नल जल योजना से पानी की सुविधा, न फर्नीचर, न रंगाई-पुताई। सामाजिक कार्यों में यह भवन जरूर प्रयोग होता है, लेकिन बिना सुविधाओं के, वह भी केवल समाज के सहयोग से।
रेनू देवी, जो पासवान टोले की निवासी हैं। गुस्से में कहती हैं, क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं जब वोट की बात होती है तो सभी जाति धर्म बराबर दिखते हैं, पर सुविधाओं में भेदभाव क्यों ।
कुशवाहा समाज का सामुदायिक भवन
वहीं दूसरी ओर, गांव के नहर के पास स्थित दूसरा सामुदायिक भवन जो कुशवाहा समाज के बीच में बना है, हर सुविधा से परिपूर्ण है। यह भवन स्वर्गीय कैलाश महतो द्वारा दान की गई जमीन पर बनाया गया। बताया जाता है कि इसे सांसद पीसी पाठक के प्रयासों से बनवाया गया था।
हाल ही में इस भवन में रंगाई-पुताई, फर्श की मरम्मत, फर्नीचर (टेबल-कुर्सी), पंखा और लाइट की व्यवस्था की गई। यहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बैठकें होती हैं, ब्लॉक स्तरीय योजनाओं की चर्चा होती है और गांव के मुख्य आयोजन भी इसी भवन में होते हैं।
स्थानीय निवासी नवीन कुशवाहा बताते हैं, यह भवन हमारे समाज के लिए गर्व की बात है। नेता जी (सतीश जी, मुखिया पति) ने हाल ही में खुद जाकर इसकी मरम्मत करवाई है। अब यह और सुंदर और उपयोगी हो गया है।
ग्रामीणों ने लगाया जातिगत भेदभाव का आरोप
पासवान समाज के लोगों का आरोप है कि इस अंतर का कारण सीधा-सीधा जातिगत भेदभाव है। उनके अनुसार, पंचायत की मुखिया देवंती देवी के पति सतीश जी खुद मितवा (कुशवाहा) समाज से हैं, इसलिए उन्होंने अपने समाज के भवन की सजावट और सुविधा में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि पासवान समाज के भवन को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया।
शैलेंद्र पासवान कहते हैं, हमने अपनी मेहनत से भवन बनवाया। सिर्फ इतना चाहते हैं कि उसमें एक शौचालय, नल जल और कुछ जरूरी सामान पंचायत के पैसे से लगवा दिए जाएं, लेकिन बार-बार मांग करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं होती।
रेनू देवी बताती हैं कि एक बार ग्रामीणों ने खुद भवन में रंगाई-पुताई करवाने की ठानी थी, लेकिन तब भी उन्हें पंचायत से कोई सहयोग नहीं मिला। हम बार-बार कहते हैं।लेकिन पंचायत सिर्फ वादे करती है, करती कुछ नहीं है।
मुखिया ने बताया सिर्फ रिपेयरिंग का बजट था
कोरियावां पंचायत की मुखिया देवंती देवी से संपर्क नहीं हो सका, तो उनके पति सतीश कुमार से इस मुद्दे पर बात की गई। उन्होंने कहा, हमें सरकार की तरफ से भवनों की मरम्मत के लिए सीमित फंड मिला था। दोनों भवनों की मरम्मत करवाई गई। जहां तक पासवान समाज के भवन की बात है, वहां न तो शौचालय के लिए उचित जगह है, न नल-जल योजना की पाइपलाइन अभी उस इलाके तक पहुंची है।
उन्होंने यह भी कहा, हम जातिवाद नहीं करते। सबको बराबरी से देखते हैं। जो फंड मिलता है, उसी हिसाब से काम किया जाता है।
खबर लहरिया की रिपोर्टर ने बताया सवाल कई हैं, जवाब कोई नहीं।
इस पूरे मामले में सवाल यह उठता है कि क्या पंचायत प्रतिनिधियों का फर्ज सिर्फ अपने समाज तक सीमित है क्या पंचायत निधि और सरकारी योजनाओं का लाभ केवल एक समुदाय तक सीमित रहेगा और अगर दलित समुदाय ने खुद से भवन बनवाया है, तो क्या उन्हें सरकारी सहयोग का हक भी नहीं मिलना चाहिए ।
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