उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की सूची सभी जिलों में जारी कर दी गई है। इससे सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों को हुई है, जो लंबे समय से एक ही सीट से चुने जाते रहे हैं। या यह भी कह सकते हैं की आज भी गांव की सरकार चलाने वाले कुछ ऐसे भी परिवार हैं जिनके पास आजादी के बाद से आज तक प्रधानी बराबर बरकरार रही है, लेकिन इस बार पंचायत चुनाव को लेकर हुए आरक्षण ने दशकों पुराने सीमा करण को बदल दिया हैं। आइये जानते हैं उस गाँव की कहानी।
नरैनी विकासखंड का मूड़ी। एक दौर में यहाँ के निवर्तमान प्रधान सीताशरण द्विवेदी अगर हाथ उठाकर चुना जाये तो गांव के मुखिया चुने जाते थे। आज तक प्रधानी उनके ही परिवार में रही। 25 वर्षो का इतिहास भी जिसका गवाह है। पहले दादा फिर उनके छोटे भाई और उसके बाद बेटे और बहू के हाथ ही गांव की सरकार रही। इस बार फिर दावा करते लेकिन आरक्षण ने निराश कर दिया है।
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आरक्षण के चलते टूटी 25 सालों से बंधी डोर
निवर्तमान प्रधान सीताशरण द्विवेदी बताते हैं कि उनके गांव में लगातार सामान्य सीट रहने से परिवार के पास ही प्रधानी रही है। गांव में सब के साथ तालमेल और व्यवहारिक भाईचारा के साथ सरकार की ओर आने वाली योजनाओं का काम किया और जनता के लोकप्रिय बने रहे। और जनता उनके हाथों में ही बराबर गांव की सरकार चलाने का जिम्मा सौंपती रही। इस बार भी आरक्षण के तहत अगर सीट नहीं बदलती तो दावा जरूर ठोंकते और उस दावे में खरे उतर कर बहुमत से जीत भी हासिल करते लेकिन, आरक्षण के चलते उनकी ये डोर इस बार टूट गई। जिसकी उन्हें थोड़ी निराशा भी महसूस पर इस बदलाव से किसी और को मौका मिला है इसकी खुशी भी है।
विकास कार्यों की प्राथमिकता से बनी रही कुर्सी
सीताशरण द्विवेदी ने हमें बताया कि उनके क्षेत्र से दोनों सीटों पर बदलाव हुआ है प्रधानी में एससी सीट है और जिला पंचायत में बैकवर्ड। नहीं तो वह जिला पंचायत चुनाव पर दांव जरुर आजमाते पर कोई बात नहीं आगे फिर मौका मिला तो जरुर भाग्य आजमाएंगे। उनका कहना है कि इतने वर्ष तक गांव की सत्ता अपने पास रखना इतना भी आसान नहीं लेकिन विकास कार्यों को प्राथमिकता और समय-समय पर नुक्कड़ बैठक कर आम जनता की समस्याओं को हल करना ही उनकी जीत का राज रहा है। एक अन्य सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि पहले आरक्षण में बड़े गांव लिए जाते थे जिसमें उनका गांव बच जाता था। और अगर इस बार भी सामान्य सीट रहती तो खुद या महिला सीट होने पर उनकी पत्नी चुनाव लड़ती।
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कब और किसने संभाली कमान
वह बताते हैं कि दादा बताते थे कि पंचायती राज चुनाव एक्ट लागू होने के पहले चुनाव में दादा गिरजा शंकर द्विवेदी वर्ष 1995 में सामान्य सीट पर चुनाव लडें थे और गांव के प्रधान चुने गए थे। तब के समय में एक बार हाथ उठाकर सभी की सहमति से प्रधान चुन लिया जाता था। वर्ष 2000 में चुनाव हुआ तो वह फिर विजयी हुए। इसके बाद वह वृद्ध हुए तो वर्ष 2005 में उनके छोटे भाई जो मेरे पिता थे भूरे लाल दिवेदी प्रधान चुने गए। इसके बाद 2010 में वह खुद प्रधान हुए। महिला सीट होने पर वर्ष 2015 में उनकी पत्नी मीरा देवी चुनाव लड़ी और जीत भी गई। 25 वर्ष तक प्रधानी उनके परिवार के कब्जे में रही। यह उनके लिए एक बहुत ही बड़ी बात है। उनका कहना है कि गांव के किसी भी नागरिक को उन्होंने उदास नहीं होने दिया यही कारण रहा है कि उनके परिवार में 25 सालों तक प्रधानी रही। जबकि उन्होंने ज्यादातर देखा है कि 5 साल तक कार्य करने के बाद लोग सरकार बदल देते हैं, लेकिन उन्होंने अपने गांव में जिस तरह से इतने दिन सरकार चलाई है यह उनके लिए एक खुशी की बात है।
मूड़ी गांव के लल्लू बताते हैं की इस बार उनके गांव में नया प्रधान जरुर बनके आयेगा, लेकिन जो भाई चारा के साथ गांव की सरकार चलाने में इस परिवार का था वह होना मुश्किल है। क्योंकि वह परिवार चाहे जैसा हो पर गांव के विकास कार्य और जनता की समस्याओं को समझने और सुलझाने के लिए हमेशा साथ रहा है। इतने दिन गाँव की सरकार चलाई पर किसी से कोई मनमुटाव नहीं हुआ। पर बदलाव अच्छा है अब देखते हैं की प्रधानी का ताज किसके सर बंधेगा।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए गीता देवी द्वारा रिपोर्ट और प्रोड्यूसर ललिता द्वारा लिखा गया है।