मजदूर दिवस पर आंखों देखी, कानों सुनी दास्ताँ लेकर आई हैं कविता, देखिए द कविता शो में: मिलकर के जाम मिल के जाम करो शोषण पहिया दुष्टो से लडने को एक हो जा भइया,हमरे ही कमाई से बने कारखाने हमको ही मिलता नहीं पेट भर दाने ,खाने को रोटी नहीं खाने को रोटी नहीं देंगें कधंइया दुष्टो से लडने को एक हो जा भइया ये गाना मैंने मजदूरों के लिए गाया है आज मजदूर दिवस है आज के दिन देश भर में मजदूरों को आराम का दिन बताया गया है और कहां गया है कि एक दिन सारे काम बंद रहेगें ताकि एक दिन मजदूर आराम करें इस दिवस की शुरूआत मजदूर संघ ने की थी जिसमें मांग की गई थी कि आठ घंटे काम ,आठ घंटे आराम और आठ घंटे मनोरंजन के लिए दिये जायेगें दोस्तों दिल में हाथ रख कर कहिए क्या ऐसा ही होता है मजदूरों के साथ आज हमारा देश विशेष परिस्थितियों से जूझ रहा है कोरोनावायरस के वजह से पूरा देश लाक डाउन है जो जहां फंसा है वहीं पर है पर इसमें सबसे बुरे हालात हैं मजदूरों के दिल्ली, मुम्बई,सूरत महाराष्ट जैसे कयी महा नगरों में फंसे हैं मजदूरों को सारे कंपनी के मालिकों ने निकाल फेंका हैं उनके काम का पैसा भी नहीं दिया है ना ही खाने की कोई व्यवस्था की गई है कुछ मजदूर तो पैदल चलकर अपने गांव पहुंचे और इस पैदल के दौरान बहुत सारी यातनाये झेली लेकिन न तो सरकार और ही कम्पनी मालिकों एक रोला तक नहीं पसीजा सैकड़ों मजदूरों के फोन मेरे पास आये लोग फोन करके दो ही बात बोलते हैं मैडम हमको यहां से निकलवा लीजिए या हमें खाने को भेजवा दीजिए हम निकलवा तो सकते लेकिन हमने उन सभी मजदूरों को कहीं न कहीं से खाने की व्यवस्था जरूर करवाई है लेकिन मजदूरों की इस पीड़ा का सहन अब नहीं हो रहा है मजदूर दिवस की घोषणा भर करने से क्या होता है जब हमारे देश के मजदूरों के हालात बद से बद्तर हो गयें हैं जो मजदूर पैदल चलकर अपने गांव आयेऔर इतनी यातनाये झेले उनके इस दर्द से मुझे लगा कि सायद अब मजदूर वर्ग पलायन नहीं करेगा चाहे जैसे हालात हो वो अपने गांव में ही खेती किसानी या मेहनत मजदूरी करके खाये कमायेगा और निकल पड़े मजदूरों के दिल की बात को जानने के लिए लेकिन हम गलत सोच रहे थे जब हम मजदूरों से मिले तो विचार एकदम उल्टा थे मजदूरों ने कहां जैसे ही लाकडाऊन खुलेगा हम दुबारा काम के लिए पलायन करेगें , सरकार या कम्पनी मालिक हमारे साथ चाहे जितना अत्याचार करेगी हम मजबूर हैं दुबारा से उसी जगह जाने के लिए क्योंकि हमारे इलाके में कोई काम ही नहीं है न ही कोई बडी फैक्ट्री है न ही कारखाने हैं और न ही सरकार की तरफ से कोई रोजगार है लाकडाऊन में हम बैठ कर खा रहे हैं लोगों से कर्ज लेकर तो वह कर्ज भी भरना होगा तो साथियों यही है ज़मीनी हकीकत बुंदेलखंड में दो बड़ी फैक्ट्रियां है एक बांदा में कताई मिल और दूसरी चित्रकूट के बरगढ में ग्लास फैक्ट्री दोनों फैक्ट्रियां एक दसक से बंद है ये फैक्ट्रियां अगर चालू हो जाये अपना बुंदेलखंड के मजदूरों का पलायन रूक सकता है , लेकिन यह बात भी है अगर ये फैक्ट्रियां चालू हो जायेंगी तो हमारे इलाके सांसद और विधायक का चुनावी मुद्दा ही खत्म हो जायेगा क्योंकि हर बार के लोकसभा और विधानसभा के चुनाव प्रचार में नेता छाती ठोक ठोक कर ये फैक्ट्रियां चालू करवाने का भरोसा देते हैं और राजनितिक की जमकर रोटियां सेकते हैं लेकिन जीतने के बाद फिर का मजाल है कि मजदूर वर्ग नेताओं के चौखट तक चढ़ जाये तो दोस्तो यह स्थिति की खुली किताब है मुझे लगा मजदूर दिवस के दिन उनको बधाई न देकर उनके मुद्दों पर बात करना ज्यादा जरूरी है ,मैं जाते जाते बस यही कहूंगी कि सरकार लाकडाउन में फंसे मजदूरों को उनके घर तक पहुंचा दे और उनके खाने पीने की व्यवस्था तब तक करें जबतक उनको कोई रोजगार न मिल जाये तो साथियों कैसे लगा ये वाला शो आप जरूर से मुझे बताये आप हमारे चैनल खबर लहरिया को लाइक, सब्सक्राइब और सेयर करना न भूलें अगले हफ्ते मैं फिर मिलूंगी करारी बातों के साथ तब दीजिए इजाजत नमस्कार .