महोबा जिले की ग्रामीण युवा महिला पत्रकार जिसने महिलाओं को न्याय दिलाने के इरादे से चुना पत्रकारिता का रास्ता।
आज 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती है। इसी दिन राष्ट्रिय युवा दिवस भी मनाया जाता है। 1984 में भारत सरकार ने इसे मनाने का निर्णय लिया गया था। हर साल युवा दिवस उसकी थीम यानी विषय के अनुसार मनाया जाता है। इस बार युवा दिवस 2022 का विषय है, “It’s all in the mind” यानी “”यह सब मन में है”, यह बात कुछ हद तक सही भी है।
आज का युवा बहुत कुछ करना चाहता है और हर क्षेत्र में कुछ न कुछ ज़रूर से कर रहा है। आज खबर लहरिया युवा दिवस के अवसर एक युवा महिला ग्रामीण पत्रकार की कहानी आपके साथ शेयर कर रही है जो यह दिखाता है कि एक युवा अगर कुछ करने की ठान ले तो वह समाज में किस तरह के बदलाव ला सकता है या ला सकती है।
युवा ग्रामीण महिला पत्रकार – सीता पाल
एक 21 साल की युवा महिला पत्रकार से यह सुनना कि पत्रकारिता में आने की उसकी वजह समाज को सेवा प्रदान करना है। यह दिखाता है कि आज की युवा पीढ़ी पत्रकारिता के आदर्शों को आगे तक पहुंचा पाने में काफ़ी सक्षम है।
ये युवा महिला पत्रकार यूपी के जिला महोबा की रहने वाली है। 21 साल की उम्र में जहां आमतौर पर युवा कॉलेज की पढ़ाई में लगे रहते हैं। कुछ अपने भविष्य के बारे में सोच रहे होते हैं। वहां सीता ने अपनी पत्रकारिता के ज़रिये पहले ही अपने भविष्य को चुन लिया। जिस पर वह बेहद चाव से काम भी कर रही हैं।
सीता को इस क्षेत्र में तकरीबन तीन साल हो चुके हैं यानी की जब वह 18 साल की थीं तब से ही वह समाज में बदलाव लाने का काम कर रही हैं। इस उम्र में तो हम में से कई स्कूल के अंतिम पड़ाव में होते हैं। अगर उनकी शैक्षणिक शिक्षा की बात की जाए तो वह सिर्फ बारहवीं तक ही पढ़ी हैं। पारिवारिक समस्याओं की वजह से वह ज़्यादा पढ़ नहीं पाई। उन्होंने पत्रकारिता का कोई कोर्स भी नहीं किया है। न ही कोई डिग्री ली है। इसके बावजूद भी वह इस क्षेत्र में काफी निपुण हैं। हालाँकि, सीता ने कंप्यूटर कोर्स में डिग्री की हुई है।
जब मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने पत्रकारिता को क्यों चुना या वह किस तरह से इस क्षेत्र में आईं? वह बिना रुके कहती हैं “क्यूंकि मैं सोशल मिडिया पर काफ़ी एक्टिव थी। इसलिए मैं पत्रकारिता में आई हूँ।”
वह आगे कहती हैं कि “महिलाओं के साथ जो उत्पीड़न हो रहा है, इसे देखकर मैं पत्रकारिता में आई हूँ कि जब तक इनको (महिलाओं) न्याय नहीं मिलता। मैं हर तरह से इनका सपोर्ट करूँ। मुझे पैसे कमाने का लालच नहीं। मैंने महिलाओं के लिए अपना यह कदम उठाया है। जब मैं देखती हूँ कि आये दिन महिलाओं के साथ बदसलूकी की जाती है। इससे मुझे बहुत आहत हुआ है। इसलिए मैं पत्रकारिता में उतरी हूँ।”
सीता की यह बात सुनकर मुझे लगा कि पत्रकारिता भी तो हमें यही करने को कहती है न ? बिना किसी स्वार्थ के लोगों के हक के लिए लड़ना। क्यों? जिसकी आवाज़ दबा दी गयी है या लगातार दबाई जा रही है। उनकी आवाज़ बनना।
पत्रकारिता में आने से पहले वह सोशल मिडिया के ज़रिये समाज सेवा का काम करती थीं। फिर कुछ लोगों ने उन्हें सलाह दी। जिसके बाद वह पत्रकारिता में आई। उन्होंने मदर टेरेसा फाउंडेशन के साथ भी किया है। जिसमें वह महिला चैयरमैन थी। वह इसमें गरीबों की मदद व उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करने का काम करती थीं।
“समाज सेविका के रूप में काम करूँ और महिलाओं के साथ जो अत्याचार होते हैं, वह न हो सके।” अपने इस कथन से सीता ने अपने पत्रकारिता में आने की वजह को और भी ज़्यादा साफ़ कर दिया। देश में लगातार महिलाओं के साथ बढ़ते उत्पीड़न के मामलों ने सीता को जज़्बा दिया कि वह सामने से आकर महिलाओं पर होती हिंसाओं को रोकने का काम करे। उनके लिए लड़े। उनके साथ लड़े।
इस समय वह लखनऊ के टुडे एक्सप्रेस में जिला संवाददाता के रूप में तकरीबन एक साल से काम कर रहीं हैं। इससे पहले वह बुंदेलखंड के यूट्यूब चैनल पब्लिक एप्प के लिए काम कर चुकी हैं। लगभग एक साल तक सीता ने इस चैनल के साथ काम किया है। ज़मीनी स्तर पर रिपोर्टिंग करने से लेकर महिलाओं के मुद्दे, युवाओं की समस्या और ग्रामीण स्तर की समस्याओं पर वह काम कर चुकीं हैं और कर रही हैं।
वह ज़्यादातर डीएम, कलेक्टर के दफ़्तर में रहती हैं। यहां रहने की वजह को लेकर सीता का कहना है कि “यहां बहुत से फरियादी मदद के लिए आते हैं। जिनकी समस्याएं मैं सुनती हूँ। “
वह आगे कहती हैं कि “मेरा सिर्फ यह काम नहीं है कि मैं खबर बनाऊं। उन्हें न्याय दिलाना भी मेरा काम रहता है। जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता। तब तक मैं उनके साथ लगी रहती हूँ।”
सबसे ज़्यादा सीता द्वारा आवास को लेकर रिपोर्टिंग की गयी है। जिसका असर भी हुआ है। लगातार रिपोर्टिंग की वजह से पिपरी मास, जैतपुर और कर्वी ब्लॉक में रहने वाले अधिकतर पात्र लोगों को आवास मिला है। एक पत्रकार के लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी की और क्या बात होगी कि उसकी रिपोर्टिंग की वजह से किसी को उसका हक मिल रहा है। समस्याओं का हल निकल रहा है।
जब मैंने उनसे पूछा कि वह पत्रकारिता से हटकर अपने लिए क्या करना चाहती हैं। जिसके जवाब में उन्होंने कहा, “मुझे अपने लिए कुछ नहीं करना। सिर्फ महिलाओं के लिए ही करना है। मैं बहुत अच्छी समाज सेविका बनना चाहती हूँ। मैं अपने पैरों पर खुद खड़े होना चाहती हूँ। मेरी अलग ही पहचान हो। “
सीता का यह कहना कि मुझे खुद के लिए कुछ नहीं करना पर समाज के लिए बहुत कुछ करना है। यह कथन सही मायने में निःस्वार्थ सेवा और पत्रकारिता के आदर्श को दिखाता है।कोरोना काल के दौरान लोगों को सेवाएं प्रदान करने की वजह से उन्हें दो बार सम्मानित भी किया गया है। जिसमें एक बार व्यापार मंडल द्वारा और दूसरी बार महोबा के पूर्व सांसद रह चुके गंगा चरण राजपूत द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।
परिवार वालों का सीता को पूरी तरह से सहयोग है। वह कहती हैं कि वह आगे चलकर खुद को ‘एंकर’ के तौर पर देखना चाहती हैं।
सीता का समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा उनके जिला की कई लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनकर भी उभरा है। हाथों में माइक लिए वह लोगों को न्याय दिलाने के सफर में निकल चुकीं हैं। जिसकी मंज़िल का सफर वह कुछ हद तक तय भी कर चुकीं हैं।
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